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600 करोड़ की जमीन ज्योतिरादित्य सिंधिया की या सरकारी, केंद्र को पक्षकार बनाने पर मांगा जवाब

ग्वालियर के सामाजिक कार्यकर्ता ऋषभ भदौरिया ने ज्योतिरादित्य सिंधिया चेरिटेबल और कमलराजा चेरिटेबल ट्रस्ट के नाम की गई जमीन के मामले में जनहित याचिका दायर की है।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 02 Sep 2020 06:09 AM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 06:09 AM (IST)
600 करोड़ की जमीन ज्योतिरादित्य सिंधिया की या सरकारी, केंद्र को पक्षकार बनाने पर मांगा जवाब
600 करोड़ की जमीन ज्योतिरादित्य सिंधिया की या सरकारी, केंद्र को पक्षकार बनाने पर मांगा जवाब

 ग्वालियर, जेएनएन। राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया के ट्रस्टों के नाम करीब 600 करोड़ रुपये की 100 बीघा से ज्यादा जमीन किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से केंद्र सरकार व तत्कालीन एसडीएम को भी इस मामले में पक्षकार बनाने का आवेदन दिया। इस पर हाई कोर्ट ने मप्र सरकार से एक हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि सिंधिया के ट्रस्टों के नाम की गई जमीन सरकारी है। 

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हाई कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में मंगलवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने मांग की कि मामले में केंद्र सरकार का पक्ष सुना जाए, क्योंकि जिन 22 सर्वे नंबरों की 100 बीघा से ज्यादा जमीन सिंधिया के ट्रस्टों के नाम की गई है, उनका केंद्र सरकार व ग्वालियर की पूर्ववर्ती सिंधिया रियासत के बीच हुए प्रतिज्ञा पत्र में उल्लेख है या नहीं, यह केंद्र ही बता सकता है। तभी तय हो सकता है कि वह जमीन किसकी है। इस पर मप्र सरकार की ओर से हाई कोर्ट में मौजूद अतिरिक्त महाधिवक्ता एमपीएस रघुवंशी ने जवाब पेश करने के लिए समय मांगा। इस बीच हाई कोर्ट ने सवाल किया कि किसी को पक्षकार बनाने के लिए जवाब की क्या जरूरत है? जब रघुवंशी ने दोबारा समय देने की मांग की तो हाई कोर्ट ने एक सप्ताह में जवाब पेश करने का समय दे दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के आवेदन को रिकॉर्ड पर ले लिया है।

बता दें कि ग्वालियर के सामाजिक कार्यकर्ता ऋषभ भदौरिया ने ज्योतिरादित्य सिंधिया चेरिटेबल और कमलराजा चेरिटेबल ट्रस्ट के नाम की गई जमीन के मामले में जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि शहर के सिटी सेंटर, महलगांव ओहदपुर, सिरोल की सरकारी जमीन को राजस्व अधिकारियों ने उक्त दोनों ट्रस्टों के नाम कर दिया है। 

भदौरिया ने आरोप लगाया है कि उक्त जमीन की बाजार कीमत करीब 600 करोड़ रुपये है, जिसे अधिकारियों ने हेराफेरी करने का षड्यंत्र रचा है। जमीन सरकारी होने के बारे में यह दी दलील याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डीपी सिंह व अवधेश सिंह तोमर ने दलील दी कि जब देश आजाद हुआ था, तब तत्कालीन रियासतों का विलय किया गया था। तब रियासतों के राजाओं के साथ एक प्रतिज्ञा पत्र तैयार किया गया था। इसमें कौनसी संपत्तियां राजा के पास रहेंगी और कौनसी सरकारी हो जाएंगी, यह तय किया गया था। इसी सिलसिले में 30 अक्टूबर 1948 को केंद्र सरकार व तत्कालीन सिंधिया राजघराने के बीच एक प्रतिज्ञा पत्र तैयार हुआ था। भदौरिया ने कहा कि उक्त 100 बीघा से ज्यादा जमीन को सिंधिया के दो ट्रस्टों के नाम किया गया है, वह प्रतिज्ञा पत्र में नहीं हैं। ये संपत्तियां शासकीय दर्ज हो गई थीं, इसीलिए केंद्र सरकार का भी पक्ष सुना जाए।


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