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कल्पना को देखने आसमान में टकटकी लगाए थे लोग, तभी हो गई अनहोनी; दे गई जिंदगी भर का गम

Kalpana Chawla Death Anniversary करनाल में बनारसी लाल चावला और मां संजयोती के घर जन्मी कल्पना चावला परिवार में सबकी दुलारी थी। वह अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 01 Feb 2020 10:32 AM (IST)Updated: Sat, 01 Feb 2020 02:12 PM (IST)
कल्पना को देखने आसमान में टकटकी लगाए थे लोग, तभी हो गई अनहोनी; दे गई जिंदगी भर का गम
कल्पना को देखने आसमान में टकटकी लगाए थे लोग, तभी हो गई अनहोनी; दे गई जिंदगी भर का गम

पानीपत/करनाल, जेएनएन। Kalpana Chawla Death Anniversary एक फरवरी 2003। एक अंतरिक्ष परी अंतरिक्ष में ही रह गई। स्वागत में पलके बिछाए उसके जन्मभूमि के लोग आज भी इस दिन को नहीं भूल पा रहे हैं। काउंटडाउन चल रहा था। स्कूल में लाइव प्रसारण के जरिए सैकड़ों की तादाद में बच्चे और शिक्षक अपनी कल्पना को साकार होता देखना चाह रहे थे। तभी कुछ ऐसा हुआ कि हर किसी के आंखों में आंसू थे। कुछ तो खुद को संभाल नहीं पाए तो वहीं बैठ गए। इस दर्द भरे हादसे ने करनाल की कल्पना को छीन लिया। आज ही के दिन अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का शटलयान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था।

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सुबह ही अंतरिक्ष परी कल्पना चावला के बचपन के स्कूल टैगोर बाल निकेतन में चहलकदमी आम दिनों की तुलना में ज्यादा थी। दोपहर होने तक यह स्कूल खास बन चुका था। देश की मीडिया की नजरें एक तरफ कोलंबिया शटल यान की ओर थी तो दूसरी तरफ कल्पना चावला के स्कूल पर। इसी स्कूल में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद कल्पना ने अंतरिक्ष यात्री बनने और विश्व पटल पर करनाल का नाम रोशन करने का सफर पूरा किया था। स्कूल के अंदर शिक्षक व विद्यार्थियों के साथ शहर के मौजिज लोग थे। सभी की निगाहें टीवी सेट पर थी, लेकिन अचानक से प्रसारण बीच में रुक गया।

कुछ ही देर में मिली अनहोनी की सूचना

प्रसारण रुकने की वजह से सभी परेशान थे। हर कोई जानना चाहता था कि शटलयान आ गया, कल्पना का स्वागत कैसे हुआ। मीडिया से खबरें आईं कोलंबिया शटल यान के धरती की ओर आने की सूचना बंद हो गई। कुछ ही देर में यह पता चला कि शटल यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। यह सुनते ही लोगों की आंखें नम हो गई।

आज भी याद है वह शाम-राजन लांबा

टैगोर बाल निकेतन स्कूल के प्रिंसिपल डा. राजन लांबा ने कहा कि आज भी उन्हें वह शाम याद है, जब पूरा स्कूल कोलंबिया शटल यान के धरती पर आने का प्रसारण देख रहा था। जैसे ही शटल यान का संपर्क टूटा तो लाइव प्रसारण देख रहे लोगों के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गई थी। सभी अंतरिक्ष यात्रियों के सकुशल धरती पर आने की दुआएं करने लगे। यह हादसा आज भी याद आता है तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं। इस हादसे से पहले पूरा स्कूल खुशी में झूम रहा था। क्योंकि कल्पना चावला लगातार दूसरी बार अंतरिक्ष में सफल यात्रा डा. लांबा ने कहा कि कल्पना चावला के पिता बनारसी दास चावला से अक्सर उनके बारे में बातचीत हुई है। वह कहते हैं कि वह जो ठान लेती थी, उसे करके छोड़ती थी। स्कूली पढ़ाई के बाद कल्पना ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज 1982 में ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद वह अमेरिका चली गईं और 1984 टेक्सस यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की।

कल्पना ने अपने स्कूल को दी गुरु दक्षिणा

कल्पना चावला का अपने स्कूल से बेहद लगाव था और सफल अंतरिक्ष यात्री बनने के बाद भी उनका नाता अपने स्कूल से जुड़ा रहा था। नासा की ओर से हर वर्ष आयोजित किए जाने यूनाटेड स्पेस स्कूल प्रोग्राम में टैगोर बाल निकेतन स्कूल के बच्चे भाग लेने जाते हैं। कल्पना चावला के प्रयासों की वजह से ही यह संभव हो सका कि हर साल इस स्कूल के बच्चों का चयन इस प्रोग्राम के लिए होने लगा। 1998 से इस स्कूल के बच्चे नासा जाने लगे थे। तब से लेकर अब तक 36 विद्यार्थी इस अभियान में भाग ले चुके हैं। शुरूआती बैच में गए छात्रों के दल की कल्पना चावला से भी मुलाकात होती थी। वह इन बच्चों के माध्यम से अपने स्कूली दिनों को याद करती थी।

घर में प्यार से कहते थे मोंटू

करनाल में बनारसी लाल चावला और मां संजयोती के घर जन्मी कल्पना चावला परिवार में सबकी दुलारी थी। वह अपने चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। घर में उन्हें प्यार से मोंटू कहकर पुकारा जाता था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा टैगोर बाल निकेतन स्कूल से पूरी की। 1995 में कल्पना नासा में अंतरिक्ष यात्री के तौर पर शामिल हुई और 1998 में उन्हें अपनी पहली उड़ान के लिए चुना गया। खास बात यह थी कि अंतरिक्ष में उडऩे वाली वह पहली भारतीय महिला थी।


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