नए कपड़ों की जिद ने कसाब को बनाया जिहादी
कहा जाता है कि एक छोटी सी चीज को पाने की जिद इंसान को कहा से कहा ले जाती है। ईद पर अपने पिता द्वारा नए कपड़े नहीं दिए जाने के छोटे से वाक्ये ने कसाब को हिंसक, जिद्दी, जिहादी और अंत में एक आतंकी बना दिया। महज दो जोड़ी नए कपड़ों की ख्वाहिश में कसाब ऐसी राह पर निकल पड़ा, जिसमें उसने दरिंदगी की ऐसी कहानी लिखी,
नई दिल्ली। कहा जाता है कि एक छोटी सी चीज को पाने की जिद इंसान को कहा से कहा ले जाती है। ईद पर अपने पिता द्वारा नए कपड़े नहीं दिए जाने के छोटे से वाक्ये ने कसाब को हिंसक, जिद्दी, जिहादी और अंत में एक आतंकी बना दिया। महज दो जोड़ी नए कपड़ों की ख्वाहिश में कसाब ऐसी राह पर निकल पड़ा, जिसमें उसने दरिंदगी की ऐसी कहानी लिखी, जो इतिहास के काले पन्नों में लिखी जाएगी।
पाकिस्तान के ओकारा जिले में एक गरीब परिवार में जन्मे पाकिस्तानी आतंकी के पिता रेहड़ी पटरी लगाते थे और भाई लाहौर में एक मजदूर था। ऐसे परिवार में जन्म लेने के बावजूद कसाब ने दुनिया घूमने, पैसा कमाने और ऐशो आराम की जिंदगी बसर करने का सपना संजोया था। इस सपने को पूरा करने के लिए कसाब किसी भी हद तक जा सकता था। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए कसाब ने थामा दरिंदगी का हाथ। इसका अंजाम कसाब की मौत के साथ हुआ।
पाकिस्तान के 25 वर्षीय इस युवक ने गरीबी और बेचारगी की जिंदगी से तंग आकर वर्ष 2005 में अपने पिता का घर छोड़ दिया। छोटे-मोटे अपराध और चोरी चकारी से अपराध की दुनिया में कदम रखने वाला यह गुनहगार आतंकी गुट लश्कर-ए-तैयबा के राजनीतिक इकाई जमात-उद-दावा में शामिल हो गया। अजमल से कसाब तक का सफर तय करने वाले इस आतंकी ने इसके बाद लश्कर-ए-तैयबा से भारत के खिलाफ नफरत और दहशतगर्दी का वह प्रशिक्षण हासिल किया, जिसने 26 नवंबर 2008 को 166 मासूम लोगों की जिंदगी छिन ली और दुनियाभर में दहशत और आतंकवाद की एक खौफनाक कहानी लिख डाली।
कसाब की कहानी से यह तो साफ पता चलता है कि कोई भी ऐसे ही गुनाह के राह पर नहीं चलता है। कसाब के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। कसाब के परिवार की हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह हर साल उसे ईद पर नए कपड़े दे सकें। एक बार कसाब के पिता ने उसे ईद पर नए कपड़े देने से इन्कार कर दिया। कसाब की अंदरूनी भूख और बढ़ गई। इस भूख को शात करने के लिए ही वह निकल पड़ा अपने मिशन पर।
वर्ष 2005 में उसने पहली बार जिहाद की घोषणा की। उसके बाद चल पड़ा गुनाहों का सिलसिला। फिर कसाब ने आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए आइएसआइ के तहत ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी। वर्ष 2008 में हुए मुंबई हमले के आठ महीने पहले कसाब अपने गाव की मिंट्टी का आर्शीवाद लेने आया था। उसके बाद हुआ मुंबई हमला। इतिहास के पन्नों पर लिखी देश की सबसे बड़ी आतंकी घटना को कसाब ने अपने अन्य साथियों के साथ अंजाम दिया।
गौरतलब है कि इस घटना को सफल बनाने के लिए कसाब के परिवार वालों को 150,000 रुपये इनाम के तौर पर दिए गए थे। आखिरकार सैकड़ों लोगों के खून से रंगे आतंकी कसाब को फासी की सजा मिल ही गई। जिहाद करने वाले मर तो सकते हैं लेकिन कभी आत्म समर्पण नहीं करते। कसाब भी इतने दिनों से इसी सच्चाई को जीता आ रहा था।
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