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जानिए कैसे अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता कश्मीर की शांति के लिए है खतरे की घंटी

पाकिस्तान तालिबान व चीन के बीच सहयोग बढ़ना कश्मीर में शांति के लिए अच्छे संकेत नहीं है। भारत यह भी नहीं भूलेगा कि पूर्व में भी तालिबान ने कश्मीर में आतंक की पौध खड़ी करने में पाकिस्तान की पूरी मदद की है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Tue, 13 Jul 2021 10:51 PM (IST)Updated: Tue, 13 Jul 2021 11:07 PM (IST)
जानिए कैसे अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता कश्मीर की शांति के लिए है खतरे की घंटी
कश्मीर में आतंक फैलाने में पाक कर चुका तालिबान का इस्तेमाल

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तालिबान की दिन प्रतिदिन बढ़ती ताकत पर लगाम लगने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। मंगलवार को जो सूचनाएं वहां से आ रही हैं उससे साफ है कि कम से कम उत्तरी अफगानिस्तान के प्रांतों में तालिबान की ताकत और मजबूत हुई है। अधिकांश जानकार यह मान रहे हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता पर काबिज होने से कुछ महीने दूर है। ऐसे में भारत की चिता सिर्फ वहां अपनी अरबों डालर की परियोजनाओं और वहां काम करने वाले भारतीय नागरिकों की ही नहीं है बल्कि तालिबान के आने से कश्मीर पर पड़ने वाले असर को लेकर भी है। तालिबान का इस्तेमाल पूर्व में भी पाकिस्तान ने कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ाने के लिए किया है और इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह दोबारा ऐसा नहीं करेगा।

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जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी की मजबूत होती संभावनाओं को देखते हुए भारत को कश्मीर को लेकर अपनी सुरक्षा चौकसी को और मजबूत करना होगा। देश के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने हाल ही में कहा है कि तालिबान का अफगानिस्तान में मजबूत होना सीधे तौर पर कश्मीर के हालात से जुड़ा हुआ है। वहां आतंकवादी समूहों को नई ताकत मिल सकती है। भारत को इस बदलाव से सबसे ज्यादा चौकन्ना रहने की जरूरत है।

अफगानिस्तान में चीन दिखा रहा है अपनी सक्रियता

वही कूटनीति से जुड़े सूत्रों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि इस बार हालात इसलिए ज्यादा पेचीदा हैं कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान, तालिबान और इनके साथ चीन भी ज्यादा सक्रिय दिख रहा है। तालिबान ने जिस तरह से चीन के अंदरूनी मामले में दखल नहीं देने की बात कही है वह ध्यान योग्य है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से पाकिस्तान के मीडिया में यह खबर प्रकाशित की जा रही है कि अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने और ढांचागत निर्माण का कार्य चीन की मदद से की जाएगी।

कश्मीर में शांति के लिए अच्छे संकेत नहीं

पाकिस्तान, तालिबान व चीन के बीच सहयोग बढ़ना कश्मीर में शांति के लिए अच्छे संकेत नहीं है। भारत यह भी नहीं भूलेगा कि पूर्व में भी तालिबान ने कश्मीर में आतंक की पौध खड़ी करने में पाकिस्तान की पूरी मदद की है। कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की तरफ से गठित संगठन जैश-ए--मोहम्मद को तैयार करने में तालिबान की भूमिका रही थी। जैश का मुखिया और इंडियन एयरलाइंस के अपहृत जहाज के बदले रिहा किया गया मसूद अजहर लंबे समय तक तालिबान के संपर्क में रहा था। लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक हाफिज सईद के तालिबानी लिक भी जगजाहिर हैं।

कुख्यात आतंकी व अभी अमेरिकी जेल में बंद डेविड हेडली ने भी खुफिया एजेंसियों के साथ पूछताछ में इस बारे में विस्तार से बताया था। तब आइएसआइ ने अफगानिस्तान में सक्रिय विदेशी आतंकियों को कश्मीर में घुसपैठ कराने की योजना बनाई थी। इन सब चिंताओं के बीच भारत के लिए एकमात्र शुभ संकेत यह है कि पिछले वर्ष तालिबान ने कश्मीर का आंतरिक मामला करार दिया था। अब देखना होगा कि सत्ता के करीब पहुंच चुके तालिबानी नेताओं की इस बारे में राय बदली है या नहीं।

दुशांबे में अफगान समकक्ष से जयशंकर की मुलाकात

विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने मंगलवार को यहां अपने अफगान समकक्ष मोहम्मद हनीफ अतमार से मुलाकात की और युद्धग्रस्त देश की स्थिति पर चर्चा की। जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की परिषद और अफगानिस्तान पर एससीओ संपर्क समूह की बैठकों में भाग लेने के लिए दो दिवसीय यात्रा पर मंगलवार को ताजिकिस्तान की राजधानी पहुंचे। जयशंकर ने ट्वीट किया कि अफगान विदेश मंत्री हनीफ अतमार के साथ बैठक करके अपनी दुशांबे यात्रा की शुरुआत की। हाल के घटनाक्रम पर उनके अपडेट की सराहना करें। हम कल अफगानिस्तान पर एससीओ संपर्क समूह की बैठक की प्रतीक्षा कर रहे हैं।


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