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मालाबार अभ्‍यास से डरा हुआ है ड्रैगन, जानें कहां और कब हुई इसकी शुरुआत और कैसे पड़ा नाम

मालाबार के 24वें संस्‍करण में इस बार आस्‍ट्रेलिया भी शामिल हो रहा है। इस लिहाज से ये एक्‍सरसाइज काफी खास हो गई है। चीन पहले से ही इसको लेकर काफी चिढ़ा और डरा हुआ है। नवंबर में होने वाली इस एक्‍सरसाइज से इनकी शक्ति को आंका जा सकेगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 05:07 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 07:07 AM (IST)
मालाबार अभ्‍यास से डरा हुआ है ड्रैगन, जानें कहां और कब हुई इसकी शुरुआत और कैसे पड़ा नाम
मालाबार का 24वां संस्‍करण नवंबर में शुरू होगा।

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। क्‍वाड देशों के सदस्‍यों के बीच होने वाला मालाबार अभ्‍यास इस बार और खास होने वाला है। इसकी वजह ये है कि इस बार इसमें जापान के अलावा आस्‍ट्रेलिया भी शामिल होने वाला है। आस्‍ट्रेलिया को इसमें शामिल करने पर काफी समय से चर्चा चल रही थी लेकिन अब इस पर सभी देशों की सहमति बन गई है। मालाबार अभ्‍यास में अब से पहले अमेरिका और भारत शामिल होते रहे थे। इसके बाद इसमें जापान शामिल हुआ और अब आस्‍ट्रेलिया के शामिल होने से इसकी ताकत और बढ़ जाएगी।

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आपको बता दें कि हाल ही में क्‍वाड की टोक्‍यो में बेहद खास बैठक हुई थी जिसमें सदस्‍य देशों के विदेश मंत्रियों ने हिस्‍सा लिया था। इसी बैठक में आस्‍ट्रेलिया को इसमें शामिल करने पर मुहर लगी थी। इस बार मालाबार अभ्‍यास नवंबर में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच होगा। ये अभ्‍यास जहां इन देशों की एकजुट हुई शक्ति को दिखाएगा बल्कि चीन के लिए ये कहीं न कहीं परेशानी का सबब भी बनने वाला है। इसबार होने वाला अभ्‍यास इसका 24वां एडिशन होगा। आपको बता दें कि चीन पहले ही क्‍वाड और इस तरह के अभ्‍यास के खिलाफ है। चीन का कहना है कि ये संगठन उसके खिलाफ बना है जबकि वो किसी भी देश के खिलाफ नहीं है।

गौरतलब है कि 1992 में भारत-अमेरिका के बीच नौसेना के साझा युद्ध अभ्‍यास को लेकर एक समझौता हुआ था। उस वक्‍त अमेरिका और रूस के बीच वर्षों तक चला शीतयुद्ध खत्‍म हो चुका था। ये अभ्‍यास मई में हुआ था। क्‍योंकि ये अभ्‍यास भारत के दक्षिणी राज्‍य केरल के मालाबार में हुआ था इसलिए इसको मालाबार एक्‍सरसाइज या मालाबार अभ्‍यास का नाम दिया गया था। उस वक्‍त कहा जाता था कि सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत अमेरिका से नजदीकी बनाना चाहता है। 1998 तक इसके तीन अभ्‍यास हुए थे। बाद में अमेरिका ने भारत के परमाणु कार्यक्रम से नाराज होकर इसको सस्‍पेंड कर दिया था। अमेरिका में 9/11 हमले के बाद अमेरिका के रुख में बदलाव आया और तत्‍कालीन अमेरिकी राष्‍ट्रपति जॉर्ज डब्‍ल्‍यू बुश ने भारत से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में साथ देने की पेशकश की। इसके बाद एक बार फिर से दोनों देशों के बीच रिश्‍ते परवान चढ़े और इसकी दोबारा शुरुआत हुई।

वर्ष 2007 में बंगाल की खाड़ी में आयोजित मालाबार नौसेनिक अभ्यास पर चीन ने आपत्ति जाहिर की थी क्योंकि इसमें भारत, अमेरिका और जापान के अलावा सिंगापुर-ऑस्ट्रेलिया भी हिस्सा लेने वाले थे। ये दोनों ही अस्‍थाई सदस्‍य थे। चीन के दबाव में ऑस्ट्रेलिया ने अंतिम समय में इस अभ्यास में आने से मना कर दिया। 2015 में जापान इसका हिस्सा बना। यह सालाना अभ्यास 2018 में फिलीपींस के समुद्री इलाके गुआम तट और 2019 में जापान के ससेबो शहर के समीप पश्चिमी प्रशांत महासागर में हुआ था। इस बार का ये युद्धाभ्यास समुद्र में बिना संपर्क विषय पर केंद्र‍ित है। इस अभ्यास से मित्र देशों की नौसेना के बीच समन्वय मजबूत होगा। जहां तक क्‍वाड की बात है तो आपको बता दें कि इसको बनाने की पहल 2017 में मनीला में आसियान शिखर सम्मेल के दौरान हुई थी जब चारों देशों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों ने इसमें अपने देशों की अगुवाई की थी। लेकिन चारों देशों के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक पिछले साल ही न्यूयार्क में हुई थी।

जहां तक चीन और क्‍वाड के सदस्‍य देशों की बात है तो आपको बता दें कि चीन के बढ़ते कदमों की आहट से ये सभी परेशान हैं। जापान और चीन के बीच भी वर्षों से सीमा विवाद है। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर को लेकर अमेरिका-आस्‍ट्रेलिया और जापान के साथ भारत भी चीन के खिलाफ खड़ा है। दुनिया के सभी देश इस क्षेत्र को सभी के लिए खुला मानते हैं जबकि चीन का कहना है कि ये उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। यहां पर उसने इंसान द्वारा बनाए गए द्वीपों पर अपने नौसेनिक बेस तैयार किए हैं। यहां से गुजरने वाले आस्‍ट्रेलियाई फाइटर जेट पर भी वो लेजर से हमला कर चुका है। इस तरह के हमले अक्‍सर चेतावनी देने के लिए किए जाते हैं जिसमें कुछ समय के लिए पायरलट को कुछ दिखाई नहीं देता है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि दुनिया में सबसे अधिक इसी मार्ग से समुद्री व्‍यापार होता है और ये क्षेत्र प्राकृतिक गैस के भंडार समेत अन्‍य खनिजों के लिए भी जाना जाता है। यही वजह है कि चीन इसको छोड़ना नहीं चाहता है।

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