एक अद्भुत और अनोखी दुनिया का एहसास कराता है कुंभ, आप भी एक बार जरूर पधारें
कुंभ में आने वालों को अस्थाई पुलों से होते हुए अखाड़ों की ओर पहुंचने पर एक और ही दुनिया से साक्षात्कार होता है। अब जब यहां आए ही हैं तो बिना स्नान किए रह जाएं ऐसा हो ही नहीं सकता।
प्रयागराज ज्ञानेंद्र सिंह। सांझ ढल चुकी है। हल्के कोहरे का पहरा है। बीच-बीच में बूंदाबांदी। इसके बावजूद त्रिवेणी मार्ग आने-जाने वालों से आबाद। साथ में पं. भीमसेन जोशी का मधुर भजन गूंज रहा है-जो हरि को भजे सदा सोई परमपद पावेगा...। कुछ कदम आगे बढ़ते ही सामने होती है एक अद्भुत दुनिया। जैसे जमीं पर असंख्य तारे उतर आए हों। बिहंसती कुंभनगरी अद्वितीय आभा बिखेरती नजर आती है। ठंड के बावजूद त्रिवेणी संगम में पुण्य की डुबकी की होड़ मची है। इनमें साधु-गृहस्थ, युवा-वृद्ध सभी शामिल हैं। इनके लिए रातदिन कोई मायने नहीं रखते।
कुंभ में आए हैं तो स्नान करना है। अस्थाई पुलों से होते हुए अखाड़ों की ओर पहुंचने पर एक और दुनिया से साक्षात्कार होता है। अहर्निश यज्ञ, भजन-कीर्तन आपको वैदिक युग की झलक दिखाएगा। यज्ञशालाओं के आगे भस्म लगाए विराजमान शिव स्वरूप नागा साधु आपको कुछ पल के लिए ठिठकने को मजबूर कर देंगे। किन्नर अखाड़े को मान्यता देने वाले इस कुंभ में महिला नागा संन्यासियों से साक्षात्कार होगा। जूना अखाड़ा में मौजूद यह महिला नागा संन्यासी अवधूतनी के रूप में जानी जाती हैं। इनका भी अपना अलग संसार और अनुशासन है।
निर्बल-दुर्बल जन के लिए सेवाभाव मानवता की एक नई शक्ल दिखाता है। 20 सेक्टरों में विभाजित कुंभ में अन्नपूर्णा का वास है। यहां आपको इस बात की चिंता नहीं सताएगी कि क्या खाएंगे, कहां सोएंगे। अन्न क्षेत्रों में भोजन व्यवस्था सबके लिए है, बस आपको लहसुन-प्याज की मौजूदगी नहीं मिलेगी। भारत के हर प्रांत-क्षेत्र की झलक यहां मिलेगी, खासकर असम, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मणिपुर के कलाकारों के लोक नृत्य-गीतों की प्रस्तुति मंत्रमुग्ध कर देती है। प्रभु की लीलाओं का मंचन करते कलाकारों को देख लोग अभिभूत होते नजर आते हैं। उनमें अपना आराध्य को ढूंढ़ते नजर आते हैं।
मानवता की अमूर्त धरोहर का दर्जा पा चुके कुंभ का सिर्फ आध्यात्मिक पहलू ही नहीं है। इसकी अपनी अर्थव्यवस्था भी है। शोध का विषय बन चुका दुनिया का सबसे बड़ा जनसमागम करीब छह लाख लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध करा रहा है। इसमें फूल से लेकर प्रसाद और गोबर के उपले बेचने वाले तक शामिल हैं। यह अर्थव्यवस्था 1.25 लाख करोड़ रुपये का राजस्व भी उत्तर प्रदेश को उपलब्ध कराएगी। आयोजन के विस्तार और व्यवस्था को देख कर आप बरबस कह पड़ेंगे-लोग टूट जाते हैं एक घर बसाने में, यहां पूरी एक अलग दुनिया ही बस गई है कुछ महीनों में, जिसके रहवासियों की संख्या कई देशों की आबादी से ज्यादा है।
वैश्विक पटल पर कुंभ
15 जनवरी से शुरू हुआ कुंभ मेला चार मार्च तक चलेगा। 70 देशों के राष्ट्र प्रमुख कुंभ की तैयारियों यानी कुंभ मेला इन मेकिंग के गवाह बन चुके हैं। दो स्नान पर्वों के बाद मौनी अमावस्या के सबसे बड़े शाही स्नान की तैयारियां में जुटे कुंभ की आभा प्रवासी दिवस पर आए 3200 प्रवासी भारतीयों को भी चमत्कृत-झंकृत कर चुकी है। वसुधैव कुटुंबकम का संदेश देते इस कुंभ में पाकिस्तान के प्रमुख सूफी संत साईं सादराम साहिब भी संत समागम कर चुके हैं। हजारों की तादाद में विदेशी भी संगम में पवित्र डुबकी लगा चुके हैं।
मेला इन मेकिंग
केंद्र और प्रदेश सरकार ने कुंभ मेले के लिए 4,200 करोड़ रुपयों की भारी भरकम राशि आवंटित की है, जिससे यह अब तक का सबसे महंगा तीर्थस्थल बन गया है। पिछली सरकार ने 2013 में आयोजित महाकुंभ के लिए लगभग 1,300 करोड़ रुपये खर्च किए थे। पिछले मेलों में 1,600 हेक्टेयर की तुलना में कुंभ मेले का क्षेत्रफल भी दोगुना होकर 3,200 हेक्टेयर हो गया है। कुंभ मेलाधिकारी विजय किरन आनंद कहते हैं कि इससे संबंधित सीआइआइ की हाल ही में रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट के मुताबिक लगभग साढ़े छह लाख पर्यटक विभिन्न एयरलाइंस से यहां पहुंचेंगे। मेले के 49 दिनों में लगभग साढ़े चार करोड़ लोगों के रेलवे और पौने तीन करोड़ श्रद्धालुओं के रोडवेज बसों से आने का अनुमान है।