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लोया मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता की टिप्पणी से जज हुए खफा

इस टिप्पणी को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, जज अपने विवेक और दिल की आवाज से प्रेरित होते हैं। उन्हें न्याय के लिए किसी के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होती।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Thu, 08 Mar 2018 10:43 PM (IST)Updated: Fri, 09 Mar 2018 07:32 AM (IST)
लोया मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता की टिप्पणी से जज हुए खफा
लोया मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता की टिप्पणी से जज हुए खफा

नई दिल्ली, प्रेट्र : सुप्रीम कोर्ट में जज लोया मौत मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को वरिष्ठ अधिवक्ता की टिप्पणी पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पीठ ने कड़ा एतराज जताया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा था कि पीठ मामले को सामने वाले से ही सवाल पूछ रही है, महाराष्ट्र सरकार से कुछ नहीं पूछ रही जो लापरवाही के लिए जिम्मेदार है।

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इस टिप्पणी को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, जज अपने विवेक और दिल की आवाज से प्रेरित होते हैं। उन्हें न्याय के लिए किसी के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होती। हम वही सवाल पूछते हैं जिसके लिए हमारा विवेक गवाही देता है। हमें आपको अपनी न्याय क्षमता का दिखावा करने की जरूरत नहीं है। हमें किसी के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है। कम से कम उस वकील से तो नहीं, जो संबंधित मामले में बहस कर रहा हो। इस पीठ में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल हैं।

पीठ का यह कड़ा रुख वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे के यह कहने पर सामने आया जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कुछ भी न पूछने की बात कही। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, यह हमारी न्यायिक व्यवस्था है जिसमें उसी वकील से सवाल पूछे जाते हैं, जो इसे कोर्ट में लेकर आया होता है। न्यायाधीश पहले वादी के दावे से संतुष्ट होना चाहते हैं। सिस्टम के अनुसार अधिवक्ता भले ही कोर्ट से सहमत न हो लेकिन हमें अधिवक्ता या वादी से सहमत होना पड़ता है। तभी मुकदमा आगे बढ़ता है। लोया मौत मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से किसी अन्य दस्तावेज या शपथ पत्र की जरूरत नहीं बताई।

रोहतगी ने कहा, यह मामला मीडिया में आए एक लेख पर आधारित है। यह गलत इरादे से दायर किया गया मामला है। यह लेख तीन साल से नहीं लिखा गया लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने सोहराबुद्दीन शेख मामले को खारिज किया तो यह मीडिया में आ गया। इस पर दवे ने सवाल पूछा कि सीबीआइ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के विरोध में अपील क्यों नहीं कर रही? रोहतगी ने कहा कि ये सब गैरजरूरी बातें हैं।

बहस में शामिल अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि जज बीएच लोया की मौत से संबंधित हिस्टो पैथोलॉजी और ईसीजी रिपोर्ट राज्य सरकार ने कोर्ट के समक्ष पेश नहीं की हैं। उन्होंने कई हृदय रोग विशेषज्ञों से मुलाकात कर जज लोया की इन दोनों रिपोर्ट को दिखाया। विशेषज्ञों ने उन रिपोर्ट के आधार पर हार्ट अटैक से मौत होने की बात खारिज की है। भूषण ने अपने दावे के समर्थन में वरिष्ठ चिकित्सकों की राय कोर्ट में पेश की। मामले में बहस शुक्रवार को भी जारी रहेगी।


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