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जानिए क्यों जरूरी है आयुध फैक्ट्रियों का निगमीकरण, सेना को गोलाबारूद से लेकर वर्दी और जूते तक की होती है सप्लाई

ओएफबी की स्थापना 1979 में की गई थी। इसके तहत फिलहाल 41 फैक्ट्रियां हैं और इनमें करीब 80 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2020 06:25 AM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2020 11:43 AM (IST)
जानिए क्यों जरूरी है आयुध फैक्ट्रियों का निगमीकरण, सेना को गोलाबारूद से लेकर वर्दी और जूते तक की होती है सप्लाई
जानिए क्यों जरूरी है आयुध फैक्ट्रियों का निगमीकरण, सेना को गोलाबारूद से लेकर वर्दी और जूते तक की होती है सप्लाई

नेशनल डेस्क, नई दिल्ली। आयुध फैक्ट्री बोर्ड (OFB) के निगमीकरण को लेकर काफी विवाद है। रक्षा उत्पादन विभाग के तहत काम करने वाले इस बोर्ड का निगमीकरण केंद्र सरकार इसलिए करना चाहती है कि यहां निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। वहीं, बोर्ड के कर्मचारी नेताओं का मानना है कि सरकार का यह कदम निजीकरण के लिए है। इसी के चलते वह इसका विरोध कर रहे हैं।

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ओएफबी की स्थापना 1979 में की गई थी। इसके तहत फिलहाल 41 फैक्ट्रियां हैं और इनमें करीब 80 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं। यहां से सेना को गोलाबारूद से लेकर वर्दी और जूते तक की सप्लाई की जाती है, लेकिन बीतते वक्त के साथ इनकी गुणवत्ता गिरती गई और इससे कई जवानों की जान भी चली गई।

रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा हो रहा प्रभावित

गोलाबारूद के निर्माण पर आने वाली लागत की बात करें तो यह आयातित गोलाबारूद के मुकाबले काफी अधिक होती है। इससे रक्षा बजट का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होता है। इसे देखते हुए सरकार ने इसके पुनर्गठन के लिए कई कमेटियां बनाईं।

आयुध कारखानों में उपलब्ध तकनीक हो चुकी है पुरानी

वर्ष 2000 में टीकेए नायर कमेटी ने ओएफबी के निगमीकरण का सुझाव दिया और कहा कि इसका नाम आयुध फैक्ट्री कॉरपोरेशन लिमिटेड किया जा सकता है। वर्ष 2004 में विजय केलकर कमेटी ने पाया कि आयुध कारखानों में उपलब्ध तकनीक पुरानी हो चुकी है और नई तकनीक तक इनकी पहुंच नहीं है। इस कारण यह अपने मुख्य उपभोक्ता यानी सेना की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए, कमेटी ने सभी आयुध कारखानों को एक ही निगम के तहत निगमित करने का सुझाव दिया।

ओएफबी के निगमीकरण की सिफारिश की

वर्ष 2015 में रमन पुरी कमेटी ने पाया कि ओएफबी के वर्तमान कामकाज को बदलना जरूरी है क्योंकि यह आधुनिक तरीकों के साथ सामंजस्य बिठाने में अक्षम है। इसलिए, समिति ने ओएफबी को तीन या चार भागों में विभाजित करने और इन्हें रक्षा मंत्रालय के सरकारी उपक्रम (DPSU) के रूप में परिवर्तित करने की सिफारिश की। एक साल बाद 2016 में शेखतकर कमेटी ने भी रक्षा मंत्रालय और रक्षा बलों की व्यापक समीक्षा की और ओएफबी के निगमीकरण की सिफारिश की।

रक्षा मंत्रालय से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि निगम के गठन से यह सुनिश्चित होगा कि आयुध कारखानों को वांछित स्वायत्तता मिले और वह अपने संचालन व प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार हो।


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