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केरल में जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप का फैसला, IUML ने जताई राज्य में विद्रोह की आशंका

केरल सरकार ने गुरुवार को 2011 की जनगणना के आधार पर अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप प्रदान करने के हाई कोर्ट के आदेश को लागू करने का फैसला किया है। इसपर आइयूएमएल विधायक ने ऐतराज जताया और कहा कि राज्य में विरोध के सुर उठने लगे हैं।

By Monika MinalEdited By: Published: Sat, 17 Jul 2021 09:28 AM (IST)Updated: Sat, 17 Jul 2021 09:28 AM (IST)
केरल में जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप का फैसला, IUML ने जताई राज्य में विद्रोह की आशंका
केरल में जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप का फैसला

तिरुअनंतपुरम, एएनआइ। केरल (Kerala) में अल्पसंख्यकों के स्कॉलरशिप अनुपात में फेरबदल को लेकर खलबली मची है। आयूएमएल के विधायक पीके कुन्हलिकुट्टी (PK Kunhalikutty) ने आज कहा, केरल मंत्रिमंडल ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए सच्चर कमिटी को रद कर दिया। सभी संस्थान इसका विरोध कर रहे हैं। केरल सरकार को इस गलत फैसले के लिए विद्रोह का सामना करना पड़ेगा।'  दरअसल केरल सरकार ने गुरुवार को 2011 की जनगणना के आधार पर अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप प्रदान करने के हाई कोर्ट के आदेश को लागू करने का फैसला किया है।

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6.3 करोड़ रुपये के अतिरिक्त कोष का आवंटन

सरकार ने ईसाई, बौद्ध, सिख और जैन समुदायों को लाभान्वित करने के लिए जनसंख्या के आधार स्कॉलरशिप प्रदान करने के लिए 6.2 करोड़ रुपये के अतिरिक्त कोष का आवंटन भी किया है। इससे पहले स्कॉलरशिप का अधिकतर हिस्सा मुस्लिम समुदाय को मिलता था। हाई कोर्ट के आदेश को लागू किए जाने के बाद अन्य अल्पसंख्यक समुदायों को भी उनकी जनसंख्या के आधार पर अतिरिक्त लाभ मिलेगा।

मई में आया था हाई कोर्ट का फैसला 

बता दे कि मई के अंतिम में केरल हाई कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय को 80 फीसद और लैटिन कैथलिक ईसाइयों तथा धर्मांतरित ईसाइयों को 20 फीसद योग्यता-सह-साधन स्कॉलरशिप प्रदान करके अल्पसंख्यकों को उप-वर्गीकृत करने के राज्य सरकार के आदेश को रद कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि इसे कानूनी रूप से कायम नहीं रखा जा सकता।

उल्लेखनीय है कि जस्टिस राजिंदर सच्चर कमिटी के तहत राज्य सरकार ने 5000 मुस्लिम छात्राओं को छात्रवृत्तियां दी थी। इसके बाद 2011 में स्कीम में लैटिन कैथोलिक ईसाई और धर्मांतरित ईसाई छात्र भी शामिल किए गए। इस फैसले को 2015 में सरकार ने बदल दिया और कहा गया कि मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच आरक्षण 80:20 के अनुपात में होगा। इसके तहत मुसलमानों के लिए 80 फीसद, लैटिन कैथोलिक ईसाई और अन्य समुदायों के लिए सिर्फ 20 फीसद और इसी फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।


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