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जानिए- 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराने में क्या है अंतर और उनकी वजह

स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस मनाने की वजह तो बहुत से लोगों को पता होगी लेकिन दोनों दिवसों पर झंडा फहराने का तरीका भी अलग है ये कम लोग जानते हैं। केवल छह बिंदुओं में जानें अंतर।

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 14 Aug 2019 06:59 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 08:21 AM (IST)
जानिए- 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराने में क्या है अंतर और उनकी वजह
जानिए- 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडा फहराने में क्या है अंतर और उनकी वजह

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 73वें स्वतंत्रता दिवस समरोह की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले की प्राचीर से तिरंगा लहराकर उसे नमन करेंगे। इसके साथ ही समारोह की शुरूआत होगी। प्रत्येक साल स्वतंत्रता दिवस इसी तरह से लाल किले पर मनाया जाता है। वहीं गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के मौके पर राजपथ पर राष्ट्रपति तिरंगा फहराकर उसे नमन करते हैं। क्या आप जानते हैं दोनों राष्ट्रीय समारोह के स्थल अलग-अलग क्यों हैं? दोनों दिवस पर झंडा फहराने में क्या अंतर है?

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किसी भी देश का राष्ट्रध्वज उसकी पहचान होता है। उसकी शान बरकरार रखने के लिए सैनिक ही नहीं आम जनता भी हर वक्त बलिदान देने को तैयार रहती है। भारत की आजादी और इसकी अखंड को बरकरार रखने के लिए बहुत से लोगों ने बलिदान देकर इसे तिरंगे का सम्मान बरकरार रखा। ऐसे में हमें भी इसके बारे में सारी जानकारी होना आवश्यक है।

ध्वजारोहण और ध्वज फहराना

15 अगस्त के दिन देश को आजादी मिली थी। इसी दिन ब्रिटिश झंडे को उतारकर भारतीय ध्वज को ऊपर चढ़ाया गया और फहराया गया था। झंडे को नीचे से ऊपर ले जाकर फहराने की इस प्रक्रिया को ध्वजारोहण (Flag Hoisting) कहते हैं। इसलिए 15 अगस्त को ध्वजारोहण किया जाता है। वहीं 26 जनवरी को हमारा संविधान लागू हुआ था। इसलिए उस दिन पहले से ऊपर बंधे झंडे को केवल फहराया (Flag Unfurling) जाता है।

प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति

15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं। वहीं 26 जनवरी को राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रधानमंत्री देश के राजनीतिक प्रमुख होते हैं, जबकि राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होते हैं। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ था, इसलिए गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं।। इससे पहले आजाद भारत का न तो कोई संविधान था और न ही राष्ट्रपति था।

लाल किला व राजपथ

स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन लाल किले पर ही किया जाता है। दरअसल, 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किला स्थिति लाहौरी गेट के ऊपर से ही भारतीय ध्वज फहराया था। वहीं 26 जनवरी 1950 को आजाद भारत का संविधान लागू होने पर पहले गणतंत्र दिवस समारोह का आयोजन राजपथ पर किया गया था। बाद के कुछ वर्ष में गणतंत्र दिवस का आयोजन कुछ अलग जगहों पर भी किया गया था।

पीएम व राष्ट्रपति का संबोधन

15 अगस्त पर प्रधानमंत्री लाल किले से देश को संबोधित करते हैं, जबकि इसकी पूर्व संध्या पर मतलब 14 अगस्त की शाम को राष्ट्रपति राष्ट्र को संबोधित करते हैं। गणतंत्र दिवस के मौके पर किसी का संबोधन नहीं होता है।

समारोह में भी है परिवर्तन

15 अगस्त और 26 जनवरी का दिन देश के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण है। दोनों दिन धूमधाम से देश की राजधानी दिल्ली में सरकारी स्तर पर सार्वजनिक समारोह आयोजित किए जाते हैं। देश के अन्य हिस्सों और सभी राज्यों में भी इस मौके पर कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं। बावजूद इन कार्यक्रमों में कुछ आधारभूत अंतर होता है। 15 अगस्त के दिन परेड का आयोजन नहीं होता है, जबकि 26 जनवरी पर सैनिकों, अर्धसैनिक बलों आदि की काफी लंबी परेड होती है। इसमें दिलकश झाकियां और रंगारंग कार्यक्रम को भी शामिल किया जाता है। गणतंत्र दिवस समारोह के जरिए देश जल, थल और नभ में अपनी सैन्य ताकत और सांस्कृति की झलग का प्रदर्शन करता है।

मुख्य अतिथि

15 के कार्यक्रम के कार्यक्रम में बाहर से किसी मुख्य अतिथि को बुलाने की परंपरा नहीं है, जबकि 26 जनवरी समारोह में किसी न किसी राष्ट्राध्यक्ष को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया जाता है।

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