प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर जदयू दुविधा में, गले अटके मोदी
नई दिल्ली [आशुतोष झा]। राजग में प्रधानमंत्री उम्मीदवार की दुविधा जदयू के गले की फांस बनता जा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की आहट से परेशान जदयू में रास्ता तलाशने की भी सुगबुगाहट होने लगी है। शनिवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में विभिन्न प्रदेशों के अध्यक्षों ने शरद यादव और नीतीश से इसी दुविधा को खत्म करने को कहा। उन्होंने पूछा 'चुनाव भाजपा के साथ लड़ना या है अलग होकर? दुविधा में हम तैयारी नहीं कर पाएंगे।'
नई दिल्ली [आशुतोष झा]। राजग में प्रधानमंत्री उम्मीदवार की दुविधा जदयू के गले की फांस बनता जा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की आहट से परेशान जदयू में रास्ता तलाशने की भी सुगबुगाहट होने लगी है। शनिवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में विभिन्न प्रदेशों के अध्यक्षों ने शरद यादव और नीतीश से इसी दुविधा को खत्म करने को कहा। उन्होंने पूछा 'चुनाव भाजपा के साथ लड़ना या है अलग होकर? दुविधा में हम तैयारी नहीं कर पाएंगे।'
भाजपा और जदयू का रिश्ता 17 साल पुराना हो चुका है। रिश्ते खट्टे-मीठे रहे हैं। लेकिन शनिवार को जदयू का रुख सख्त था। कार्यकारिणी की बैठक में पहली बार जदयू भाजपा पर पूरी तरह आक्रामक रहा। राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में संगठन पर चर्चा हुई तो भाजपा पर गठबंधन धर्म न निभाने की जिम्मेदारी थोपी गई। महासचिव व प्रवक्ता केसी त्यागी ने कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, झारखंड, राजस्थान समेत कई राज्यों का हवाला देते हुए कहा कि भाजपा ने इन राज्यों में या तो गठबंधन तोड़ लिया है या फिर कुछ सीटें साझा करने के बावजूद पूरी आस्था के साथ वादा पूरा नहीं किया।
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष बुरी तरह उलझे थे। एक ने कहा 'हमें भाजपा के साथ मिलकर तैयारी करनी है या अलग रहकर, यह पर्याप्त समय पहले बताया जाना चाहिए। दुविधा में हम कोई तैयारी नहीं कर पाएंगे।' शनिवार की बैठक की समाप्ति के वक्त नीतीश जरूर बोले लेकिन उस सवाल का जवाब नहीं मिला है जो प्रदेश अध्यक्षों ने उठाया था। लिहाजा रविवार को उनके समापन भाषण पर नजर होगी।
सूत्रों का कहना है कि यह दुविधा बड़े नेताओं में भी है। दरअसल बिहार के जातिगत समीकरण और खासकर अल्पसंख्यक मतों को लेकर जदयू असमंजस में है। एक धड़े का मानना है कि दुविधा से बाहर निकलकर फैसला करना होगा ताकि इसका लाभ राजद न उठा पाए। वहीं भाजपा को यही दुविधा रास आ रही है। पार्टी आखिरी समय तक इस मुद्दे पर चुप्पी रखकर एक साथ चुनावी लाभ और दूसरी ओर गठबंधन की ताकत को बनाए रखना चाहती है। ऐसे में माना जा रहा है कि जदयू समय देखकर अलग रास्ता चलने का फैसला भी कर सकता है।
कार्यकारिणी की बैठक की जानकारी देने आए त्यागी ने अलग-अलग सवालों के जवाब में भाजपा को दोस्त और कांग्रेस को दुश्मन करार दिया। प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के लिए समय सीमा दिए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि दोस्ती में कोई सौदेबाजी नहीं होती है लेकिन धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर जदयू कोई समझौता नहीं कर सकता है। भाजपा के साथ दोस्ती एक राष्ट्रीय एजेंडा के तहत हुई थी। उसका सम्मान सभी को करना होगा। उन्होंने यह भी याद दिला दिया कि 2002 के गुजरात दंगे को मोदी ने पूरी दरियादिली के साथ नियंत्रित नहीं किया था। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस के साथ जदयू का रिश्ता नहीं बन सकता है। कई समाजवादी नेता कांग्रेस से धोखा खा चुके हैं। उनसे तो हमारी तौबा है।
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