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डब्लूटीओ का ताजा फैसला जानें क्‍यों है कृषि क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी, करना होगा बदलाव

गन्ना किसानों और चीनी उद्योग के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का ताजा फैसला मुश्किलें पैदा कर सकता था। हालांकि सरकार ने इसका विरोध करते हुए समय से डब्ल्यूटीओ के अपीलीय अथारिटी में इसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 15 Dec 2021 09:18 PM (IST)Updated: Wed, 15 Dec 2021 09:18 PM (IST)
डब्लूटीओ का ताजा फैसला जानें क्‍यों है कृषि क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी, करना होगा बदलाव
विश्व व्यापार में टिके रहने को जरूरी होगा सुधार का रास्ता

 सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। गन्ना किसानों और चीनी उद्योग के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का ताजा फैसला मुश्किलें पैदा कर सकता था। हालांकि सरकार ने इसका विरोध करते हुए समय से डब्ल्यूटीओ के अपीलीय अथारिटी में इसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया है। यह बात ठीक है कि इस फैसले का कोई विपरीत असर घरेलू गन्ना किसानों और चीनी उद्योग पर नहीं पड़ेगा, लेकिन किसानों की जिद और सरकार की ढुलमुल नीति के बूते कृषि क्षेत्र का भला होने वाला नहीं है। वर्ष 2023 के बाद इसे लागू रखने पर दिक्कतें बढ़ सकती हैं। आने वाले दिनों में बदले वैश्विक परिवेश के अनुकूल कृषि क्षेत्र को बदलने की जरूरत है। वैश्विक व घरेलू बाजार में टिके रहने के लिए मांग आधारित खेती पर बल देना होगा। इसके लिए चीनी उद्योग क्षेत्र को भी आधुनिक तकनीक के साथ कदम मिलाना होगा, जिससे कम लागत और गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार किए जा सकें।

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उद्योग के साथ किसानों के लिए भी घातक

कृषि सुधार संबंधी कानून वापसी से भले ही कुछ किसान संगठन संतुष्ट हों, लेकिन इससे देश की खेती आगे बढ़ने के बजाय पिछड़ सकती है। डब्लूटीओ का ताजा फैसला गन्ना किसानों और चीनी उद्योग के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है। निर्यात का रास्ता रुका तो चीनी का भारी उत्पादन ना केवल उद्योग के लिए बल्कि किसानों के लिए भी घातक होगा। विश्व बाजार में सालाना 60 से 80 लाख टन चीनी का निर्यात भारत से होता है, जिसके लिए डब्लूटीओ के प्रविधानों का पालन करना ही होगा। ऐसा नहीं हुआ तो नियमों के उल्लंघन का हवाला देकर दुनिया के बाकी चीनी उत्पादक देश भारतीय चीनी को विश्व बाजार से बाहर कर सकते हैं।

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा क‍ि ब्राजील, ग्वाटेमाला और आस्ट्रेलिया ने भारत की चीनी और गन्ना उत्पादकों को दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर डब्लूटीओ में विरोध दर्ज कराया था। सुनवाई में भारत के तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया गया है। जल्द ही सरकार अपना पक्ष अपीलेट अथारिटी में रखेगी। अंतिम निर्णय आने तक फिलहाल यह फैसला लागू नहीं होगा।

एक भी जज नियुक्त नहीं

भारत के लिहाज से अच्छी बात यह है कि डब्लूटीओ के अपीलेट अथारिटी में फिलहाल एक भी जज नियुक्त नहीं है। ऐसे में लंबे समय तक मामला लंबित रह सकता है।

10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए सब्सिडी

डब्लूटीओ की नियमावली के 9.1 (डी) और (ई) के तहत किसी भी कृषि उपज को दी जाने वाली सब्सिडी उस फसल के कुल मूल्य के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। डब्लूटीओ में सुनवाई के दौरान आरोप है कि भारत में गन्ना किसानों को उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के रूप में अत्यधिक सब्सिडी दी जाती है, जिस पर रोक लगनी चाहिए।


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