जिन्ना को लेकर कुछ तथ्यों को एक बार फिर जानना जरूरी
गांधी जी जहां आजादी के लिए अहिंसक आंदोलन के हिमायती थे, वहीं जिन्ना संवैधानिक सुधार के जरिए आजादी हासिल करने में भरोसा रखते थे।
उमेश चतुर्वेदी। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रसंघ हॉल में जिन्ना की तस्वीर पर उठा विवाद देखते ही देखते खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया। उत्तेजित करने वाली इस घटना का राजनीतिक पोस्टमार्टम शुरू हो गया है। अपनी-अपनी राजनीतिक और वैचारिक प्रतिबद्धताओं के आधार पर जिन्ना को सेक्युलर और सांप्रदायिक साबित करने और एक-दूसरे वैचारिक ध्रुवों को गलत साबित करने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। बहरहाल जिन्ना की तस्वीर पर विवाद उभारने की राजनीति पर जारी शीतयुद्ध की चर्चाओं के बीच जिन्ना को लेकर कुछ तथ्यों को एक बार फिर जानना जरूरी है।
पाकिस्तान के जनक
जिन्ना ने बेशक द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को स्वीकार किया, पाकिस्तान के जनक बने और कायदे आजम के सम्मान से नवाजे गए, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा कड़वा सत्य यह है कि 1920 के कांग्रेस के नागपुर सम्मेलन में उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन की खुली मुखालफत की थी। गांधी जी से बनी उनकी यह दूरी लगातार बढ़ती गई। दिलचस्प है कि आज खळ्द को गांधी जी का समर्थक बताने वाले ही तस्वीर विवाद पर जिन्ना के पक्ष में खड़े हैं। जिन्ना का मानना था कि असहयोग आंदोलन आदि के जरिए देश को आजादी नहीं मिल सकती। इसलिए उन्होंने खुले मंच से गांधी जी से असहमति जताई।
प्रतीक पुरुष गांधी
चंपारण आंदोलन के तीन साल हो चुके थे। तब तक गांधी जी भारतीय जनमानस की आकांक्षाओं के प्रतीक पुरुष बन चुके थे। हालांकि तब तक जिन्ना की भी राजनीतिक हैसियत बन गई थी, लेकिन गांधी जी का खुलेआम विरोध उनके समर्थक सहन नहीं पाए। उनसे टोका-टाकी की गई। हालांकि आजादी हासिल करने के गांधी जी के तरीके का विरोध करने वाले जिन्ना अकेले नहीं थे, बल्कि उनके साथ बिपिन चंद्र पॉल और एनी बेसेंट जैसे नेता भी थे। तब तीनों ने कांग्रेस छोड़ दी थी। गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन एक अगस्त 1920 को शुरू किया था। जिसकी पुष्टि कांग्रेस ने अपने नागपुर अधिवेशन में की थी। इसके पहले गांधी जी के खिलाफत आंदोलन का भी जिन्ना ने विरोध किया था।
अहिंसक आंदोलन के हिमायती
गांधी जी जहां आजादी के लिए अहिंसक आंदोलन के हिमायती थे, वहीं जिन्ना संवैधानिक सुधार के जरिए आजादी हासिल करने में भरोसा रखते थे। ठीक उसी तरह जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को मिली, लेकिन गांधी जी की अगुआई में कांग्रेस इससे आगे की सोच रही थी। हालांकि वह भी शुरू में औपनिवेशिक स्वतंत्रता की हिमायती थी, लेकिन 1929 में उसने अपनी सोच बदल दी और पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित किया। दूसरी ओर 1920 में गांधी जी से बनी जिन्ना की दूरी लगातार बढ़ती रही। यह कितनी हैरत की बात है कि आज जो विचारधारा तस्वीर विवाद में जिन्ना के साथ खड़ी नजर आ रही है, वह गांधी जी के विचारों की भी समर्थक मानी जाती है।
अलगाव की शुरुआत का कारण बने
इन अर्थो में क्या यह माना जा सकता है कि 1920 में गांधी जी और जिन्ना के जो विचार उनके अलगाव की शुरुआत का कारण बने और 1930 आते-आते तक दोनों की अलग-अलग राहों का आधार बने, दरअसल दोनों एक ही थे? अगर यह सच होता तो तय है कि भारत को विभाजन का दंश नहीं झेलना पड़ता। अगर ऐसी सोच वाली अवाम तब होती तो शायद जिन्ना और गांधी जी के समर्थक ही दोनों को साथ रहने को मजबूर करते और सत्तर साल से देश जो कश्मीर की समस्या झेल रहा है, उससे बच गया होता। देश में आतंकवाद के बारूद नहीं होते। भारतीय लोग बिना किसी वीजा के चाबहार बंदरगाह से कराची होते हुए ढाका तक जाते।
वरिष्ठ पत्रकार