सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बोबेडे ने कहा, न्याय देने में न जल्दबाजी हो न देरी, समुचित तरीके से हो विचार
Justice Bobde ने कहा कि देश की आबादी के हिसाब से प्रति दस लाख की आबादी पर बीस जज हैं। जबकि अधिकांश देशों में दस लाख लोगों पर 50 से 80 जज होते हैं।
गुवाहाटी, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे ने कहा है कि न्याय की प्रक्रिया पर समुचित तरीके से विचार होना चाहिए। न्याय देने की प्रक्रिया में कोई जल्दबाजी या देरी नहीं की जानी चाहिए।
एक राष्ट्रीय समागम में जस्टिस बोबडे ने कहा कि विश्व के सबसे खराब शासनों में 'त्वरित न्याय' की अवधारणा अपना ली गई है। लेकिन न्याय देने में भी देरी नहीं होनी चाहिए। कोई भी न्याय करने में देरी नहीं करना चाहता, लेकिन न्याय करने में समय लगता है। इस बात को सही संदर्भो में समझा जाना चाहिए।
भारतीय न्यायपालिका की चुनौतियों पर हुए सम्मेलन में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, गुवाहाटी हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश अरुप कुमार गोस्वामी समेत विभिन्न हाईकोर्टो को मुख्य न्यायाधीश और पूर्व न्यायाधीश भी मौजूद रहे।
प्रति दस लाख की आबादी पर केवल बीस जज
जस्टिस बोबडे ने कहा कि देश की आबादी के हिसाब से प्रति दस लाख की आबादी पर बीस जज हैं। जबकि अधिकांश देशों में दस लाख लोगों पर 50 से 80 जज होते हैं। उन्होंने कहा कि यह भी देखा जाना चाहिए मुकदमे कितने दायर होते हैं।
इस सम्मेलन में न्यायपालिका पर सोशल मीडिया के प्रभाव पर भी चर्चा हुई। बोबडे ने कहा कि जजों को भी सोशल मीडिया से ताल्लुक रखना चाहिए। हम उस तक पहुंचे, लेकिन उसमें उलझें नहीं। हमें उसका हिस्सा बनना चाहिए ताकि हमें पता चले कि लोग हमारे काम के बारे में क्या सोचते हैं। चूंकि हम लोगों के लिए ही काम कर रहे हैं।