Paris Climate Agreement: आइए जानें क्या है पेरिस जलवायु समझौता, बड़े देशों में सिर्फ भारत लक्ष्य की ओर
Paris Climate Agreement जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए भारत लगातार कोशिश में जुटा है। भारतीय रेलवे ने जहां 2030 तक प्रदूषणमुक्त संचालन वाला दुनिया का पहला रेल नेटवर्क बनने का लक्ष्य तय किया है तो दूसरी ओर भारत अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है।
नई दिल्ली, जेएनएन। Paris Climate Agreement जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कनवेंशन के लिए 2015 में 196 देश साथ आए और आज ही के दिन दुनिया को बेहतरी की ओर ले जाने वाला पेरिस समझौता अस्तित्व में आया। इस समझौते में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने और इसके लिए निवेश करने पर जोर दिया गया। आइए जानते हैं कि क्या है पेरिस जलवायु समझौता और भारत सहित दूसरे देश इसके लक्ष्यों को हासिल करने में कहां हैं?
अमेरिका के अलग होने के मायने : पेरिस समझौते से अमेरिका अलग हो गया है। विश्व में चीन के बाद अमेरिका ग्रीन हाउस गैसों का दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। चीन 30 फीसद, अमेरिका 13.5 फीसद और भारत 6.8 फीसद ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है। अमेरिका को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 2025तक 26-28 फीसद तक कम करना था। अब यह लक्ष्य मुश्किल लगता है। साथ ही इसका वित्तीय प्रभाव भी पड़ेगा। ग्रीन क्लाइमेट फंड में अमेरिका की सर्वाधिक भागीदारी थी। समझौते में विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिए इस कोष में 100 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता देनी थी।
ऐसे जानिए पेरिस समझौते को : पेरिस समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना है, जिससे सदी के अंत तक तापमान वृद्धि को पूर्वऔद्योगिक स्तर के 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सके। यह समझौता पांच साल के चक्र पर काम करता है। विकसित देश अल्प विकसित और विकासशील देशों को वित्तीय मदद उपलब्ध कराते हैं। किसी देश की सरकार अकेले बूते इन उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकती है, इसलिए समझौते में विभिन्न संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण मानी गई है।
तापमान में कमी के लक्ष्य से बहुत दूर हैं कई देश
- गंभीर रूप से अपर्याप्त (4 डिग्री से. से ज्यादा वैश्विक तापमान) : अर्जेंटीना ,रूस, सऊदी अरब, तुर्की, अमेरिका, यूक्रेन, वियतनाम
- उच्च रूप से अपर्याप्त (4 डिग्री से. से कम वैश्विक तापमान): चीन, इंडोनेशिया, जापानर्, ंसगापुर, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, यूएई
- अपर्याप्त (3 डिग्री से. से कम वैश्विक तापमान): ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चिली, यूरोपियन यूनियन, कजाखस्तान, मेक्सिको, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, पेरू, स्विट्जरलैंड
- अनुकूल (2 डिग्री से. से कम वैश्विक तापमान): भूटान, कोस्टारिका, इथोपिया, भारत, केन्या, फिलीपींस
- पेरिस समझौते के अनुकूल (1.5 डिग्री से. से कम वैश्विक तापमान): मोरक्को, जांबिया
- आदर्श स्थिति (1.5 डिग्री से. से कम वैश्विक तापमान): कोई देश नहीं (स्रोत: क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर)
भारत की स्थिति है बेहतर : 2016 में भारत ने पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारत का लक्ष्य 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन को 33-35 फीसद तक कम करना है। इसके साथ ही भारत का लक्ष्य 2030 तक अतिरिक्त वनों के माध्यम से 2.5-3 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर कार्बन में कमी लाना है। भारत अपने लक्ष्यों की ओर तेजी से बढ़ रहा है। जी-20 देशों में भारत इकलौता देश है, जिसके प्रयास वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री तक सीमित रखने के अनुकूल हैं।
भारत उठा रहा है बड़े कदम : जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए भारत लगातार कोशिश में जुटा है। भारतीय रेलवे ने जहां 2030 तक प्रदूषणमुक्त संचालन वाला दुनिया का पहला रेल नेटवर्क बनने का लक्ष्य तय किया है तो दूसरी ओर भारत अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है। भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट सौर और पवन ऊर्जा का लक्ष्य रखा है।
ये हैं कमियां : समझौते की सबसे बड़ी कमी यह है कि इससे जुड़े ज्यादातर प्रावधानों में गैर बाध्यकारी लक्ष्य हैं। जिन्हें पूरा करना या न करना देशों की इच्छा पर निर्भर करता है। जब तक बाध्यकारी प्रतिबद्धताएं नहीं होंगी तब तक जलवायु परिवर्तन की दिशा में कोई बड़ा सकारात्मक कदम दिखने की उम्मीद कम है।