जानें राज्यों द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव करने पर क्या है विशेषज्ञ की राय, किस करवट होगी अर्थव्यवस्था
भारत के कुछ राज्यों ने अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव किया है। यूपी से हुई शुरुआत के बाद अब कई राज्य इस तरह के कदम उठाते दिखाई दे रहे हैं।
नई दिल्ली। कोरोना वायरस ने छोटे और बड़े उद्योगों पर जो ताले लटकाए हैं उसकी वजह से भारत की अर्थव्यवस्था को काफी झटका लगा है। हालांकि इससे केवल भारत ही प्रभावित नहीं हुआ है बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। भारत ने लॉकडाउन से धीरे-धीरे बाहर आने का जो फैसला किया है उसके तहत ही अब कुछ राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाव या उसको निलंबित करने जैसे बड़े कदम उठाए हैं। ये कदम राज्य और देश की अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए उठाए गए हैं। गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गोवा समेत कुछअन्य राज्य भी अब इसी राह पर आगे बढ़ चले हैं।
इस बारे में सन रिजोल्यूशन प्रोफेशनल प्राइवट लिमिटेड के निर्देशक और वित्तीय विशेषज्ञ अजीत कुमार मानते हैं कि इस पहल से देश और उद्योग से जुरे हर वर्ग के लिये फायदा होगा और देश के अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी। लेकिन ये ध्यान रखना होगा कि श्रम अधिनियमों में बदलाव सिर्फ कुछ समय के लिए हो। दैनिक जागरण से उन्होंने कहा कि श्रम अधिनियमों में बदलाव एक व्यवस्था है जो वर्तमान परिस्थिति से बहार निकले के लिए है। अभी जो हालात उद्योग के हैं, उसको देखते हुए यह फैसला सरकार का सही है। उद्योग को फिर से पटरी पर लाने के लिए सरकार एक वातावरण बनाना चाहती है जिससे उद्योगपतियों को दोबारा पटरी पर आने में सहयोग मिलेगा।
उद्योग विभाग में बहुत compliance या अनुपालन होते है अब अगर उद्योग केबल अनुपालन पे धयान देगा और हर अनुपालन की अपनी लागत होती है। पहले आप कर्मचारी से 48 घंटा ही काम करवा सकते थे और ओवर टाइम की भी तय सीमा थी। इस स्थिति में किसी भी उद्योग को दोबारा शुरू करना थोड़ा मुश्किल होता। फिर कैसे उत्पादन होगा और कैसे रोजगार पैदा होगा। ऐसे में यह नहीं सोचना चाहिए की सिर्फ उद्योग को फायदा होगा, वर्तमान परिस्थिति देखते हुए उद्योग वर्ग के हर सदस्य को त्याग करना होगा। अधिनियमों में बदलाव से उद्योग को कर्तव्य से मुक्त किया है जिससे वह अनुकूल वातावरण बना सके और उत्पादन समेत रोजगार में वृद्धि हो।
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