पूर्व जज का राष्ट्रपति से आग्रह, दूसरी ऐतिहासिक भूल न होनें दें
दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज और वरिष्ठ वकील कैलाश गंभीर ने कॉलेजियम की सिफारिश पर आपत्ति जताते हुए राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। न्यायाधीशों की नियुक्ति और कोलेजियम की सिफारिश एक बार फिर सवालों में है। दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश कैलाश गंभीर ने जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दिनेश महेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट जज बनाने की कोलेजियम की सिफारिश पर सवाल उठाए हैं। गंभीर ने वरिष्ठता की अनदेखी का मुद्दा उठाते हुए राष्ट्रपति को पत्र लिखकर न्यायपालिका की विश्वसनीय स्वतंत्रता संरक्षित करने और दूसरी ऐतिहासिक भूल न होने देने का आग्रह किया है। पूर्व न्यायाधीश गंभीर ने राष्ट्रपति को यह पत्र 14 जनवरी को भेजा है।
कोलेजियम ने गत 10 जनवरी को कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दिनेश महेश्वरी और दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी। 10 जनवरी से पहले गत 12 दिसंबर को भी कोलीजियम बैठी थी और उसने कुछ निर्णय भी लिए थे लेकिन उस पर ज्यादा विचार विमर्श नहीं हो पाया था क्योंकि शीतकालीन अवकाश हो गया था। दोबारा जब पांच और छह जनवरी को जब बैठक हुई तबतक जस्टिस मदन बी लोकूर सेवानिवृत हो चुके थे और उनकी जगह जस्टिस अरुण मिश्रा शामिल हो चुके थे। यह बात कोलेजियम की सिफारिश में दर्ज है।
जस्टिस खन्ना और जस्टिस महेश्वरी के नामों की संस्तुति करते हुए कोलेजियम ने कहा है कि उन्होंने जजों की आल इंडिया वरिष्ठता और सुप्रीम कोर्ट में प्रांतीय प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए इन दोनों न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए उपयुक्त पाया है। यह भी दर्ज है कि जस्टिस महेश्वरी आल इंडिया वरिष्ठता में 21वें और जस्टिस खन्ना 33वें नंबर पर आते हैं।
हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश व वरिष्ठ वकील कैलाश गंभीर ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कोलेजियम की सिफारिश को परंपरा का उल्लंघन कहा है। जस्टिस खन्ना के संबंध में कहा गया है कि इसमें 32 न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी की गई है। इससे उन वरिष्ठ न्यायाधीशों की विश्वसनीयता और काबिलियत पर सवालिया निशान लगता है। कहा गया है कि सब जानते हैं कि जस्टिस संजीव खन्ना स्वर्गीय जस्टिस डीआर खन्ना के पुत्र और स्वर्गीय जस्टिस एचआर खन्ना के भतीजे हैं। चर्चा है कि जस्टिस संजीव खन्ना के नाम की सिफारिश उनके महान ताऊ जस्टिस एचआर खन्ना के आदर्शो, सिद्धांतों, न्यायिक दर्शन की छोड़ी गई विरासत और सबसे ज्यादा उनके बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में लिए गए साहसिक फैसले को श्रद्धांजलि है।
हम सभी जानते हैं कि आपातकाल में सरकार के निरुद्ध करने के असीमित अधिकार पर मुहर लगाने वाले चार न्यायाधीशों के बहुतम के फैसले से जस्टिस खन्ना ने असहमति जताई थी वे बहुमत के आगे झुके नहीं थे। यह निर्विवाद तथ्य है कि जस्टिस खन्ना की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए जस्टिस एमएच बेग को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था और इसके बाद जस्टिस खन्ना ने इस्तीफा दे दिया था। यह उनका उन लोगों को तमाचा था जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और वरिष्ठता से खिलवाड़ करने वालों के समर्थक थे। जस्टिस खन्ना की वरिष्ठता की अनदेखी भारतीय न्यायपालिका के इतिहास का काला दिन है। यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट नंबर 2 में जस्टिस खन्ना की आदमकद पेटिंग लगी है। वह पहले न्यायाधीश हैं जिनके जीवित रहते उनकी पेंटिंग सुप्रीम कोर्ट में लगी।
पत्र में सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों की पिछले वर्ष की प्रेस कान्फ्रेंस का भी जिक्र है। जिसमें जस्टिस गोगोई भी शामिल थे। कहा गया है कि उस प्रेस कान्फ्रेंस में न्यायाधीशों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के साथ पेश आ रही समस्याओं को उठाया था। मीडिया से कहा गया था कि अगर इस संस्था को नहीं संरक्षित किया गया तो लोकतंत्र नहीं बचेगा। स्वतंत्र न्यायपालिका के बगैर लोकतंत्र नहीं रह सकता।
पत्र में राष्ट्रपति से आग्रह किया गया है कि वे ध्यान दें कि कैसे कोलीजियम ने 32 जजों की वरिष्ठता की अनदेखी की है। यह भी कहा है कि अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, डेढ़ महीने पहले पिछली कोलीजियम ने जस्टिस दिनेश महेश्वरी की वरिष्ठता की अनदेखी की थी और अब अचानक उन्हें उपयुक्त पाते हुए उनकी सिफारिश की गई है।
जस्टिस गंभीर ने राष्ट्रपति से कहा है कि न्यायपालिका का सदस्य रह चुकने के नाते वह यह पत्र लिख रहे हैं। 32 न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी कर जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट जज बनाया जाना दूसरा काला दिवस होगा क्योंकि जिनकी वरिष्ठता की अनदेखी की गई है उनमें कई इनसे कम काबिल और निष्ठावान नहीं होंगे। उन्होंने राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि इन पहलुओं पर ध्यान दें।