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जानिए कैसे युवाओं के कारण विश्व गुरु की भूमिका में होगा भारत, 'नई शिक्षा नीति' से जगी उम्मीद

देश में विश्वविद्यालयों की संख्या हर साल तेजी से बढ़ रही है लेकिन उनके साथ ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बहुत जरूरत है। साथ ही देश में अनुसंधान की बेहद जरूरत है तभी हम दुनिया के दूसरे देशों से मुकाबला कर सकेंगे।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Mon, 01 Feb 2021 06:58 PM (IST)Updated: Mon, 01 Feb 2021 09:06 PM (IST)
जानिए कैसे युवाओं के कारण विश्व गुरु की भूमिका में होगा भारत, 'नई शिक्षा नीति' से जगी उम्मीद
2022 तक देश के युवाओं की मध्यम आयु 28 साल होगी

नई दिल्ली, [जागरण स्पेशल]। भारत में नई शिक्षा नीति होने के बाद से ही एक उम्मीद जगी है कि भारत एक बार फिर विश्व गुरु की भूमिका में होगा। भारत ने हमेशा से ही अपने बौद्धिक ज्ञान को साबित किया है और एक बार फिर वैश्विक स्तर पर नई शिक्षा नीति का प्रभाव देखने को मिलेगा। देश की युवा आबादी को अच्छी शिक्षा और काम मिले तो ऐसी कोई परिस्थितियां नहीं हैं जो उनका रास्ता रोक सकें।

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लगातार बढ़ रहे हैं विश्वविद्यालय

2015, 760

2016, 799

2017, 864

2018, 903

2019, 993

स्रोत: स्टेटिस्टा

चीन से बहुत आगे हैं हम

दुनिया की सबसे बड़ी आबादी चीन में है, लेकिन चीन से ज्यादा स्कूल भारत में हैं। चीन में स्कूलों की संख्या सिर्फ 5 लाख है, जिसकी तुलना में भारत में करीब 15 लाख स्कूल हैं। वहीं चीन के 23.65 छात्रों पर एक अध्यापक है। जिसके मुकाबले में भारत में 35.22 छात्रों पर एक अध्यापक हैं। वैश्विक स्तर पर छात्रों और शिक्षक के मध्य 24:1 का अनुपात होना चाहिए। चीन में यह ठीक है और भारत को इसमें सुधार की जरूरत है।

अध्यापकों की कमी

देश में करीब 10 लाख अध्यापकों की कमी है। आश्चर्यजनक रूप से शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या से भी अधिक अध्यापक हैं और गांवों में उनकी संख्या कम है। हालांकि रिक्तियों की संख्या को भरकर और स्थानांतरण के जरिये हम इस कमी को पूरा कर सकते हैं।

उच्च शिक्षा की है जरूरत

भारत में उच्च शिक्षा को और बेहतर बनाने की जरूरत है। देश में विश्वविद्यालयों की संख्या हर साल तेजी से बढ़ रही है, लेकिन उनके साथ ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बहुत जरूरत है। साथ ही देश में अनुसंधान की बेहद जरूरत है, तभी हम दुनिया के दूसरे देशों से मुकाबला कर सकेंगे। नई शिक्षा नीति में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के जरिये प्रयास किए जाएंगे।

युवा हैं बुलंद भारत की तस्वीर

भारत युवाओं का देश है। 2022 तक देश के युवाओं की मध्यम आयु 28 साल होगी। वहीं चीन और अमेरिका में मध्य आयु 37 साल होगी। वहीं पश्चिमी यूरोप और जापान में यह क्रमश: 45 और 49 होगी। ऐसे में भारत के लिए यह सबसे बड़े अवसर का मौका है। दुनिया के कई देश इस बात के गवाह हैं कि युवा आबादी ने देश की तकदीर और तस्वीर बदल दी है।

कार्यशील जनसंख्या में इजाफा

2018 के बाद से भारत की कार्यशील जनसंख्या (15 से 64 वर्ष के बीच के लोग) आश्रित जनसंख्या (14 वर्ष या उससे कम आयु के बच्चों के साथ-साथ 65 वर्ष से अधिक आयु के लोग) से बड़ी हो गई है। कामकाजी उम्र की आबादी में यह उभार 2055 तक 37 साल तक रहने वाला है। अन्य देशों के उदाहरण से समझें तो कार्यशील जनसंख्या बढ़ने का अर्थ है विकास की तेज रफ्तार।

हमारी ताकत है आबादी

भारत की बड़ी आबादी कभी भी हमारे लिए समस्या नहीं रही है और अब युवा आबादी का साथ देश को तरक्की की राह पर ले जाने में सक्षम है। कई एशियाई देश जिनमें जापान, दक्षिण कोरिया और चीन शामिल हैं ने संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा परिभाषित 'जनसंख्या लाभांश' का इस्तेमाल किया और देखते ही देखते ही दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो गई। जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप यह स्थिति पैदा होती है।

युवा आबादी तो सफलता सुनिश्चित

देश,   शुरुआत,   समाप्त,   कुल समय

जापान, 1964, 2004, 40 साल

इटली, 1984, 2002, 18 साल

दक्षिण कोरिया, 1987, 2027, 40 साल

स्पेन, 1991, 2014, 23 साल

चीन, 1994, 2031, 37 साल

थाइलैंड, 1994, 2028, 34 साल

ब्राजील, 2006, 2038, 32 साल

भारत, 2018, 2055, 37 साल

बांग्लादेश, 2018, 2052, 34 साल

स्वास्थ्य और शिक्षा सफलता की चाबी

सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का उदाहरण हमारे सामने हैं। यदि भारत भी युवाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करे तो वह दिन दूर नहीं जब देश को दुनिया की महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता है। सिंगापुर मंे जनसंख्या लाभांश का साल 1979 में शुरू हुआ था और अगले दस वर्षो में सिर्फ दो साल उसकी आर्थिक वृद्धि 7 फीसद से कम रही थी। वहीं दक्षिण कोरिया में भी ऐसी ही स्थिति देखी गई थी। हम अपने युवाओं को अच्छी शिक्षा के बाद यदि काम देने में भी कामयाब रहना होगा।

दुनिया के प्रमुख देशों में साक्षरता दर

अमेरिका, 99 फीसद

ब्रिटेन, 99 फीसद

फ्रांस, 99 फीसद

जर्मनी, 99 फीसद

ऑस्ट्रेलिया, 99 फीसद

ब्राजील, 93 फीसद

रूस, 100 फीसद

भारत, 74 फीसद

चीन, 97 फीसद

दक्षिण अफ्रीका, 87 फीसद

(2018 के आंकड़े)


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