Modi Jinping Meet का गवाह बनेगा महाबलीपुरम का कृष्णा बटरबॉल, जानें इसकी पूरी कहानी
महाबलीपुरम यूं तो पहले से विश्व के एतिहासिक स्थलों में गिना जाता है लेकिन मोदी-चिनफिंग की मुलाकात से इसकी अहमियत और अधिक बढ़ गई है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पीएम नरेंद्र मोदी की मुलाकात का गवाह बन रहे महाबलीपुरम को विश्व एतिहासिक स्थल का दर्जा हासिल है। यहां चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर और विशाल चट्टानों पर उकेरी गई कलाकृतियां अपने आप में बेहद खास हैं। कभी महाबलीपुरम को मल्लापुरम के नाम से जाना जाता था और ये सातवीं शताब्दी में पल्लव राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। बहरहाल, यहां की हर चीज और हर स्थल बेहद खास है। यहां पहुंचने पर ग्रेनाइट के एक विशाल शिलाखंड पर अचानक नजर जाकर ठहर जाती है। यह विशाल शिलाखंड एक ढलान वाली चट्टान पर बिना किसी सहारे के खड़ा है।
इस विशाल शिलाखंड का नाम वान इराई काल (Vaan Irai Kal) है। इसके अलावा इसको कृष्णा बटरबॉल (Krishna's Butterball) और कृष्णा गिगनेटिक बटरबॉल Krishna's Gigantic Butterball) भी कहते हैं। 250 टन वजनी यह शिलाखंड छह मीटर ऊंचा और पांच मीटर चौड़ा है।
जिस चट्टान पर यह शिलाखंड टिका हुआ है वह भी चार मीटर से कुछ बड़ी है। आपको जानकर हैरत होगी की यह करीब 1200 साल से ऐसे ही है। 1908 में शहर के तत्कालीन गवर्नर ऑर्थर हैवलॉक ने इसको सात हाथियों की मदद से यहां से हटवाने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। उनका मानना था कि एकतरफ झुका ये शिलाखंड सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
पल्लव राजा नरसिंहवर्मन ने भी एक बार इस शिलाखंड को हटाने की ऐसी ही नाकाम कोशिश की थी। एटलस ऑब्सक्यूरा के मुताबिक इसका नाम तमिल में इसका असल नाम वान इराई काल था जिसका अर्थ होता है भगवान का पत्थर (Stone of Sky God)। हिंदु मान्यताओं के अनुसार भगवार श्री कृष्ण ने एक बार हांडी में से मक्खन चुराया था, जिसके चलते इसका नाम कृष्णा बटरबॉल पड़ा था। आज हम जिस नाम से इसको पहचानते हैं इसका श्रेय उस गाइड को जाता है जिसने 1969 में इंदिरा गांधी को इसके दर्शन कराए थे।
समय के साथ इस शिलाखंड का एक हिस्सा खत्म हो गया और आज यह गोलाकार आकार में दिखाई देता है। तमिल राजा राजा चोल इस चट्टान को देखकर काफी प्रभावित हुए थे। इसकी वजह थी इसका बैलेंस जिस वजह से यह आजतक अपनी यथा स्थिति में मौजूद है। आपको जानकर हैरत होगी कि मौजूदा समय में बाजार अपनी जगह पर नाचने वाली मिट्टी की गुडि़या मिलती है उसे भी इसी पत्थर से प्रभावित होकर बनाया गया था। इस नाचने वाली गुडि़या को तंजावुर गुडि़या भी कहा जाता है।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि यह शिलाखंड Ollantaytambo अखंड पत्थर और पेरू के माछूपिछू से भी बड़ा है। यहां पर आने वाले पर्यटकों के लिए यह हमेशा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archeological Survey of India) ने इसको एतिहासिक स्मारक घोषित किया हुआ है।
यह भी पढ़ें:-
जानें- आखिर कैसे ‘Operation Peace Spring’ कुर्दों के लिए बना है खतरा
जानें- पीएम मोदी-राष्ट्रपति चिनफिंग की मुलाकात पर क्या कहती है चीन की सरकारी मीडिया
पाक मानवाधिकार कार्यकर्ता के मुंह से सुनिए इमरान, कश्मीर और आतंकवाद का सच