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जानें कैसे आठ कृषि सखियों ने लिखी आत्मबल और निर्णय क्षमता की पटकथा, पर्यावरण संरक्षण के साथ खेती की सीख दी

फतेहाबाद जिले के अलग-अलग गांवों की इन नारी शक्तियों ने पुरुषों के वर्चस्व वाले कृषि क्षेत्र को पर्यावरण तथा जल संरक्षण की नई दिशा देकर बहुआयामी बनाया है तो समाज में लैंगिक समानता की अवधारणा को मजबूत करने का सुखद संदेश भी दिया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 10 Oct 2021 07:04 PM (IST)Updated: Sun, 10 Oct 2021 07:40 PM (IST)
जानें कैसे आठ कृषि सखियों ने लिखी आत्मबल और निर्णय क्षमता की पटकथा, पर्यावरण संरक्षण के साथ खेती की सीख दी
हरियाणा में हिसार के ग्रामीण अंचल की आठ कृषि सखियां

 मणिकांत मयंक, फतेहाबाद। षष्ठम मां कात्यायनी। आदिशक्ति की आराधना के छठे दिन महर्षि कात्यायन की तपस्या उपरांत उनकी पुत्री के रूप में अवतरित मां कात्यायनी की अर्चना होती है। मां का यह स्वरूप निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करने वाला है। इसका उदाहरण हैं हरियाणा में हिसार के ग्रामीण अंचल की आठ कृषि सखियां- रतिया ब्लाक की प्रकाश देवी, पूजा रानी, रिया रानी, सीमा रानी, राजविंदर कौर, अनुबाला व मनीषा और फतेहाबाद ब्लाक की सिमरजीत कौर।

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(सिमरजीत कौर)

(सीमा रानी)

कृषि क्षेत्र को बनाया बहुआयामी

फतेहाबाद जिले के अलग-अलग गांवों की इन नारी शक्तियों ने पुरुषों के वर्चस्व वाले कृषि क्षेत्र को पर्यावरण तथा जल संरक्षण की नई दिशा देकर बहुआयामी बनाया है तो समाज में लैंगिक समानता की अवधारणा को मजबूत करने का सुखद संदेश भी दिया है। भारत सरकार से सम्मानित इन शक्तियों ने समाज में फैले स्त्री-पुरुष के बीच भेद के रोग व दोष तथा नारी शक्ति के बीच लोकापवाद के डर पर पर मां कात्यायनी की तरह विजय प्राप्त की है।

(राजविंदर कौर)

(प्रकाश कौर)

इतना आसान नहीं था किसान भाइयों को समझाना

कृषि सखी प्रकाश कौर बताती हैं कि जब ग्रामीण विकास मंत्रालय का पायलट प्रोजेक्ट 'सस्टेनेबल राइस प्लेटफार्म' यहां आया तो सामाजिक वर्जनाओं वाले ग्रामीण अंचल में यह काम एवरेस्ट फतह करने जैसा ही था। कारण कि किसान भाइयों को समझाने के लिए उनके घर जाना पड़ता था। इस बात के लिए उन्हें शीशे में उतारना होता था कि फर्टिलाइजर के प्रयोग से क्या दुष्प्रभाव पड़ सकता है। ऐसी खेती करें जो पर्यावरण व शरीर के लिए लाभप्रद हो। अनेक बार झिड़कियां भी सुननी पड़ती थीं कि चली आईं परिवर्तन लाने...। पर, धीरे-धीरे लोग बात मानने लगे।

(अनुबाला)

(पूजा रानी)

खुद आगे आकर मिसाल बनीं

कृषि सखियों ने प्रशिक्षण के आधार पर खुद आगे बढ़कर खेती में हाथ आजमाया। उन्हें प्रोत्साहन राशि भी मिली। सिमरजीत कौर बताती हैं कि उन्होंने ढाई एकड़ जमीन में पारिस्थितिकी एवं शारीरिक लाभप्रद धान की खेती की। छह माह के सीजन में डेढ़ लाख रुपये इन्सेंटिव के मिले।

(रिया रानी)

परिवार ही चुनौतियों की दहलीज

चुनौती का दहलीज परिवार ही था। यह कहना है सिमरजीत कौर का। वह जोड़ती हैं कि परिवार ने इजाजत दे दी तो हौसला बढ़ा। फिर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने सहायता की। पहले स्वयं सहायता समूह फिर ग्राम संगठन, महासंगठन जाने लगीं तो अरमान को पंख मिले। ताकत मिली कि अब पुरुषों के काम वह कर सकती हैं।

(मनीषा)

बेटियों को संदेश, स्वावलंबन की राह पर चलें

इन कृषि सखियों ने देशभर की बेटियों को संदेश दिया है कि भविष्य के लिए वर्तमान को मजबूत करना होगा। आज की नारी शक्ति किसी पुरुष से कहीं भी कमतर नहीं है। अर्थ-प्रधान युग में पुरुषों की मदद पर निर्भर नहीं रहने के लिए स्वावलंबन की राह पर चलना होगा। यह आत्मनिर्भरता ऐसी सीढ़ी है जिसके सहारे समृद्धि के शिखर पर पहुंचा जा सकता है। हौसला रखकर आगे बढ़ें, मंजिल खुद-ब-खुद मिल जाएगी।


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