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'तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित है भारत की कोविड-19 से लड़ने की रणनीति,जरूर मिलेगी सफलता'

दुनिया की किसी भी बीमारी को खत्‍म करने के लिए तीन सिद्धांतों पर काम किया जाता है। इन्‍हीं पर भारत की रणनीति भी तैयार हुई है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 10 May 2020 11:31 AM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 11:31 AM (IST)
'तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित है भारत की कोविड-19 से लड़ने की रणनीति,जरूर मिलेगी सफलता'
'तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित है भारत की कोविड-19 से लड़ने की रणनीति,जरूर मिलेगी सफलता'

डॉ शेखर मांडे। भारत ने कोरोना महामारी के खिलाफ बहुत जल्दी और सही तरीके से कई रणनीतियों को अपनाया। देशव्यापी लॉकडाउन महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसके जरिए शारीरिक दूरी को आक्रामक रूप से प्रोत्साहित किया गया। भारत की रणनीति भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी समाधानों के आसपास केंद्रित है। आरोग्य सेतु एप का क्रियान्यवन भारत सरकार की ओर से उठाया सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम रहा। दुनिया इस बात पर सहमत है कि कोविड-19 पर नियंत्रण लोगों के परीक्षण से ही संभव है और इसके बाद संपर्कों की ट्रेसिंग के जरिए। एक बार संपर्क का पता लगाने के बाद उन्हें आइसोलेट कर दें, जिससे कि संक्रमण को आगे फैलने से रोका जा सके। इसे भारत में शुरुआती दिनों में ही लागू किया गया।

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किसी भी बीमारी को नियंत्रित करने के लिए तीन सिद्धांत निदान, टीकाकरण और हस्तक्षेप हैं। इन सभी के तेजी से और सटीक होने की आवश्यकता है। भारत की रणनीति भी इन तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित है। कोविड-19 को नियंत्रित करने की कुंजी शीघ्र पहचान है। वर्तमान समय में सर्वाधिक स्वर्णिम आरटी पीसीआर पहचान है। कोविड-19 के लिए एंटीबॉडी 6-10 दिनों के बाद ही विकसित होते हैं। इसलिए एंटीबॉडी आधारित परीक्षणों का उपयोग पहचान के रूप में अंकित नहीं किया जाता है। यद्यपि एंटीबॉडी आधारित परीक्षणों से उन लोगों का पता लगाने में आसानी होती है, जिनमें अतीत में लक्षण नजर नहीं आने वाला संक्रमण हुआ है और उनकी ट्रेसिंग के जरिए उच्च प्रसार वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है।

टीएचएसटीआइ, फरीदाबाद और टीसीएस के साथ मिलकर सीएसआइआर ने इस दिशा में अध्ययन शुरू किया है। यदि यह सफल होता है तो पूरे देश में एक ही रणनीति अपनाई जा सकती है और जल्द रोकथाम में मदद मिल सकेगी। हालांकि, आरटी पीसीआर आधारित परीक्षण को कोविड -19 के निदान में स्वर्णिम मानक के रूप में माना गया है। अन्य परीक्षणों को भी तत्काल विकसित किया गया है। इसकी पहचान के लिए कुछ उल्लेखनीय कार्य एससीटीआइएमटी, तिरुवनंतपुरम में विकसित आरटी एलएएमपी परीक्षण का विकास और आइजीआइबी, दिल्ली में विकसित एफईएलयूडीए परीक्षण है। ये दोनों परीक्षण तेज, सटीक और सस्ते हैं। यह सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है कि स्वदेश में विकसित परीक्षण जल्द ही पूरी दुनिया में एक मानदंड बन जाएगा।

भारतीय कंपनियां कुछ समय के लिए दुनिया भर में टीकों की प्रमुख आपूर्तिकर्ता रही हैं। इन सभी कंपनियों ने कोविड-19 के खिलाफ टीका खोजने के लिए दुनिया के शैक्षिक समुदाय से हाथ मिलाया है। इस समय कई भारतीय कंपनियों द्वारा वैक्सीन का परीक्षण किया जा रहा है। वैक्सीन के रूप में भारतीय फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री पूरी दुनिया में जेनेरिक दवाओं के उत्पादन और विपणन के लिए जानी जाती है। इन सभी कंपनियों ने एक बार फिर प्रदर्शित किया है कि वे कई एजेंसियों और कई संस्थानों के साथ मिलकर नई दवाओं की खोज कर सकती हैं।

नई दवाओं की खोज में यह माना जाता है कि नई दवाओं की तुलना में पुनर्निर्मित दवाओं के बहुत जल्दी खोजे जाने की संभावना है। टीकों की तरह ही नई दवाओं को खोजना भी लंबी प्रक्रिया है, जिसमें 8-12 साल लगते हैं। इसलिए कोविड -19 के खिलाफ इलाज खोजने के लिए पुनर्निर्मित दवाएं सबसे अच्छा मौका हो सकती हैं। लोगों के कल्याण में आयुर्वेदिक सूत्रीकरण का पता लगाना एक और रोमांचक तरीका होगा। आयुष मंत्रालय ने परंपरागत समाधान खोजने की कोशिश में स्वास्थ्य मंत्रालय और सीएसआइआर के साथ भागीदारी की है। उम्मीद है कि इन प्रयासों से जल्द ही अच्छे परिणाम मिलेंगे।

(लेखक वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्‍ली के महानिदेशक हैं) 

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