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रिक्शे से नापा 3 हजार किमी लंबा कोलकाता-लद्दाख का रास्ता

दो महीने की कठिन यात्रा और 3 हजार किलोमीटर का मुश्किल रास्ता तय कर एक रिक्शा चालक ने कोलकाता से लद्दाख तक का सफर तय किया।

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Tue, 07 Oct 2014 12:58 PM (IST)Updated: Tue, 07 Oct 2014 02:46 PM (IST)
रिक्शे से नापा 3 हजार किमी लंबा कोलकाता-लद्दाख का रास्ता

कोलकाता। दो महीने की कठिन यात्रा और 3 हजार किलोमीटर का मुश्किल रास्ता तय कर एक रिक्शा चालक ने कोलकाता से लद्दाख तक का सफर तय किया।

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68 दिनों के सफर में झारखंड, उत्तर प्रदेश, श्रीनगर और करगिल से गुजरे 44 साल के सत्येन दास ने बताया कि उन्होंने 17 अगस्त के दिन मशहूर खारदुंग ला पास को पार किया।

5 हजार मीटर की ऊंचाई तक रिक्शा चलाकर घर पहुंचे सत्येन दास की नजरें अब गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने पर हैं। दास की इस पूरी यात्रा को साउथ कोलकाता के क्लब नकटाला अगरानी ने फाइनेंस किया।

क्लब के सचिव पार्थो डे ने बताया कि हमने इस यात्रा के लिए 80 हजार रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया था और यह धनराशि हमने क्लब के सदस्यों से ही एकत्र कर ली। हम उनके जुनून और मजबूत इरादे से बेहद प्रभावित थे।

दास ने जब जम्मू-कश्मीर एक इलाके में पहुंचे तो वहां के स्थानीय लोगों ने उनसे कहा कि उन्होंने आज तक इलाके में रिक्शा नहीं देखा है।

दास ने कहा कि उनकी यात्रा का मकसद पर्यावरण के अनुकूल परिवहन के तौर पर रिक्शे का प्रचार करना और विश्व शांति का संदेश देना था।

इस साहसिक काम को रिकॉर्ड करने के लिए, कोलकाता के एक डॉक्यूमेंट्री मेकर भी दास के साथ गए थे। उन्होंने नक्शों की मदद से सही रास्ते पहचानने में दास की रास्ते भर मदद की।

हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है जब दास ने इस तरह के सफर पूरा किया हो। साल 2008 में, वह अपनी पत्नी और बेटी के साथ रिक्शे से ही रोहतांग के पास गए थे।

इस बार की यात्रा में सबसे चुनौतीपूर्ण पल तब रहा जब दास ने 17,582 फीट ऊंचाई पर खारदुंग ला दर्रे को पार किया जिसने उन्हें हिमाचल के विहंगम दृश्य देखने का मौका दिया। खारदुंग ला दर्रा दुनिया की सबसे उंची सड़क है, जहां मोटरवाहन चल सकते हैं।

दक्षिणी कोलकाता के नकताला में यात्रियों को रिक्शे से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाले 40 वर्षीय सत्येन दास ने इस यात्रा में अपनी निजी बचत का भी प्रयोग किया। पूरी यात्रा के दौरान दास ने अपना सामान अपने सजे हुए रिक्शे की यात्री सीट के नीचे रखा हुआ था।

दास ने बताया कि मैं रिक्शेसे अपनी आजीविका कमाता हूं और पूरा दिन इसी के साथ बिताता हूं इसलिए जब मैंने लद्दाख की यात्रा का सपना देखना शुरू किया तो मैं रिक्शे को पीछे नहीं छोड़ सकता था।'

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