Positive India: कोरोना के समय मुंबई के लिए ‘नजीर’ बनी कश्मीर की मेहमाननवाजी की रिवायत
Positive India खदीजा और उसका बेटा शेख जावेद कहते हैं कि हमने जो सुना था उससे ज्यादा पाया है। यहां पर्यटक बनकर आए थे आज हम कह सकते हैं कि कश्मीर में हमारा एक घर है।
नवीन नवाज, श्रीनगर। Positive India: सदियों पुरानी कश्मीरियत और मेहमाननवाजी की रिवायत कोरोना के समय भी नजीर बन रही है। कश्मीर में केसर की क्यारियों के नाम से दुनियाभर में मशहूर पांपोर का एक परिवार लॉकडाउन के दौरान फंसे मुंबई के मलाड़ के पर्यटकों के लिए फरिश्ते की तरह है। ये पर्यटक कश्मीर के हुस्न का दीदार करने पहुंचे थे। खदीजा और उसका बेटा शेख जावेद कहते हैं कि हमने जो सुना था, उससे ज्यादा पाया है। यहां पर्यटक बनकर आए थे, आज हम कह सकते हैं कि कश्मीर में हमारा एक घर है।
खुदा से दुआ है कि सबकुछ जल्द ठीक हो जाए। पांपोर के पटलबाग इलाके में नजीर अहमद शेख के घर में एक माह से ठहरे जावेद ने कहा कि इंसानियत, मेहमानवाजी, मुहब्बत में नजीर साहब और उनका परिवार एक नजीर है। पीएचई विभाग में कार्यरत नजीर अहमद शेख के परिवार में उसकी पत्नी, तीन बेटियां और दो बेटे हैं। वह कहते हैं कि मैं किसी को देने वाला कौन हूं, यह तो खुदा की नेमत है जिसने मुझे जरिया बनाया है। मैं दुआ करता हूं कि खुदा यहां अमन-खुशहाली और मुहब्बत का माहौल बनाए रखे।
जावेद ने नजीर के घर पहुंचने की कहानी सुनाते हुए कहा कि मुंबई में मेरा अपना कारोबार है। मैं पहले भी एक बार कश्मीर घूमने आ चुका हूं और मैंने उस समय मां को कश्मीर की सैर कराने का फैसला किया था। पांच मार्च को अपनी मां संग जम्मू पहुंचा था। वहां से टैक्सी के जरिए श्रीनगर के लिए रवाना हुआ। जवाहर सुरंग के पास हमें रोक लिया। दो दिन टैक्सी में रुके रहे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं। सबकुछ बंद हो गया। फिर मुझे एक दोस्त का ख्याल आया जो पांपोर में रहता है। संपर्क कर मैं मां के साथ उसके घर पहुंच गया। 15 मार्च को हमारा कोविड-19 टेस्ट हुआ जो निगेटिव आया। मेरे उस दोस्त की स्थिति कुछ ठीक नहीं थी, मुझे उसके घर में रुकना अच्छा नहीं लगा। एक दिन मैं और मां परेशान होकर बाहर घूम रहे थे तो नजीर साहब मिल गए।
नजीर ने कहा कि मैंने इतना सुना था कि मुहल्ले में मुंबई से आए मां-बेटा किसी के पास रुके हुए हैं। मैं समझ गया यही लोग हैं। मैंने दोनों से कहा कि अगर चाहो तो अपना सामान लेकर मेरे घर आ जाओ। उस दिन शायद 21 मार्च था। जावेद ने कहा कि मां शूगर की मरीज है। बीमार हुई तो इन लोगों ने डॉक्टर का बंदोबस्त किया। नजीर के घर में हमें रहते हुए कहीं महसूस नहीं हुआ कि हम मुंबई से आए हैं। नजीर के पुत्र हिलाल ने कहा कि खुदा ने हमें मौका दिया है किसी की मदद करने के लिए। अब यह लोग हमारे मेहमान नहीं घर का हिस्सा हैं।
मुंबई में ब्रेसबी से कर रहे हमारी वापसी का इंतजार : खदीजा ने कहा कि आप नहीं जानते हमारी क्या हालत थी। यहां हमें जो मिला, उसने हमारा हाथ थामा। नजीर साहब और इनका परिवार तो हमारा मुहाफिज है। मेरे र्खांवद अब्दुल रशीद रोजाना मुंबई से फोन करते हैं। वह हमारी वापसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उससे भी ज्यादा वह कहते हैं कि नजीर की नहीं अब हमारी बारी है, बस लॉकडाउन खुले और नजीर साहब परिवार संग हमारे पास आएं। मैंने कश्मीर नहीं देखा, कश्मीरियत देखी और कश्मीरी देखे। यहां लोग बहुत हमदर्द हैं, यही वजह है कि कश्मीर को जन्नत कहते हैं।