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सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बैंच को सौंपा सबरीमाला का मामला, जानें क्‍या है पूरा विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाली मंदिर मामले को बड़ी बैंच को सौंप दिया है। अब इस पर दोबारा सुनवाई होगी। जानें पूरा विवाद।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 03:25 PM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2019 11:18 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बैंच को सौंपा सबरीमाला का मामला, जानें क्‍या है पूरा विवाद
सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बैंच को सौंपा सबरीमाला का मामला, जानें क्‍या है पूरा विवाद

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। सुप्रीम कोर्ट में दायर केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बैंच को सौंप दिया है। अब इस पर बड़ी बैंच ही फैसला लेगी। आपको बता दें कि यह मामला उन पांच मामलों में से एक था जिसपर सुप्रीम कोर्ट को फैसला सुनाना था। आपको बता दें कि सबरीमाला मंदिर का मामला वहां पर महिलाओं के प्रवेश से जुड़ा है। 11 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए संवैधानिक पीठ को भेजने की बात कही थी, जिसके बाद 2017 में इसको इस पांच सदस्‍यीय संवैधानिक पीठ को सौंप दिया गया था। आपको बता दें कि पिछले वर्ष 28 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट इस मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति दी थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं का सर्वोच्‍च है। यहां पर उन्‍हें देवी के रूप में पूजा जाता है ऐसे में मंदिर में उनका प्रवेश रोकना स्‍वीकार्य नहीं है। 

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4-1 से पास हुआ था फैसला 

इस फैसले को सुनाने वाली पांच सदस्यीय पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति नरीमन, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर शामिल थे। इस मामले में चार जजों की राय एक थी जबकि जस्टिस इंदु मल्‍होत्रा का फैसला इनसे अलग था। उन्‍होंने इस मामले में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी थी। उनका कहना था कि धार्मिक मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। कोर्ट के इस फैसले का केरल और कुछ लोगों ने जबरदस्‍त विरोध किया था। कोर्ट के फैसले का विरोध करने वालों का कहना था कि क्‍योंकि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे, लिहाजा यहां पर 10 वर्ष से लेकर 50 वर्ष तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। 

क्‍या था विवाद 

इस विवाद की शुरुआत उस वक्‍त शुरू हुआ था जब मंदिर के मुख्य ज्योतिषि परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने कहा कि भगवान अयप्‍पा की ताकत मंदिर में किसी महिला के प्रवेश करने की वजह से कम हो रही है। इसके बाद दक्षिण भारत की अभिनेत्री जयमाला ने कहा कि 1987 में वह अपने पति के साथ मंदिर में दर्शन के लिए गई थीं। लेकिन वहां पर भीड़ अधिक होने के कारण धक्‍का-मुक्‍की में वह मंदिर के गर्भगृह तक पहुंच गईं और भगवान अयप्‍पा के चरणों में गिर गईं। उस वक्‍त वहां मौजूद पुजारी ने उन्‍हें फूल भी दिए थे। उन्‍होंने ये भी कहा कि उनके इस कृत्‍य से अयप्‍पा नाराज हुए हैं जिसका उन्‍हें अब प्रायश्चित करना है। इस दावे के बाद मंदिर का शुद्धिकरण करवाया गया।इस दावे के बाद ही सामने आया कि यहां पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। 1990 ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 

महिलाओं के खिलाफ था हाईकोर्ट का फैसला

1991 में केरल हाईकोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा कि सदियों पुरानी यह परंपरा सही है। कोर्ट का कहना था कि मासिक धर्म की उम्र वाली महिलाओं का मंदिर में प्रवेश निषेध न तो संविधान का और न ही केरल के कानून का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर मंदिर के फैसले को सही ठहराया था। 

सुप्रीम कोर्ट में मामला 

केरल के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने वर्ष 2006 में इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस याचिका पर कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से जवाब मांगा था। बोर्ड ने अपने जवाब में कहा कि क्‍योंकि  भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे, लिहाजा यहां पर महिलाओं का प्रेवश वर्जित है। अपने जवाब में उन्‍होंने महिलाओं को होने वाले मासिक धर्म को एक प्रमुख वजह बताया था। 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला 

नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में है। इस वर्ष एलडीएफ सरकार ने इस पर सकारात्मक नजरिया दिखाया था। हालांकि बाद में राज्‍य में बनी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार ने अपना पक्ष बदल दिया था। चुनाव में हारने के बाद यूडीएफ फिर कहा कि वह सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ है।

फैसले पर लोगों का रवैया 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ज्‍यादातर लोगों ने विरोध किया था। यूडीएफ का कहना था यह परंपरा बीते 1500 साल से चली आ रही है। इतना ही नहीं भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने भी इस विवाद के बाद सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की बात कही थी। संविधान पीठ के फैसले पर दोबारा विचार करने के लिए कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं भी दायर की गई थींं। हालांकि कोर्ट ने इनकी जल्‍द सुनवाई से इनकार कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि यह मामला नियमित तरीके से सुना जाएगा। यह याचिकाएं नायर समुदाय की संस्था तथा दिल्ली की चेतना कन्साइंस ऑफ वुमन, नेशनल अय्यपा डिवोटी एसोसिएशन, भगवान अय्यपा की जन्मस्थली से जुड़े पंडालम पैलेस तथा महिला भक्तों की संस्था पीपुल ऑफ धर्मा की ओर से दायर की गई थीं। 

एक नजर इधर भी  

मंदिर की मानें तो मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 सीढि़यों को चढ़कर आना होता है, जिन्‍हें बेहद पवित्र माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु इसके लिए 41 दिनों का व्रत रखते हैं। यहां पर आने वाले श्रद्धालु काले या नीले रंग के कपड़े पहनते हैं। जब तक ये यात्रा पूरी नहीं हो जाती तब तक श्रद्धालु दाढ़ी तक नहीं बनाते हैं। 

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