Move to Jagran APP

जानें क्‍या है RCEP समझौता जिसको लेकर सशंकित हैं देश के कुछ सेक्‍टर

बैंकॉक में आरसीईपी की बैठक में एक समझौते पर सहमति बन सकती है। इस समझौते के बाद व्‍यापार में आने वाली बाधाएं खत्‍म हो जाएगी।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 11 Oct 2019 04:57 PM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 11:34 AM (IST)
जानें क्‍या है RCEP समझौता जिसको लेकर सशंकित हैं देश के कुछ सेक्‍टर
जानें क्‍या है RCEP समझौता जिसको लेकर सशंकित हैं देश के कुछ सेक्‍टर

नई दिल्ली [जागरण स्‍पेशल]। दुनिया के करीब 16 देशों के बीच होने वाले एक समझौता होने जा रहा है। इसको लेकर भारत में कुछ संगठन चिंता जता रहे हैं। इस सिलसिले में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक जाने वाले हैं। यहां पर क्षेत्रीय व्यापक आर्थ‍िक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership/RCEP) का 8वीं बैठक होने वाली है। सरकार जहां इस समझौते के पक्ष में है तो कुछ संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। इस समझौते का विरोध करने वालों में नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड (National Dairy Development Board) भी शामिल हैं।

loksabha election banner

इसलिए है चिंता 

एनडीडीबी का कहना है कि भारत डेयरी उत्‍पादन में काफी बेहतर स्थिति में है। ऐसे में यदि यह समझौता होता है और विदेशी उत्‍पाद भारत में आते हैं तो इससे देश के डेयरी उद्योग को नुकसान होगा। NDDB के मुताबिक यदि सरकार आयात कर को कम कर देगी तो ऐसी सूरत में बाहर से सस्‍ता मिल्‍क पाउडर देश के बाजार में आ जाएगा। यह हमारे देश के उन किसानों और लोगों के लिए सही नहीं होगा जो दूध को एक व्‍यवसाय के रूप में इस्‍तेमाल करते हैं। भारत के इन्‍हीं लोगों की वजह से आज हम दुग्‍ध और इससे निर्मित उत्‍पाद में आत्‍मनिर्भर हुए हैं। वर्ष 2016-17 में भारत में इससे होने वाली कमाई धान,गेंहू और गन्‍ना से होने वाली कमाई से कहीं अधिक थी। 

नवंबर में दिया जाएगा समझौते को अंतिम रूप

इस समझौते को लेकर बातचीत वर्ष 2013 से चल रही है, लेकिन अब इसको अंतिम रूप देने की कवायद की जा रही है। इसको नवंबर में बैंकॉक में होने वाली समिट में अंतिम रूप दिया जाएगा, जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी भी भाग लेंगे। इस समझौते के लिए शामिल हुए देशों में आसियान के दस देशों के अलावा चीन, भारत, आस्‍ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान और न्‍यूजीलैंड शामिल हैं। इसमें आसियान के दस सदस्‍य देशों में ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, थाइलैंड और वियतनाम शामिल हैं।

व्‍यापार में आने वाली बाधाएं होंगी खत्‍म

दरअसल, यह समझौता RCEP के जरिए 16 देशों के बीच एक एकीकृत बाजार बनाए जाने को लेकर है। इस समझौते से एक दूसरे देशों में उत्‍पादों की पहुंच आसान हो जाएगी और व्‍यापार में आने वाली बाधाएं खत्‍म हो जाएंगी। इतना ही नहीं, इससे निवेश, तकनीक और ई-कॉमर्स को भी बढ़ावा मिलेगा। यह समझौते में दुनिया की करीब आधी आबादी शामिल हो जाएगी। इन देशों का विश्‍व के निर्यात में करीब एक चौथाई और दुनिया की जीडीपी में करीब 30 फीसद योगदान है। इस समझौते से भारत को भी प्रोडेक्‍ट बेचने के लिए एक बड़ा बाजार मिल जाएगा। इसके तहत भारत पर आयात कर में भी कटौती का दबाव है।

समझौते से पहले ए‍हतियात जरूरी  

इस समझौते का जो विरोध कर रहे हैं उनका कहना है कि विदेशी उत्‍पाद को अपना बाजार सौंपते समय काफी एहतियात बरतनी जरूरी है। मंच को एक डर ये भी है कि कहीं सस्‍ते विदेशी उत्‍पाद के चलते भारतीय बाजार या स्‍वदेशी उत्‍पाद को नुकसान न हो जाए। पहले से ही चीन के सामानों का भारत के बाजार पर कब्‍जा है। यह डर तब और बढ़ जाता है, जबकि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 54 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। ऐसे में यह समझौता हो गया तो यह व्‍यापार घाटा और बढ़ सकता है। इस समझौते के बाद इसके सदस्‍य देशों के बीच मुक्‍त व्‍यापार हो जाएगा। वहीं पहले ही भारत इस तरह के समझौतों का भरपूर लाभ नहीं ले पाया है। लिहाजा, इस समझौते के बाद आसियान देशों के साथ भारत का व्‍यापार घाटा बढ़ने की आशंका है।

कई सेक्‍टर समझौते को लेकर सशंकित

आपको बता दें कि स्टील, कृषि, डेयरी, टेक्सटाइल समेत अन्‍य सेक्टर भी इस समझौते को लेकर आशंकित हैं। दुनिया में भारत दुग्‍ध उत्‍पादन में प्रमुख स्‍थान रखता है। वर्ष 2018-19 में देश में 187.75 मीट्रिक टन दूध का उत्‍पादन हुआ था, जबकि धान का 174.63 मीट्रिक टन और गेहूं का 102.09 मीट्रिक टन उत्‍पादन हुआ था। वहीं डेयरी प्रोडेक्‍ट की बात करें तो अस्‍सी के दशक में हम वैश्विक बाजार में कुछ पीछे थे, लेकिन बीते दो दशकों में हमने न केवल इस क्षेत्र में भी खुद को आत्‍मनिर्भर किया है बल्कि वैश्विक बाजार में एक अच्‍छी साख भी कायम की है। 

यह भी पढ़ें:-
जानें- आखिर कैसे ‘Operation Peace Spring’ कुर्दों के लिए बना है खतरा 
जानें- पीएम मोदी-राष्‍ट्रपति चिनफिंग की मुलाकात पर क्‍या कहती है चीन की सरकारी मीडिया 

पाक मानवाधिकार कार्यकर्ता के मुंह से सुनिए इमरान, कश्‍मीर और आतंकवाद का सच 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.