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Krishna Janmashtami 2020 : हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की, इसे सुनकर आज भी झूम जाते हैं कृष्ण भक्त

श्री कृष्‍ण के नाम में ही पूरी सृष्टि विद्यमान है। वही नर भी हैं और वही नारायण भी हैं। जीवन के हर मूल में वही हैं। वो सुख भी हैं और दुख भी हैं। इस जन्‍माष्‍टमी पर आइए जानें कुछ खास

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 01:43 PM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 07:51 AM (IST)
Krishna Janmashtami 2020 : हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की, इसे सुनकर आज भी झूम जाते हैं कृष्ण भक्त
Krishna Janmashtami 2020 : हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की, इसे सुनकर आज भी झूम जाते हैं कृष्ण भक्त

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी पर पूरा देश झूम रहा है। ऐसा हो भी क्‍यों नहीं आखिर उनके चहेते कान्‍हा का जन्‍मदिन जो है। भगवान विष्‍णु के अवतार के रूप में जब वे इस पृथ्‍वी पर देवकी की आंठवीं संतान के रूप में आए तो कंस के अत्‍याचारों से धरती कांप रही थी। दिन बीतने के साथ कंस निरंकुश होता जा रहा था। यहां तक की उसने अपने पिता, बहन और अपने प्‍यारे और करीबी दोस्‍त और जीजा को कारागृह में डाल दिया था। भगवान श्री कृष्‍ण ने न सिर्फ उन्‍हें इस कारावास से मुक्‍त करवाया बल्कि संसार को गीता उपदेश भी दिया। इस जन्‍माष्‍टमी पर हम आपको भगवान श्री कृष्‍ण की उन लीलाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी वजह से वो जाने और पहचाने जाते हैं।

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देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र की हत्‍या करने के लिए कंस ने दोनों को ही कारावास में रखा हुआ था। लेकिन जब श्री कृष्‍ण का जन्‍म हुआ तो एक आकाशवाणी हुई जिसमें इस बच्चे को नंदगांव में नंदराय के घर छोड़कर आने को कहा गा था। इसके बाद वहां के कारावास के दरवाजे अपने आप खुल गए और वहां पर तैनात प्रहरी भी गहरी नींद में सो गए। उफनती नदी भी अपने चहेते प्रभु के चरण स्‍पर्श करने को मचल रही थी। इस तूफानी रात में शेषनाग उनकी रक्षा के लिए उनके साथ थे।

जब कंस को इस बात की जानकारी हुई कि कृष्‍ण नंदगांव में यशोदा और नंदराय के यहां पर है तो उसने पूतना नाम की राक्षसी को उन्‍हें मारने के ल‌िए भेजा। लेकिन पूतना ने जैसे ही श्री कृष्‍ण को अपना दूध पिलाना चाहा तो उन्‍होंने उसके प्राण हर लिए और उसका अंत हो गया।

कंस के कहने पर काल‌िया नाग ने यमुना के पानी में अपना विश मिला दिया था। इसकी वजह से पशु पक्षी और लोग मर रहे थे। हालत ये हो गई थी कि मथुरा से जाने के बारे में विचार करने लगे थे। ने लगे। लेकिन कृष्‍ण ने उन्‍हें न सिर्फ ऐसा करने से रोक दिया बल्कि कालिया नाग को भी उसकी गलती की सजा दी। हुआ यूं कि एक द‌िन खेलते खेलते उनके सखाओं की बॉल यमुना में चली गई। इसको निकालने के लिए श्री कृष्‍ण यमुना नदी में कूद पड़े। यहां पर उनका सामना कालिया नाग से हुआ। उसने काफी कोशिश की कि वो उनको हानि पहुंचा सके, लेकिन उसकी एक नहीं चली। अंत में उसने अपनी हार मान ली और नाग कन्याओं के कहने पर प्रभु ने उसके जीवनदान दिया। इसके बाद श्री कृष्‍ण इसकी कालिया नाग के फन पर नृत्‍य करते हुए यमुना से बाहर आए थे।

एक बार इंद भगवान का क्रोध नंदगांव के ऊपर टूट पड़ा और भयंकर वर्षा हुई। इंद्र द्वारा मूसलाधार बरसात क‌िए जाने पर नंदगांव के पशुओं और लोगों की रक्षा के ल‌िए श्री कृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा ल‌िया। जब कई दिन बाद भी इंद्र अपनी मंशा में कामयाब नहीं हो सका तब उन्‍हें भगवान श्री कृष्‍ण की शक्ति का अहसास हुआ। इसके बाद उसका अभिमान चकना चूर हो गया और उसने प्रभु से माफी मांगी। श्री कृष्‍ण के कहने पर ही लोगों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू की थी, जो आज भी निरंतर जारी है।

कंस ने कृष्‍ण का वध करने के लिए उन्‍हें बलराम समेत अपने यहां राजमहल में आमंत्रित किया था। वहां पर उसके कहने पर श्री कृष्‍ण ने उसके विशालकाय और महाबलशाली पहलवानों के साथ द्वंद युद्ध किया और उन्‍हें धूल चटा दी। कंस अब तक जान चुका था कि वर्षों पहले हुई भविष्‍यवाणी अब सच होने वाली है। इस डर से उसके पसीने छूट रहे थे लेकिन उसका अहंकार लगातार उसको कृष्‍ण को धूल चटाने की बात कर रहा था। हालांकि उसकी एक न चल सकी और श्री कृष्‍ण के हाथों वो अपनी गति को प्राप्‍त हुआ।

श्री कृष्‍ण ने अपने गुरू संदीप‌िनी के पुत्र को वापस लाकर उन्‍हें जो खुशी दी थी उसका अहसास भी हर कोई नहीं कर सकता था। गुरू संदीपिनी के पुत्र की वर्षों पहले डूबने की वजह से मृत्यु हो चुकी थी। लेकिन श्री कृष्‍ण ने उन्‍हें गुरू दक्ष‌िणा के रूप में उनके पुत्र को वापस लौटाकर गुरू का मान बढ़ाया और शिष्‍य के कर्तव्‍य का निर्वाहन भी कराया था।

जब हस्तिानापुर की भरी सभा में द्रौपदी के चीर हरण का प्रयास किया गया उस वक्‍त उन्‍होंने अपने कर्तव्‍य के साथ अपने वचन को भी निभाया था। इतना ही नहीं युद्ध को टालने के लिए जब वे पांडवों के दूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे थे तब दुर्योधन ने आवेश में आकर श्री कृष्‍ण को बंदी बनाने का आदेश द‌िया था। उस वक्‍त उन्‍होंने अपना विराट रूप दिखाकर सभी को हैरान कर द‌िया था। भीष्म और व‌िदुर और आचार्य दौर्ण के अतिरिक्‍त सभा में मौजूद सभी लोग उनके शरीर से निकले तेज प्रकाश को सहन नहीं कर पा रहे थे। उन्‍होंने ही कुरुक्षेत्र की रणभूमि में विश्‍व को गीता का ज्ञान दिया था। जिसके मूल में सिर्फ एक ही बात है कि आत्‍मा अमर है। वो मरती नहीं है बल्कि केवल देह को एक वस्‍त्र के रूप में त्‍याग देती है। इसलिए मनुष्‍य को केवल कर्म करने पर विचार करना चाहिए न कि उससे मिलने वाले फल की चिंता करनी चाहिए।


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