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केशवानंद भारती, जिन्होंने तय कराई थीं संसद की सीमाएं, ‍निधन पर पीएम मोदी समेत दिग्‍गजों ने जताया शोक

सुप्रीम कोर्ट से संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिलाने वाले संत केशवानंद भारती के निधन पर पीएम मोदी समेत कई सियासी दिग्‍गजों ने श्रद्धांजलि दी है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 04:56 PM (IST)Updated: Mon, 07 Sep 2020 01:34 AM (IST)
केशवानंद भारती, जिन्होंने तय कराई थीं संसद की सीमाएं, ‍निधन पर पीएम मोदी समेत दिग्‍गजों ने जताया शोक
केशवानंद भारती, जिन्होंने तय कराई थीं संसद की सीमाएं, ‍निधन पर पीएम मोदी समेत दिग्‍गजों ने जताया शोक

माला दीक्षित, नई दिल्ली। संसद की संविधान संशोधन की शक्ति को दायरे में बांधने वाले सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के याचिकाकर्ता केशवानंद भारती नहीं रहे। केरल स्थित इडनीर मठ के प्रमुख भारती का रविवार तड़के 3.30 बजे निधन हो गया। वे 79 साल के थे। पुलिस ने बताया कि उम्र से जुड़ी बीमारियों के चलते उनका निधन हुआ। उनको समाज के सभी वर्गों के लोगों ने श्रद्धांजलि दी है।

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कौन थे केशवानंद भारती

केरल के कासरगोड़ में इडनीर नामक स्थान पर एक शैव मठ है। 1961 में केशवानंद भारती को इस मठ का प्रमुख बनाया गया था। उस समय उनकी उम्र महज 20 साल थी। इस मठ का इतिहास आदि शंकराचार्य से जुड़ा है। शंकराचार्य के शिष्य तोटकाचार्य की परंपरा में यह मठ स्थापित हुआ था। यह मठ तांत्रिक पद्धति का अनुसरण करने वाली स्मार्त भागवत परंपरा को मानता है। 

पीएम मोदी बोले, पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे

पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, हम पूज्य केशवानंद भारती जी को उनकी सामुदायिक सेवा और शोषितों को सशक्त करने के उनके प्रयासों के लिए हमेशा याद रखेंगे। उनका देश के संविधान और समृद्ध संस्कृति से गहरा लगाव था। वह पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे। ओम शांति।

शाह बोले, राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि एक महान दार्शनिक और द्रष्टा के रूप में स्वामी केशवानंद भारती जी (Swami Kesavananda Bharathi) का निधन राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति है। हमारी परंपरा और लोकाचार की रक्षा के लिए उनका योगदान समृद्ध और अविस्‍मरणीय है। उनको हमेशा भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा। उनके अनुयायियों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना।

एक प्रतिष्ठित आध्यात्मिक नेता खो दिया

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने संत केशवानंद भारती के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें दार्शनिक, शास्त्रीय गायक और सांस्कृतिक प्रतीक का एक दुर्लभ मेल बताया। उन्‍होंने कहा कि संत को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है जिसमें व्यवस्था दी गई है कि संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता है। उप राष्‍ट्रपति ने कहा कि उनके निधन से हमने एक प्रतिष्ठित आध्यात्मिक नेता खो दिया है। उनका जीवन भावी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता रहेगा।

संविधान के सिद्धांतों पर दिया जोर 

विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने कहा कि अद्वैत के प्रस्तावक और आध्यात्मिक नेता पूज्य केशवानंद भारती जी के निधन से गहरा दुख हुआ। वह मौलिक अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में याचिकाकर्ता थे जिन्होंने भारतीय संविधान के सिद्धांतों पर जोर दिया था।

मील का पत्थर था फैसला 

भारती की याचिका पर 47 साल पहले 13 न्यायाधीशों की पीठ का 7-6 के बहुमत से दिया गया फैसला आज भी संविधान के मूल तत्व को संरक्षित रखने की दिशा में मील का पत्थर है। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान सर्वोच्च है। संसद को इसमें संशोधन का अधिकार है। लेकिन, संशोधन के जरिये संसद संविधान के आधारभूत ढांचे में परिवर्तन नहीं कर सकती। 

संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिया 

इस फैसले ने न्याय जगत में बेसिक स्ट्रक्चर यानी संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत प्रतिपादित किया, जो आज भी कायम है। सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाले संवैधानिक मामलों में आधे से ज्यादा को इसी आधार पर चुनौती दी जाती है कि इसमें मूल ढांचे का उल्लंघन है। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य का फैसला सुप्रीम कोर्ट के 13 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 24 अप्रैल, 1973 को सुनाया था। यह मुकदमा केशवानंद भारती ने दाखिल किया था। 

13 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने की थी सुनवाई 

केशवानंद भारती की याचिका में गोलकनाथ फैसले में दी गई व्यवस्था का मुद्दा उठाया गया था। मौलिक अधिकारों के बारे में दिया गया गोलकनाथ का फैसला 11 न्यायाधीशों का था। इसलिए केशवानंद भारती की याचिका पर 13 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई की। इस मामले में प्रख्यात कानूनविद नानी पालकीवाला सहित जानेमाने दिग्गज वकीलों ने बहस की थी। 

मूल ढांचे में बदलाव नहीं हो सकता 

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-368 में संसद को संविधान संशोधन करने का अधिकार है। लेकिन, संशोधन के जरिये संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता। उस फैसले में कोर्ट ने संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर यानी मूल ढांचे का सिद्धांत प्रतिपादित किया था। कोर्ट ने बेसिक स्ट्रक्चर किसे कहा जाएगा, इसे व्यापक तौर पर परिभाषित नहीं किया था। 

इन विशेषताओं को आधारभूत संरचना का दर्जा 

हालांकि, संविधान की कुछ विशेषताओं को आधारभूत संरचना के रूप में बताया था। जैसे कि संविधान की सर्वोच्चता, कानून का शासन, संघवाद, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, शक्तियों के बंटवारे का सिद्धांत, धर्मनिरपेक्षता, संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य, संसदीय प्रणाली, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और कल्याणकारी राज्य। केशवानंद भारती केस में दी गई व्यवस्था के बारे में सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश ज्ञानसुधा मिश्रा कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक आवश्यकताओं को देखते हुए संसद को संविधान में संशोधन की सीमित शक्ति प्रदान की है।

केरल के भूमि सुधार कानून को दी थी चुनौती

केशवानंद भारती ने केरल के भूमि सुधार कानून को चुनौती दी थी। उन्होंने केरल के भूमि सुधार कानून 1963 को संविधान की नौवीं सूची में शामिल किए जाने संबंधी 29वें संविधान संशोधन का मुद्दा उठाया था। इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए भी एक बार प्रयास हुआ। सुनवाई के लिए पीठ भी गठित हुई। लेकिन, बाद में 1975 में पीठ खत्म कर दी गई और मामला बंद कर दिया गया।


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