कोंडागांव को इस शिल्पकार ने दिलाई दुनिया में पहचान, झिटकू-मिटकी कला केंद्र का दिख रहा जलवा
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कोंडागांव के एक कलाकार ऐसे हैं जिन्होंने मिट्टी की कलाकारी के जरिए देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाई है।
कोंडागांव। एक शिल्पकार किसी क्षेत्र विशेष की सभ्यता व संस्कृति को अपनी कला के माध्यम से प्रदर्शित करता है। मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, कपड़े जैसी चीजों पर कलाकारी के जरिए शिल्पकार अपनी कल्पना को जीवंत स्वरूप देते हैं और अपनी क्षेत्रीय संस्कृति को दुनियाभर के लोगों तक पहुंचाते हैं। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कोंडागांव के एक कलाकार ऐसे हैं जिन्होंने मिट्टी की कलाकारी के जरिए देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। कोंडागांव के शिल्प ग्राम कुम्हार पारा में यूं तो कई शिल्पकार रहते हैं, लेकिन यहां रहने वाले अशोक चक्रधारी की अपनी खास पहचान है। बस्तर के पारंपरिक शिल्प झिटकू-मिटकी के नाम से उन्होने एक कला केंद्र स्थापित किया है। पिछले दिनों मिट्टी की इनकी कलाकारी से प्रभावित होकर केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने इन्हें मेरिट प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया था। अशोक कच्ची मिट्टी को आकार देकर बोलती तस्वीर व जीवंत मूर्तियां तैयार करते हैं। मिट्टी की मूर्तियां, दैनिक उपयोग की वस्तुएं, सजावटी सामान का निर्माण करते हुए वर्षों से वे क्षेत्र के लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।
पुस्तैनी कारोबार को दिया नया स्वरूप
अशोक चक्रधारी पुस्तैनी तौर पर कुम्हार के पेशे से जुड़े हुए हैं। उनका परिवार मिट्टी के घड़े बनाने का कार्य करता था। स्कूल की पढ़ाई के बाद अशोक ने भी पिता के काम में हाथ बंटाना शुरू किया और फिर यही उनका पेशा बन गया। पहले उन्होंने मूर्तियां बनाना शुरू किया।
उनके द्वारा बनाई देवी-देवताओं की आकर्षक मूर्तियों की मांग होने लगी। धीरे-धीरे इस कार्य को वे अपनी कल्पनाशीलता के साथ और बढ़ाने लगे। इसी बीच नई दिल्ली की कपाट संस्था ने कुम्हार पारा कोंडागांव में मूर्तिकला का प्रशिक्षण दिया। इसके बाद अशोक ने भद्रावती महाराष्ट्र में जाकर एक साल तक मूर्तिकला का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण लेने के बाद बारीकियां समझ में आईं और उनके काम में और भी ज्यादा सफाई आ गई।
ऐसी शिल्पकारी कि देखते रह जाते हैं लोग
अशोक ने मूर्तियों के साथ ही कुछ नायाब शिल्प गढ़े जो लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। उन्होने तंदूर, कलात्मक दीए, डिनर सेट, कप-प्लेट, गिलास, थाली, कटोरी, पानी की बोतल और जादूई दीए के साथ ही मिट्टी से बेहद खूबसूरत संगीतमय फव्वारा तैयार किया है, जिसे लोग देखकर हैरत में पड़ जाते हैं।
उनके द्वारा तैयार किए गए फव्वारे से पानी अपने आप गिरता रहता है और जादुई दिए में तेल सूखने के बाद अपने आप तेल भर जाता है। अब अशोक अपने द्वारा बनाई गई कलात्मक चीजों की जगह-जगह प्रदर्शनी भी लगाते हैं और बहुत से लोग उनसे उनकी इस कला का प्रशिक्षण लेने भी आते हैं। उन्होंने अपने साथ मोहल्ले के करीब 10 परिवारों को भी काम में जोड़ लिया है और वे उन्हें भी रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं।
ऐसे तैयार करते हैं कलाकृतियां
कलाकृतियां तैयार करने के लिए अशोक जंगल से मिट्टी लेकर आते हैं और उसे घंटों तक फेंटकर उसकी सफाई करते हैं। इसके बाद तैयार मिट्टी को चाक में लगाकर चलाते हैं। किसी एक कलाकृति को बनाने के लिए पहले वे उसके अलग-अलग हिस्से तैयार करते हैं और फिर उन्हें बड़ी ही कुशलता के साथ जोड़ते हैं। इसी तरह अभी-अभी उन्होंने एक हाथी की मूर्ति तैयार की है। तैयार मूर्ति को भट्टी में चढ़ाने से पहले मिट्टी वे उस पर पेंट करते हैं, जिसे पंजन कहा जाता है।
विदेशों तक पहुंची मिट्टी शिल्प की मांग
अशोक को नया रायपुर विकास प्राधिकरण की ओर से कई शिल्प तैयार करने का ऑर्डर दिया गया है। इसके अलावा विदेशों से भी उनके द्वारा निर्मित कलात्मक वस्तुओं की मांग आ रही है। वर्षभर कोंडागांव पहुंचने वाले देसी- विदेशी पर्यटक उनके यहां से इन कलात्मक चीजों को खरीदते हैं। उनके द्वारा स्थापित झिटकू-मिटकी कला केंद्र अपनी खास पहचान बना चुका है।
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