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तंत्र के गण : टीवी की दुनिया में श्वेत-श्याम से लेकर वैश्विक छवि तक की यात्रा

सरकारी नौकरियों पर अत्यधिक निर्भरता से स्वरोजगार की तरफ युवा चल पड़े हैं। स्टार्टअप देश में तकनीक नवाचार निवेश और आत्मनिर्भरता की नई संस्कृति रच रहे हैं। भारत में 62 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपभोक्ता हैं। भारत में इंटरनेट कई देशों से काफी सस्ता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 25 Jan 2022 01:07 PM (IST)Updated: Tue, 25 Jan 2022 01:07 PM (IST)
तंत्र के गण : टीवी की दुनिया में श्वेत-श्याम से लेकर वैश्विक छवि तक की यात्रा
धीरे-धीरे इंटरनेट कैफे बने और अब तो मोबाइल में ही इंटरनेट है। जागरण फोटो

नई दिल्‍ली, जेएनएन। भारत बहुसांस्कृतिक देश है। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक विविधता की बयार बहती है। स्वतंत्रता के 75 वर्ष की लंबी समयावधि में संस्कृति के क्षेत्र में कई अहम बदलाव हुए हैं, जो हमारे स्वावलंबन के साक्षी हैं। मनोरंजन के क्षेत्र में बालीवुड वैश्विक हो चला है। ग्रामीण जीवनशैली पर शहरी छाप गहरी हो रही है।

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स्टार्टअप से नई शुरुआत

  • भारत युवाओं का देश है। बीते सात वर्ष में युवाओं ने स्टार्टअप के रूप में एक नई रोजगार संस्कृति का शुभारंभ किया है
  • हमारा देश स्टार्टअप में विश्व में तीसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम बना है। 634 से अधिक जिलों में 60,000 से अधिक स्टार्टअप हैं
  • भारत में स्टार्टअप 55 तरह के औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़े हैं। आइटी सेक्टर में 14, हेल्थकेयर में नौ, एजूकेशन में सात, खानपान व कृषि क्षेत्र में चार-चार प्रतिशत स्टार्टअप काम कर रहे हैं
  • हमारे देश में कुल 80 यूनिकार्न हैं जिसमें से पचास प्रतिशत से अधिक 2021 में ही बने। इनकी कुल वैल्यू 82 बिलियन डालर से अधिक है
  • इस नई रोजगार संस्कृति का ही नतीजा है कि देश में मौजूद यूनिकार्न का मूल्यांकन 260 बिलियन डालर से अधिक है। अिब वश्व के दस यूनिकार्न में से एक भारत में बनता है
  • स्टार्टअप की इस तेजी का कारण है भारत में तेजी से बढ़ती डिजिटल पेमेंट प्रणाली, स्मार्टफोन उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या और डिजिटल बिजनेस माडल का बढ़ता चलन
  • बेंगलुरू, दिल्ली और मुंबई देश के यूनिकार्न हब हैं, लेकिन स्टार्टअप की पटकथा छोटे-छोटे शहरों में भी लिखी जा रही है
  • अब स्टार्टअप गेमिंग, कंटेंट, डाटा प्रबंधन और एनालिटिक्स और क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज जैसे नये क्षेत्रों में भी बन रहे हैं
  • जोमैटो, पेटीएम, नायका और पालिसीबाजार शेयर बाजार में आइपीओ भी लेकर आ चुके हैं।

टीवी की दुनिया में श्वेत-श्याम से लेकर वैश्विक छवि तक की यात्रा

  • भारत में फिल्में और टेलीविजन मनोरंजन का अहम साधन बन चुके हैं। 1982 नई दिल्ली एशियाई खेलों ने देश में श्वेत-श्याम टीवी को घर-घर तक पहुंचाने का काम किया। अब स्मार्ट टीवी पर सैकड़ों चैनल देखने की व्यवस्था है
  • ओवर द टाप (ओटीटी) मंचों ने मनोरंजन की संस्कृति को देश में एक नया माध्यम दिया है। विदेशी कंपनियों को भारत में बड़ा बाजार दिखा तो नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम यहां आ पहुंचे
  • देशी ब्रांड भी पीछे नहीं रहे और आल्ट बालाजी, जीफाइव, मैक्स जैसी कंपनियां कंटेंट परोस रही हैं। लोग टीवी पर, मोबाइल पर देख रहे हैं

इंटरनेट संस्कृति

  • 15 अगस्त 1995 को देश में इंटरनेट की शुरुआत हुई और केवल 27 वर्ष में यह जीवनशैली का अभिन्न अंग बन गया है
  • धीरे-धीरे इंटरनेट कैफे बने और अब तो मोबाइल में ही इंटरनेट है

ग्रामीण जीवन में बदलाव

  • सामंती व्यवस्था का उन्मूलन, पंचायतीराज तथा सरकारी योजनाओं से गांवों में जीवनशैली बदली
  • बर्तन बदले, पहनावा बदला, वाहन बदले और मनोरंजन के साधन भी बदल गए
  • यजमानी की परंपरा कालांतर में समाप्त होने लगी। घर-घर आने वाले नाई दुकान खोलकर काम करने लगे। कुम्हार बर्तन बाजार में बेचने लगे। शहरों की ओर पलायन हुआ

विश्व पटल पर छा रहा फिल्म बाजार

  • वीएफएक्स के दौर में विदेशी विशेषज्ञ यहां आ रहे हैं
  • कैमरे डिजिटल और हल्के हुए हैं। अत्याधुनिक साउंड रिकार्डिंग से भारत में अपने स्टूडियो में बैठकर संगीतकार विदेश में बज रही किसी ध्वनि का इस्तेमाल कर सकता है
  • 1913 में शुरू हुआ भारतीय सिनेमा का सफर अब देश में प्रतिवर्ष 1,600 फिल्में बनाने तक पहुंच चुका है
  • हमारे देश में सबसे अधिक फिल्में देखी जाती हैं। वर्ष 2011 में पूरे देश में 3.5 अरब से अधिक फिल्म टिकट बिके
  • हालीवुड तथा चीनी फिल्म उद्योग के साथ भारतीय सिनेमा एक वैश्विक उद्योग बना
  • भारतीय फिल्म उद्योेग हर वर्ष करीब 14,000 करोड़ रुपये की कमाई करता है। 90 से अधिक देशों में बाजार है
  • दंगल विश्व में 2,000 करोड़ से अधिक की कमाई से अंतरराष्ट्रीय ब्लाकबस्टर फिल्म बनी
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से 20वीं सेंचुरी फाक्स, सोनी पिक्चर्स, वाल्ट डिज्नी पिक्चर्स और वार्नर ब्रदर्स जैसी निर्माता कंपनियां भारतीय सिनेमा में संभावनाएं तलाशने पहुंची हैं
  • भारतीय सिनेमा का प्रभाव पश्चिम की फिल्मों पर दिख रहा है। बाज लुहरमन अपनी संगीतमय फिल्म मौलिन रूज पर बालीवु़ड फिल्म संगीत का प्रभाव स्वीकार करते हैं
  • भानु अथैया (पोशाक डिजाइनर), सत्यजीत रे, एआर रहमान (संगीतकार), रेसुल पोकुट्टी (साउंड एडीटर) और गुलजार (गीतकार) आस्कर पा चुके हैं

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