Corona Vaccination: बूस्टर डोज के बाद एक और खुराक जरूरी, जान लें इसके नुकसान और फायदे
प्री-क्लीनिकल ट्रायल के दौरान देखा गया था कि एक खुराक से पर्याप्त प्रतिरक्षा नहीं मिली। वहीं तीसरे चरण के ट्रायल में देखा गया कि पहली खुराक की तुलना में दूसरी खुराक के बाद ज्यादा एंटीबॉडी और टी सेल बने।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारत सहित दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस को काबू में करने के लिए टीकाकरण प्रारंभ हो चुका है। अभी तक कई देशों में वैक्सीन की दो खुराकों में से पहली ही खुराक दी गई है। कोविड-19 की वैक्सीन ऐसी हैं, जिनमें दोनों खुराक लेने पर ही यह पूरी तरह से असरदार होगी। आइए जानते हैं कि वैक्सीन की पहली खुराक के बाद शरीर में क्या असर होता है और यह कितनी प्रभावी होती हैं।
बूस्टर डोज ऐसे करती है असर
जब इम्यून सिस्टम के पास पहली बार वैक्सीन पहुंचती है तो यह श्वेत रक्त कोशिका के दो महत्वपूर्ण प्रकारों को सक्रिय करती है। पहली प्लाजमा बी सेल है, जो प्राथमिक रूप से एंटीबॉडी बनाती है। दुर्भाग्य से यह कोशिका प्रकार कम समय के लिए जीवित रहती है, जिसके कारण आपके शरीर में कुछ सप्ताह तक ही एंटीबॉडी रह सकती है। दूसरी खुराक के बिना यह अक्सर तेजी से कम होती है। इसके बाद टी-सेल आती हैं जो रोगाणुओं को पहचानकर उन्हें नष्ट करती है। इनमें से कुछ मेमोरी टी-सेल दशकों तक शरीर में बनी रहने में रहने में सक्षम होती हैं। यह इम्युनिटी कभी-कभी जीवन भर रह सकती है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि दूसरी खुराक तक आपके पास इस प्रकार की कई सेल नहीं होंगी।
ये हैं दूसरी खुराक लेने के फायदे
दूसरी खुराक से प्रतिक्रिया के दूसरे भाग की शुरुआत होती है और मॉलिक्यूल रोगाणुओं के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करते हैं। एक बार जब आप वैक्सीन की दूसरी खुराक लगवा लेते हैं तो मेमोरी टी सेल की उच्च आवृति होगी और वैसे ही मेमोरी बी सेल के पूल साइज में कुछ विस्तार होता है। साथ ही उच्च गुणवत्ता वाली एंटीबॉडी भी बनेगी। एक ही वैक्सीन की दूसरी खुराक लगाने पर बी सेल तेजी से विभाजित होकर एक वंश बनाने में सक्षम हैं, जिससे एंटीबॉडी की मात्रा में दूसरी वृद्धि होती है। दूसरी खुराक बी सेल की परिपक्वता की प्रक्रिया की शुरुआत करती है, जो रोगाणु को बांधने के लिए सबसे बेहतर रिसेप्टर्स का चयन करती है। यह अस्थि मज्जा में होने के वक्त होता हैं और श्वेत रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता है। इसके बाद विकसित होने के लिए वे तिल्ली में जाते हैं। इसका अर्थ है कि बाद में बी सेल न केवल बहुत ज्यादा है, बल्कि उसके द्वारा बनाई गई एंटीबॉडी भी बेहतर लक्षित होती है। इस बीच, मेमोरी टी सेल भी तेजी से फैलती हैं। जिसने पहले ही बहुत से लोगों में गंभीर रूप से कोविड-19 महामारी विकसित होने से बचाया है।
एक खुराक, कम बचाव
ब्रिटेन की सरकार ने दूसरी खुराक देने में 3 से 4 सप्ताह के अंतर की जगह 12 सप्ताह का अंतराल रखने का निर्णय लिया है। वहीं रूस ने सिर्फ एक खुराक वाली वैक्सीन के परीक्षण में जुटा है। दिसंबर 2020 में प्रकाशित आंकड़े के अनुसार, फाइजर-बायोएनटेक की पहली खुराक के बाद उनकी वैक्सीन करीब 52 फीसद, जबकि दूसरी खुराक के बाद यह 95 फीसद प्रभावी है। जबकि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन ने पहली खुराक के बाद 64.1 फीसद और दूसरी खुराक के बाद 70.4 फीसद प्रभावी रही। हालांकि पहली खुराक के बाद दूसरी आधी खुराक लेने वालों को 90 फीसद सुरक्षा मिली। वहीं मॉडर्ना की वैक्सीन पहली खुराक के बाद 80.2 फीसद और दूसरी खुराक के बाद 95.6 फीसद सुरक्षा प्रदान करती है।
काफी नहीं एक खुराक
प्री-क्लीनिकल ट्रायल के दौरान यह सामने आया था कि एक खुराक से पर्याप्त प्रतिरक्षा हासिल नहीं हुई। जबकि तीसरे चरण के ट्रायल में पहली खुराक की तुलना में दूसरी खुराक के बाद ज्यादा एंटीबॉडी और टी सेल बने। कई विशेषज्ञों का मानना है कि दूसरी खुराक को छोड़ना बड़ी गलती होगी।
प्रतिरक्षा विकसित होने में लगेगा वक्त
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिरक्षा हासिल करने में समय लगता है। प्रतिरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा है जिसे हम जन्मजात प्रतिरक्षा कहते हैं, जो तुरंत प्रतिक्रिया देता है। हालांकि आमतौर पर यह बीमारी को अपने आप रोक नहीं सकता है और वैक्सीन से प्रभावित नहीं होता है। वैक्सीन को अधिक प्रतिरक्षा कोशिकाएं बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिनमें से कुछ बदले में एंटीबॉडी का उत्पादन करती हैं।