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जानिए- क्‍यों हर साल मौसमी घटनाएं जानमाल के लिए बड़ी विपदा लेकर आ रही

भरपूर नमी और दलदली भूमि वाले क्षेत्र भी एक विशिष्ट जलीय तंत्र हैं जिन्हें आर्द्रभूमि कहा जाता है। ये क्षेत्र जैवविविधता के संरक्षण एवं संवर्धन में अहम भूमिका अदा करते हैं। भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में आर्द्रभूमियों का क्षेत्रफल 4.63 प्रतिशत है।

By TilakrajEdited By: Published: Tue, 26 Oct 2021 09:25 AM (IST)Updated: Tue, 26 Oct 2021 09:25 AM (IST)
जानिए- क्‍यों हर साल मौसमी घटनाएं जानमाल के लिए बड़ी विपदा लेकर आ रही
जो मानव आरंभ में प्रकृति का साझीदार था, वही अब पर्यावरण का विध्वंसकर्ता बन गया

हरेंद्र श्रीवास्तव। हमारे देश में नदियों के प्राकृतिक और सांस्कृतिक महत्व हैं। भारतीय दर्शन नदियों को मां के रूप में मान्यता देता है। मानव-सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ था। नदियां उनके अस्तित्व को बनाए रखने में प्राचीन काल से लेकर आज तक अपनी भूमिका निभा रही हैं। नदियों के साथ-साथ आर्द्रभूमि, तालाब, झील जैसे विभिन्न प्रकार के जलीय तंत्र धरती के अनेकों जीव-जंतुओं का पालन-पोषण करते हैं। ये सिंचाई का मुख्य स्नेत भी हैं। नदियों के माध्यम से बिजली का व्यापक पैमाने पर उत्पादन होता है। नदियां जलमार्ग परिवहन में भी अहम भूमिका निभाती हैं।

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भारत में 4,000 से भी अधिक छोटी-बड़ी नदियां हैं। उत्तर-भारत की हिमालयी तथा दक्षिण-भारत की प्रायद्वीपीय नदियां देश की बहुत बड़ी आबादी का आधार हैं। हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक प्रवाहित होने वाली लगभग 2,500 किलोमीटर लंबी गंगा नदी हमारे भारत देश की सबसे बड़ी नदी है, जो हिंदू-सभ्यता की प्रमुख सांस्कृतिक पहचान है। भरपूर नमी और दलदली भूमि वाले क्षेत्र भी एक विशिष्ट जलीय तंत्र हैं, जिन्हें आर्द्रभूमि कहा जाता है। ये क्षेत्र जैवविविधता के संरक्षण एवं संवर्धन में अहम भूमिका अदा करते हैं। भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में आर्द्रभूमियों का क्षेत्रफल 4.63 प्रतिशत है। केरल स्थित बेंबनाड आर्द्रभूमि भारत का सबसे बड़ा नमभूमि क्षेत्र है। राज्यों में गुजरात सर्वाधिक आर्द्रभूमि क्षेत्रफल वाला प्रदेश है।

हमारे देश में अधिकांश झरने (जलप्रपात) दक्षिण भारत में पाए जाते हैं। ये विद्युत उत्पादन, सिंचाई, पीने के लिए पानी उपलब्ध कराने वाले महत्वपूर्ण प्राकृतिक जल स्नेत हैं।आज भौतिक विकास की अंधाधुंध दौड़ में देश की कई नदियों, झीलों, झरनों एवं आर्द्रभूमियों पर खतरा मंडरा रहा है। जो मानव आरंभ में प्रकृति का साझीदार था, वही अब पर्यावरण का विध्वंसकर्ता बन गया है। अत: मानव एवं पर्यावरण के मध्य स्थापित सहभागिता तथा परस्परावलंबन का संबंध चरमरा गया है। नदियों पर बनाए गए विशाल बांधों के दुष्परिणामस्वरूप उनका सतत प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध हो गया है।

कई झील और तालाब भी अब प्रकृति के प्रतिकूल मानवीय गतिविधियों के दुष्प्रभावों के चलते खत्म होते जा रहे हैं। यही कारण है कि हर साल मौसमी घटनाएं जानमाल के लिए बहुत बड़ी विपदा लेकर आ रही हैं। जान लें कि किसी नदी पर आने वाला संकट हमारे जीवन पर आने वाला संकट है। आर्द्रभूमियों को नष्ट कर देना संपूर्ण जैवविविधता के लिए खतरा है। अत: हमें अपनी नीतियों एवं योजनाओं को पर्यावरण के अनुकूल संचालित करना होगा तभी जाकर हम जल के इन तमाम महत्वपूर्ण स्नेतों को बचा सकेंगे, जो हमें इस धरती पर जीवन जीने योग्य अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करते हैं।

(लेखक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं)


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