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राम की शरण में सीताराम!! केरल में माकपा मनाएगी रामायण मास

मलयालम मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी रामायण पर व्याख्या और बहस आयोजित कराने की जिम्‍मेदारी राज्‍यभर के शिक्षकों और संस्कृत विशेषज्ञों को सौंपेगी।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 09:57 AM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 03:08 PM (IST)
राम की शरण में सीताराम!! केरल में माकपा मनाएगी रामायण मास
राम की शरण में सीताराम!! केरल में माकपा मनाएगी रामायण मास

नई दिल्‍ली, एजेंसी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) भी अब भगवान राम की शरण में जाती नजर आ रही है। सीपीएम की सत्‍ता अब सिर्फ एक राज्‍य केरल में रह गई है। केरल राज्‍य समिति ने 17 जुलाई से 'रामायण महीना' मनाने का निर्णय लिया है। पार्टी 25 जुलाई को रामायण पर एक सम्मेलन आयोजित कर रही है। रामायण महीने को बूथ स्‍तर तक मनाने के लिए पूरे राज्‍य में रामायण पर कक्षाएं आयोजित करने का फैसला लिया गया है। पार्टी के छात्र विंग स्‍टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के पूर्व अध्‍यक्ष और अब पार्टी की राज्य समिति के सदस्य शिवदासन को इस आश्चर्यजनक मिशन का प्रभार दिया गया है।

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मलयालम मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी रामायण पर व्याख्या और बहस आयोजित कराने की जिम्‍मेदारी राज्‍यभर के शिक्षकों और संस्कृत विशेषज्ञों को सौंपेगी। बता दें कि पिछले तीन सालों से सीपीआई(एम) श्री कृष्ण जयंती पर राज्यभर में रैलियों का संचालन कर रही है। इन सभी प्रयासों के जरिए वामपंथी प्रदेश में आरएसएस के बढ़ते प्रभाव का सामना करने के लिए कर रही है। आरएसएस पिछले पांच दशकों से केरल में कृष्‍ण जयंती पर रैलियों का आयोजन कर रही है। आरएसएस, वामपंथियों पर नास्तिक होने का भी आरोप लगाते रहे हैं, रामायण मास के जरिए सीपीएम इस छवि से भी बाहर निकलने का भी प्रयास कर रही है।

बताया जा रहा है कि सीपीआई के नेता पिछले कुछ महीनों से इस उद्देश्य के लिए संस्कृत शिक्षकों की भर्ती और खोज कर रहे थे। शिवादासन रामायण माह की तैयारियों में काफी दिनों से जुटे हुए हैं। वह रामायण से जुड़ी सामग्री को मलयालम भाषा में उपलब्‍ध करा रहे शिक्षकों के साथ समन्‍वय कर रहे हैं। हालांकि ये भी सुनने में आ रहा है कि रामायण के विभिन्न संस्करणों को प्रस्तुत करने के लिए पार्टी के अंदर बहस चल रही है।

1980 के दशक तक सीपीआई (एम) कार्ड धारण करने वाले सदस्यों को मंदिरों में जाने की अनुमति नहीं थी। हालांकि, उन दिनों नेताओं की पत्नियां जरूरी मंदिर जाया करती थीं। धीरे-धीरे नेताओं ने भी मंदिरों में जाना शुरू किया। तब पार्टी ने पाया कि आरएसएस और कांग्रेस नेता मंदिर समितियों का नेतृत्व कर रहे हैं। तब नियम बनाया गया कि पार्टी के सदस्यों को मंदिर समितियों में भी प्रवेश करना चाहिए। एक लंबी बहस के बाद ये तय हुआ कि मंदिर भी एक ऐसी जगह है, जहां काफी लोग आते हैं। इसलिए पार्टी के सदस्‍यों को ऐसी जगहों पर भी जाना चाहिए।


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