जानिए कैसे दुश्मन के इलाके में घुसेगा स्वार्म ड्रोन का झुंड, AI की मदद से टारगेट पर साधेगा निशाना
झुंड में काम करने वाले स्वार्म ड्रोन में मुड़ने वाले दो पंख होते हैं। उनकी लम्बाई एक से दो मीटर के बीच होती है।कई ड्रोन को भारतीय वायुसेना के विमानों के पंखों के नीचे लगे कनस्तर-नुमा बक्से में फिट कर दिया जाता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारत में बना मानवरहित ड्रोन का झुंड (Swarm Drone) दुश्मन के इलाके में घुसेगा। अपने आप निशाने तक उड़कर पहुंचेगा और फिर अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से टारगेट पर निशाना साधेगा। जैसे बालाकोट में आंतकी प्रशिक्षण केंद्र को तबाह किया गया था।
यह कोई वैज्ञानिक कपोल-कल्पना नहीं है..
अगली पीढ़ी की विमानन तकनीक को सामने लाने की कोशिश के तहत सरकारी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड तथा बेंगलुरू स्थित स्टार्टअप न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक्नोलॉजीज (में मौजूद इंजीनियरों और सॉफ्टवेयर विशेषज्ञों की टीम ने इसे तैयार किया है। विमानों का एक नाम भी है, यानी एयर-लॉन्च्ड फ्लेक्सिबल एसेट (स्वार्म)।
भविष्य का हवाई युद्धक प्रणाली
भविष्य में होने वाले युद्ध इसी तरह के तकनीक वाले हथियारों से लड़े जाएंगे। यह एरियल वॉरफेयर (हवाई युद्धक प्रणाली) के भविष्य की तस्वीर है। यह स्मार्ट ड्रोन सबसे ज्यादा खतरनाक मिशनों में कम से कम कुछ हद तक पायलटों की जगह ले सकेंगे और वायुसेना को युद्ध अभियानों में इतनी अधिक संख्या में पायलट नहीं खोने पड़ेंगे।
पाकिस्तान पर निगरानी बढ़ेगी
स्वार्म ड्रोन प्रोजेक्ट इस वजह से भी खास है कि इससे पाकिस्तान के हवाई सुरक्षा नेटवर्क को बढ़ा सकते हैं।
झुंड में काम करने वाले स्वार्म ड्रोन में मुड़ने वाले दो पंख होते हैं। उनकी लम्बाई एक से दो मीटर के बीच होती है।कई ड्रोन को भारतीय वायुसेना के विमानों के पंखों के नीचे लगे कनस्तर-नुमा बक्से में फिट कर दिया जाता है।फिर भारतीय वायुसेना का पायलट विमान को ऐसी ऊंचाई पर ले जाता है, जहां वह दुश्मन विमानों तथा मिसाइलों से सुरक्षित हो, और फिर ड्रोन को छोड़ दिया जाता है। इसके बाद यह अपने पंखों को फैलाकर उड़ना शुरू कर देता है।
दो घंटे तक चलती है बैटरी
ड्रोन में लगी बैटरी उन्हें 100 किलोमीटर प्रति घंटे से भी तेज़ रफ्तार देने में सक्षम होती है. बैटरी इस तरह बनाई गई है कि वह दो घंटे तक चलती है, और इतने वक्त में ड्रोन विमानों का झुंड निशाने तक पहुंच जाएगा।
ऐसे उड़ते हैं एक साथ
स्वार्म ड्रोन इलेक्ट्रॉनिक डेटा-लिंक्स के ज़रिये एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े रहते हैं। अपने इन्फ्रारेड तथा इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसरों का इस्तेमाल करते हुए यह एक साथ सामंजस्य बनाते हुए उड़ते नजर आते हैं।
निशाना तलाशकर आत्मघाती की तरह टारगेट पर गिर सकता है ड्रोन
यह ड्रोन दुश्मन की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली, दुश्मन के रडार और सतह पर खड़े दुश्मन विमानों जैसे अपने निशानों को तलाश लेते हैं। हर ड्रोन को इतना होशियार बनाया गया है, ताकि वह समझ सके कि क्या तलाश किया गया है, और फिर निशाने अलग-अलग ड्रोन को सौंप दिए जाते हैं। इसके बाद हर ड्रोन आत्मघाती हमला करता है। अपने भीतर मौजूद विस्फोटकों के साथ वह निशाने से टकरा जाता है।
भविष्य में तीन हफ्ते तक उड़ने वाला ड्रोन
भविष्य में ऐसे ड्रोन तैयार करने की योजना है जो तीन हफ्तों तक उड़ सकेंगे। अल्ट्रा-हाइ ऑल्टीट्यूड ड्रोन से रीयल टाइम तस्वीरें और वीडियो भेजा जा सकेगा। यह 200 किमी की दूरी से भी लक्ष्य को भेद सकेगा। स्वार्म ड्रोन के अलावा रोबोटिक विंगमैन भी तैयार किया जा रहा है जो मानवयुक्त लड़ाकू विमान के साथ युद्ध में भेजा जाएगा।
छोटे युद्ध मैदानों के लिए उपयोगी
यह सामरिक हथियार है। ड्रोन या एआइ तकनीक अब हर क्षेत्र की जरूरत बन चुके हैं। जो ड्रोन सेना दिवस पर प्रदर्शित किया गया, वो छोटे युद्ध मैदानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। इससे दुश्मन की स्थिति और भौगोलिक परिस्थितियों की निगरानी व लक्ष्य तय करने में मदद मिलेगी। यह झुंड में उड़ता है इसलिए दुश्म के रडार पर एक भ्रम पैदा कर सकता है। हर रेजिमेंट के पास अपना ड्रोन होगा तो वह इससे अपने इलाके में दुश्मनों पर नजर रख सकेगा। छोटे ऑपरेशन्स स्थानीय आर्मी ही ऑपरेट कर सकेगी।
जयंत आप्टे, एयरमार्शल, वायु सेना (सेवानिवृत)
हम एंटी सेटेलाइट मिसाइल बना सकते हैं तो स्वदेशी ड्रोन क्यों नहीं। सुरक्षा मामलों में हम दूसरे देशों पर जितने निर्भर रहेंगे, हम कमतर ही रहेंगे। क्योंकि जो भी देश हमें हथियार या तकनीक देगा, वो पूरी तरह एडवांस टेक्नोलॉजी नहीं देगा। ऐसे में हम निर्भर रहेंगे।
- हरीश मसंद, एयर मार्शल (सेवानिवृत्त, वीर चक्र प्राप्त)
स्वार्म ड्रोन के ये हैं प्रमुख टारगेट
- मिशन
- उद्देश्य
- मिशन नियंत्रण केंद्र
- मिशन सार
- पैंतरेबाजी का प्रबंधन
- स्वार्न एनरोलमेंट और मिशन की जानकारी