Move to Jagran APP

चिंता का विषय: छत्तीसगढ़ में लगातार घट रही विशेष संरक्षित जनजातियों की आबादी

'सरगुजा जिले के राजपुर विकासखंड के ग्राम लाऊ में बीते सप्ताह दो दिन के भीतर दो कोरवा बच्चों की मौत हो गई। इनमें से एक की उम्र पांच व दूसरे की सात वर्ष थी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 12:25 PM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 12:38 PM (IST)
चिंता का विषय: छत्तीसगढ़ में लगातार घट रही विशेष संरक्षित जनजातियों की आबादी
चिंता का विषय: छत्तीसगढ़ में लगातार घट रही विशेष संरक्षित जनजातियों की आबादी

रायपुर (संजीत कुमार)। 'सरगुजा जिले के राजपुर विकासखंड के ग्राम लाऊ में बीते सप्ताह दो दिन के भीतर दो कोरवा बच्चों की मौत हो गई। इनमें से एक की उम्र पांच व दूसरे की सात वर्ष थी। एक की मौत खून की कमी और बुखार की वजह से हुई। वहीं, दूसरा लंबे समय से बीमार था। बुधवार (25 जुलाई) की रात फिर उसकी तबीयत बिगड़ गई। परिवार वाले एम्बुलेंस के लिए चक्कर लगाते रहे, लेकिन दो घंटे तक उन्हें कोई मदद नहीं मिली, इस बीच बच्चे ने दाम तोड़ दिया।"

loksabha election banner

छत्तीसगढ़ में विशेष संरक्षित जनजातियों की स्थिति की यह एक बानगी मात्र है। तेजी से विलुप्त हो रहे इन आदिवासियों को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया गया है। राज्य में ऐसी आधा दर्जन से अधिक जनजातियां हैं। सरकार ने इनके संरक्षण के नाम पर आधा दर्जन प्राधिकरण बने हुए हैं। कई योजनाएं चल रही हैं, लेकिन यह सब कागजों में है, क्योंकि सरकार की तमाम कोशिश के बाद भी राज्य में इनकी आबादी घट रही है।

सबसे ज्यादा संकट में बिरहोर
राज्य की विशेष संरक्षित जनजातियों में शामिल बिरहोर इस वक्त सबसे ज्यादा खतरे में हैं। इस जनजाति के लोग रायगढ़, जशपुर, बिलासपुर और कोरबा जिले के दुगर्म जंगली क्षेत्रों में रहते हैं। 2001 की जनगणना में बिरहोर के आठ सौ परिवार में लगभग तीन हजार सदस्य थे। अब इनकी संख्या 25 सौ के आसपास बची है।

चार जनजातियों को लेकर विशेष चिंता
बिरहोर के साथ ही पहाड़ी कोरवा, पण्डो व अबूझामाड़िया की भी आबादी में चिंताजनक रूप से कमी आई है। आदिमजाति कल्याण विभाग के अफसर भी मान रहे हैं कि इन चारों जनजातियों को जो स्थिति है, अगर ध्यान नहीं दिया गया तो अगले कुछ सालों में ये इतिहास के पन्न्ों में सिमट कर रह जाएंगे।

आधी रह गई बैगा जनजाति
संरक्षित जनजातियों में शामिल बैगा आदिवासियों की संख्या 10 साल पहले 71 हजार के करीब थी। अब इनकी संख्या घटकर 42 हजार के आसपास आ गई है। यही स्थिति कमार जनजाति की भी है।

नसबंदी पर लगी रोक भी हटा ली
संरक्षित जनजातियों की घटती जनसंख्या को देखते हुए मध्यप्रदेश सरकार ने 13 दिसम्बर 1979 को इनकी नसबंदी पर रोक लगाई थी। छत्तीसगढ़ सरकार के एक अप्रैल 2015 को सभी कलेक्टरों को पत्र जारी कर इसका कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया था। इस बीच करीब दो साल पहले राज्य सरकार ने सशर्त नसबंदी की अनुमति दे दी। सरकार का तर्क है कि जनजाति के लोग ही इसकी मांग कर रहे थे।

करीब सवा फीसद घटी आबादी
छत्तीसगढ़ में विशेष संरक्षित ही नहीं, सामान्य आदिवासियों की भी आबादी घट रही है। 2011 में हुई जनगणना में राज्य में कुल 78 लाख 22 हजार आदिवासी थी। यह राज्य की कुल आबादी का 30.62 फीसद है, जबकि 2001 में हुई जनणना में आदिवासियों की कुल आबादी 31.8 प्रतिशत था। इस तरह अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या में 1.18 फीसदी कमी आई है।

इस वजह से घट रही आबादी 
आदिवासी मामलों के जानकारों के अनुसार जंगल में सरकार की दखल बढ़ने का असर आदिवासियों की जनसंख्या पर पड़ रहा है। खनिज संसाधनों के दोहन टाइगर रिजर्व समेत अन्य रिजर्व के नाम पर उन्हें विस्थापित किया जा रहा है। सरगुजा और बिलासपुर संभाग में आदिवासियों की जनसंख्या घटने की सबसे बड़ी वजह यही है। वहीं, बस्तर में नक्सलवाद की वजह से आदिवासी पलायन कर रहे हैं। इसका भी असर आबादी पर पड़ रहा है।

क्‍या कहते हैं जानकार
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम (रिटायर्ड आइएएस) के मुता‍बिक छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी घटी है, विशेष स्र्प से विशेष पिछड़ी जनजातियों की। दरअसल पिछड़ी जनजातियां दुर्गम क्षेत्रों में रहती हैं और बड़ी संख्या में कुपोषित भी हैं। इसी वजह से मर भी रहे हैं। दुर्गम क्षेत्रों में हैं, इसलिए सरकारी मदद भी समय पर नहीं पहुंच पाती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.