Move to Jagran APP

ऐसे घूमता है किसी देश की अर्थव्‍यवस्‍था का चक्र, सभी की भागीदारी इसमें होती है जरूरी

अर्थव्‍यवस्‍था का पहिया हम सभी की मेहनत के बल पर घूमता है और इसका असर देश के विकास पर दिखाई देता है। उपभोक्ता की इच्छा व जरूरतों की पूर्ति पर ही कारोबार व अर्थव्यवस्था का पूरा दारोमदार टिका हुआ है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 19 Oct 2020 09:46 AM (IST)Updated: Mon, 19 Oct 2020 09:46 AM (IST)
ऐसे घूमता है किसी देश की अर्थव्‍यवस्‍था का चक्र, सभी की भागीदारी इसमें होती है जरूरी
ठोस कदमों से अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ सकेगी।

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। किसी भी अर्थव्यवस्था की गति के लिए मांग व पूर्ति का संतुलन बेहद आवश्यक है। मांग यानी उपभोक्ता की इच्छा। हालांकि, अर्थशास्त्र के अनुसार मांग में किसी वस्तु को पाने की चाह के साथ-साथ उसका मूल्य व माप भी शामिल होता है। उपभोक्ता की इच्छा व जरूरतों की पूर्ति पर ही कारोबार व अर्थव्यवस्था का पूरा दारोमदार टिका हुआ है। स्कूटर या बाइक का उदाहरण ले सकते हैं। किसी जमाने में इनकी काफी मांग थी। उत्पादन कम था। तब उन्हें खरीदने के लिए एजेंसियों में नंबर लगाना होता था। जैसे-जैसे दोपहिया वाहनों की मांग बढ़ती गई, इस क्षेत्र में कई कंपनियां आती गईं और उत्पादन बढ़ता गया। आज आपके पास पैसे उपलब्ध हों तो किसी भी एजेंसी से तत्काल बाइक खरीद सकते हैं। यानी, मांग व आर्पूित का संतुलन बना तो स्कूटर व बाइक उपभोक्ताओं के लिए सहज उपलब्ध हो गए।

loksabha election banner

कीमत तय करने में अहम

किसी भी वस्तु की कीमत उसकी मांग व आपूर्ति पर निर्भर करती है। मसलन, अगर कोई वस्तु की मांग कम है और बाजार में उपलब्धता ज्यादा है तो उसकी कीमत कम होगी। इसके विपरीत किसी वस्तु की मांग ज्यादा है और उपलब्धता कम है तो कीमत ज्यादा होगी। इससे जाहिर है कि वस्तुओं की मांग उसके उत्पादन को भी प्रभावित करती है। यानी, मांग बढ़ेगी तो उत्पादन बढ़ाने के मौके पैदा होंगे और बाजार में वस्तुओं की खपत ज्यादा होगी। इस प्रकार अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ सकेगी।

प्रमुख कारक

बाजार में यदि सामान की उपलब्धता ज्यादा है तो संभव है कि उसकी मांग कम हो। सामान ज्यादा होने की वजह से ही उसकी कीमत तो कम होती ही है, खरीदारी भी नहीं हो पाती। बाजार में कुछ वस्तुएं ऐसी भी होती हैं जिनकी मांग न के बराबर होती है। जब कोई वस्तु अधिकतम उपभोक्ताओं तक पहुंच जाती है तब उसकी मांग कम होने लगती है। वस्तु से अपेक्षा की पूर्ति नहीं होने पर भी मांग घटती है। तीज-त्योहार व मौसम भी मांग को प्रभावित करते हैं। इन मौकों पर वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। हालांकि, कुछ चीजों की मांग बाजारमें हमेशा बनी रहती है।

यूं तय होती है मांग व पूर्ति

मांग तय करने में आय की भूमिका अहम है। लोगों की आय अधिक होने पर मांग में भी इजाफा होता है। दूसरी तरफ अगर किसी के पास धन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तो उसे वस्तु या सेवा की खरीद में परेशानी नहीं होगी। इस प्रकार वहमांग के नियम को भी प्रभावित कर सकता है। वस्तुओं की गुणवत्ता भी मांग को प्रभावित करती है। यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि बाजार में खरीदारों की संख्या वस्तुओं की उपलब्धता के सापेक्ष कितनी है। प्रतिस्पर्धा भी मांग को प्रभावित करती है। बाजार मांग के अनुरूप ही वस्तुओं का उत्पादन निर्धारित होता है। मसलन बाजार में मांग बढ़ जाएगी तो आपूर्तिकर्ता उत्पादन बढ़ा देंगे। हालांकि, कई बार उत्पादन में वृद्धि भविष्य कीसंभावनाओं पर भी निर्भर करती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.