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जानें कैसे कोरोना संक्रमण के दौर में तुलसी की खेती ने बदल दी 250 किसानों की किस्‍मत

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के करीब 250 किसानों का जीवन बदल दिया है। परंपरागत खेती के मुकाबले तुलसी की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली साबित हो रही है। किसानों को तुलसी के बीज के लिए प्रति क्विंटल तीस से पचास हजार रुपये तक मिल जाते हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 07:21 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 07:21 PM (IST)
जानें कैसे कोरोना संक्रमण के दौर में तुलसी की खेती ने बदल दी 250 किसानों की किस्‍मत
मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के आलोट तहसील के करीब 250 किसानों का जीवन बदल दिया है।

 विनोद शुक्ला, इंदौर। कम उपज, लाभदायक फसलों के न होने के 'संक्रमण' को तुलसी की खेती ने वैक्सीन दे दिया है। इसने मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के आलोट तहसील के करीब 250 किसानों का जीवन बदल दिया है। इलाके में किसानों ने कम उपजाऊ जमीन पर जहां अन्य फसलें बेहतर नहीं हो पातीं वहां वर्ष 2012 में 30 हेक्टेयर क्षेत्र में तुलसी की खेती को प्रयोग के रूप में शुरू किया। इसने अच्छा लाभ दिया और अब क्षेत्र के 1227 हेक्टेयर क्षेत्र में तुलसी की खेती की जा रही है। परंपरागत खेती के मुकाबले तुलसी की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली साबित हो रही है। किसानों को तुलसी के बीज के लिए प्रति क्विंटल तीस से पचास हजार रुपयेतक मिल जाते हैं। औषधीय पौधे तुलसी पर कीटों का भी कोई असर नहीं होता, कीटनाशक की जरूरत न होने पर लागत भी कम आती है। 

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किसानों के अनुसार एक हेक्टेयर भूमि में तीन महीने में 10 हजार रुपये की लागत से 10 से 12 क्विंटल तुलसी बीज का उत्पादन होता है। इससे उन्हें तीन लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा हो रहा है। तुलसी का बीज नजदीकी नीमच मंडी में 30 से 35 हजार रुपये प्रति क्विंटल आसानी से से बिक जाता है। 

पत्तियों का उपयोग नहीं लेकिन बन जाती है अच्छी खाद

तुलसी की पत्तियां बहुत गुणकारी होती हैं, टहनियां भी उपयोगी होती हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर बिक्री नहीं होने से किसान इसका उपयोग खाद के रूप में कर मिट्टी को उपजाऊ भी बना रहे हैं। किसानों के मुताबिक वे उसी जमीन पर तुलसी की खेती करते हैं, जिसमें दूसरी फसलों का उत्पादन कम होने लगता है। एक सीजन में तुलसी की खेती के बाद उसकी पत्तियों व टहनियों से बनी खाद से जमीन उपजाऊ बन जाती है। उद्यानिकी विभाग के आंकड़ों के अनुसार आलोट और ताल क्षेत्र में 33 किसानों ने पहली बार तुलसी की खेती की थी। मुनाफा देखकर अन्य किसान भी लगातार जुड़ते गए। अब आलोट क्षेत्र के 150 किसान तुलसी की खेती कर रहे हैं।

कई तरह से लाभ का सौदा

आलोट क्षेत्र के खजूरी देवड़ा के किसान बब्बन सिंह ने बताया कि आठ सालों से वे तुलसी की खेती कर रहे हैं। इसमें लागत बहुत कम लगती है। सिंचाई भी सिर्फ एक बार करना पड़ती है। किसान योगेश पाटीदार ने बताया कि साल में दो बार तुलसी की खेती होती है। गर्मी के सीजन में ढाई हेक्टेयर में पिछले पांच साल से खेती कर रहा हूं। अच्छा मुनाफा मिल रहा है। 

जिला आयुष अधिकारी डॉ. प्रमिला सिंह के अनुसार तुलसी के किसी भी रूप में नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। तुलसी में विटामिन ए, सी, कैल्शियम, जिंक, आयरन और क्लोरोफिल अधिक मात्रा में मिलता है। यह एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होती है।

रतलाम के उद्यानिकी विभाग के उपसंचालक पीएस कनेल ने कहा कि रतलाम जिले में तुलसी की खेती से किसानों को फायदा हुआ है और लगातार रकबा भी बढ़ रहा है। छोटे किसानों के लिए यह कम लागत की अधिक मुनाफा देने वाली औषधीय खेती है।


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