कोरोना के योद्धा : महामारी के संकट में किसानों के हमराह और सरकार के दूत बने कृषि विज्ञान केंद्र
कोविड-19 की महामारी के चलते लागू देशव्यापी लाकडाउन के दौरान किसानों की मदद में कृषि विज्ञान केंद्र और उसके वैज्ञानिक आगे आये।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। कोविड-19 की महामारी के चलते लागू देशव्यापी लाकडाउन के दौरान किसानों की मदद में कृषि विज्ञान केंद्र और उसके वैज्ञानिक आगे आये। खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों में उनका साथ दिया। देशभर में फैले सात सौ से अधिक ऐसे केंद्र इस दौरान उनके हमराह और मित्र की भूमिका में रहे। लॉकडाउन में रबी फसलों की कटाई, मड़ाई और उपज को मंडी तक पहुंचाने में अन्नदाता की सहायता कर रहे हैं। इसमें जिला प्रशासन से स्थानीय स्तर पर कई मामलों में अनुमति दिलाना भी शामिल है।
कृषि व किसान कल्याण मंत्री ने कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका की प्रशंसा की
केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आइसीएआर) के साथ समीक्षा बैठक में कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका की प्रशंसा की। सरकारी योजनाओं की जानकारी किसानों तक पहुंचाने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पन्न अलग-अलग चुनौतियों के समाधान के लिए समन्वयक का काम किया। उप महानिदेशक (प्रसार) डॉक्टर अशोक कुमार सिंह ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के वैज्ञानिक और वहां तैनात स्टाफ ने फ्रंट लाइन योद्धा की तरह काम किया है। कोविड-19 से बचाव के तौर तरीके से लोगों को वाकिफ कराना रहा हो अथवा स्थानीय स्तर पर किसानों की जरूरतों को पूरा करना, उसे अपना दायित्व समझ कर कार्य किया है।
लॉकडाउन में 5.48 करोड़ किसानों से सीधा संपर्क किया
आइसीएआर की समीक्षा बैठक में बताया गया कि लॉकडाउन के दौरान 5.48 करोड़ किसानों से सीधा संपर्क किया गया। सभी जानकारी 15 क्षेत्रीय भाषाओं में भेजी गई। कोरोना से जुड़ी गाइड लाइन और केंद्र सरकार की स्कीमों के बारे में केवीके का माध्यम ज्यादा कारगर साबित हुआ। केवीके में बनाए गए किसानों के कई लाख व्हाट्सऐप ग्रुप इस दौरान बहुत काम आए। मंत्रालय की समीक्षा बैठक में लाकडाउन के बाद की तैयारियों पर भी गंभीरता से विचार किया गया। इसमें केवीके को अहम भूमिका दी जाएगी। किसानों की समस्याओं को निपटाने के साथ इन केंद्रों पर तैनात कृषि वैज्ञानिकों और स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के किसानों के बीच अलग-अलग ग्रुप बनाकर कार्य करने को कहा जा सकता है।
गेहूं की कटाई के लिए प्रशासन से दिलाई अनुमति
सीतापुर स्थित एक कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर सुरेश कुमार सिंह का कहना है कि इस दौरान गेहूं की कटाई चरम पर है। इसके लिए कंबाइनर और हार्वेस्टर की जरूरत और उसे प्रशासन से अनुमति दिलाना बड़ा काम था। जिला प्रशासन ने भी इसमे बिना विलंब के काम किया है। मशरूम, सब्जी और अन्य कई तरह के किसानों के व्हाट्सएप ग्रुप पहले से ही बने हुए हैं, जो बहुत कारगर माध्यम बना। मास्क लगाने और एक दूसरे से दूरी बनाए रखने के बारे में डाक्टर सिंह ने बताया कि दरअसल, गेहूं की कटाई के समय बहुत तीखी धूल उड़ती है, जिसके लिए मुंह पर कपड़ा स्वाभाविक तौर पर बांधा जाता है। दूरी बनाने के लिए कटाई पहटा (एक निश्चित) में होती है, लिहाजा इसे किसानों और खेतिहर मजदूरों को समझाना बहुत आसान रहा।