आइए, जानें क्या हैं पंचामृत और कैसे उत्सर्जन से जंग में भारत के लिए ब्रह्मास्त्र साबित हो सकते है
देश को तेज विकास भी करना है लिहाजा जन-जन को अपनी दिनचर्या और जीवनशैली बदलनी पड़ेगी। सरकार से समाज तक सभी को समर्पित सहभागिता करनी होगी। पराली जैसे गैरजरूरी अनुत्पादक उत्सर्जन पूरी तरह बंद करने होंगे। यातायात की औसत रफ्तार में वृद्धि करनी होगी।
नई दिल्ली, जेएनएन। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काम करने की यही अदा है। बड़े और कड़े फैसलों के लिए वे ऐसे ही नहीं जाने जाते हैं। जब दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ग्लोबल वार्मिग पर समाधान खोजने के लिए पूरी दुनिया बहुप्रतीक्षित जलवायु सम्मेलन काप-26 के लिए ग्लासगो में जुटी और उसका हश्र भी इससे पहले के सम्मेलनों की तरह होता दिखाई दिया तो भारतीय प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन में प्राणवायु का संचार कर दिया।
दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक देश चीन के राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी और रूस सहित अन्य देशों की अन्यमनस्कता ने इस सम्मेलन को नैराश्य का मंच बना दिया था, लेकिन जैसे ही भारत ने उस मंच से 2070 तक नेट जीरो इमीशन का लक्ष्य घोषित किया, मानो दुनिया को इस समस्या से लड़ने का एक मंत्र मिल गया हो। नेट जीरो इमीशन यानी 2070 तक भारत उतनी मात्र में ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करेगा, जितनी मात्रा को वह अपनी सीमा रेखा के भीतर अवशोषित करने की क्षमता रखेगा। इस शून्य उत्सर्जन के सिंहनाद से भारत ने दुनिया के उन विकसित देशों को संदेश दिया है जो औद्योगिक काल की शुरुआत से दौ सौ साल तक बड़ी मात्र में हानिकारक गैसों को वायुमंडल में उड़ेलते रहे हैं।
अब जब दुनिया को बचाने के लिए उत्सर्जन कटौती का बड़ा लक्ष्य रखने की बारी आई तो पीछे हट रहे हैं। 130 करोड़ लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए अनिवार्य तेज विकास की बाध्यता के बावजूद भी भारत का यह निर्णय इन तथाकथित बड़े देशों को तमाचा है।
पंचामृत का मर्म
काप-26 में प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक रणनीति की घोषणा की, जिसे उन्होंने पंचामृत कहा है। आइए, जानते हैं कि ये पंचामृत क्या हैं और कैसे उत्सर्जन से जंग में भारत के लिए ब्रह्मास्त्र साबित हो सकते हैं।
1 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता
सीईए के अनुसार 2030 में बिजली उत्पादन के लिए गैर-जीवाश्म ऊर्जा की भारत की स्थापित क्षमता 2019 में 134 गीगावाट से बढ़कर 522 गीगावाट हो जाएगी। इसके लिए सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता को 280 गीगावाट और पवन ऊर्जा को 140 गीगावाट तक जाने की आवश्यकता होगी। इसके अनुसार 2030 तक कुल स्थापित क्षमता 817 गीगावाट और बिजली उत्पादन 2518 अरब यूनिट होगा। सीईए के इस अनुमान को देखते हुए भारत 2030 तक अपनी 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को पूरा कर सकता है।
2 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी
भारत का वर्तमान कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (2021) 2.88 गीगा टन है। पिछले दशक 2010-2019 में परिवर्तन की औसत वार्षिक दर के आधार पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने एक अनुमान लगाया था, जिसके अनुसार यदि सब कुछ सामान्य रहता है, तब 2030 तक भारत का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 4.48 गीगाटन होगा। इस नए लक्ष्य के अनुसार, भारत अपने कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कटौती करेगा। यानी 2030 में हमारा उत्सर्जन 3.48 गीगाटन होगा। इसका मतलब है कि भारत ने अपने उत्सर्जन में 22 फीसद की कटौती करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।
3 अक्षय ऊर्जा से 50 फीसद ऊर्जा जरूरत पूरी
2019 में भारत अपने बिजली उत्पादन का 9.2 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से पूरा कर रहा था। 2021 तक, अक्षय ऊर्जा क्षमता में 102 गीगावाट की वृद्धि के साथ उत्पादन लगभग 12 प्रतिशत तक बढ़ गया। हमें 2030 तक 50 प्रतिशत बिजली उत्पादन लक्ष्य के लिए इसे बढ़ाने की आवश्यकता है। 2030 में भारत को 2518 अरब यूनिट बिजली की जरूरत होगी। यदि हम अक्षय ऊर्जा से अपनी 50 प्रतिशत आवश्यकताओं को पूरा करने का लक्ष्य रखते हैं, तो स्थापित क्षमता को 450 गीगावाट से बढ़ाकर 700 गीगावाट करना होगा। यदि हम जलविद्युत को नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा मानते हैं तो हमें नई अक्षय ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाकर 630 गीगावाट करने की आवश्यकता होगी।
4 कार्बन की तीव्रता में 45 फीसद की कमी
कार्बन की तीव्रता (इंटेंसिटी) अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की कार्बन के उत्सर्जन को मापती है और मांग करती है कि अर्थव्यवस्था के बढ़ने पर इन्हें कम किया जाए। सीएसई के अनुसार, भारत ने 2005-2016 के बीच सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 25 प्रतिशत की कमी हासिल की है। 2030 तक 40 प्रतिशत से अधिक हासिल करने की राह पर है। अब भारत को परिवहन क्षेत्र, सीमेंट, लोहा और इस्पात, गैर-धातु खनिज, रसायन जैसे क्षेत्रओं से उत्सर्जन को कम करने के लिए अधिक उपाय करने होंगे।
5 2070 तक नेट जीरो
ओईसीडी देशों ने नेट जीरो का अपना लक्ष्य 2050 और चीन ने 2060 घोषित किया है। भारत का 2070 का नेट जीरो का लक्ष्य इसका ही विस्तार है और इसके खिलाफ तर्क नहीं दिया जा सकता है। हालांकि, यह संयुक्त नेट जीरो लक्ष्य दुनिया को 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि से नीचे नहीं रख सकता है और इसका मतलब है कि ओईसीडी देशों को 2030 तक अपने उत्सर्जन में कमी लानी होगी। चीन के उत्सर्जन में भारी कमी लाई जानी चाहिए।
(स्नेत: डाउन टू अर्थ)