मुरारी के रहते कोई बच्चा बिना टीके के छूट जाए 'नामुमकिन', आप भी जानें इनकी दिलचस्प कहानी
बिहार में जमुई जिले के पतंबर गांव निवासी मुरारी शर्मा की। आर्थिक तौर पर पिछड़े इस गांव के 21 वर्षीय मुरारी को पता है कि किस बच्चे को कब कौन सा टीका लगना है।
विधु शेखर, जमुई। उसके पास अदद साइकिल ही है, पर इलाके के लोग उसे एंबुलेंस कहकर पुकारते हैं। ऐसा इसलिए कि मुरारी की साइकिल पर अक्सर कोई बच्चा या बीमार बैठा दिख जाता है। वह उन्हें साइकिल से अस्पताल लेकर जा रहा होता है या अस्पताल से घर। यह सब वह करता है बिना किसी स्वार्थ। गांव और आसपास के किस बच्चे को कब कौन सा टीका लगवाना है, मुरारी सब जानता है।
बात हो रही है बिहार में जमुई जिले के पतंबर गांव निवासी मुरारी शर्मा की। आर्थिक तौर पर पिछड़े इस गांव के 21 वर्षीय मुरारी को पता है कि किस बच्चे को कब कौन सा टीका लगना है। मजाल है कि मुरारी के होते किसी बच्चे का टीकाकरण अधूरा रह जाए। गांव में कौन-कौन बीमार है, क्या दवाएं चल रही हैं। अगर इलाज की जरूरत है तो लेकर चल देता है अस्पताल। उसे आता देखकर घरवाले भी समझ जाते हैं कि उनके बच्चे को टीका लगना है। फिर परिजन उसकी साइकिल पर बच्चे को बिठाकर उसके पीछे-पीछे चल देते हैं। नजारा बिलकुल पारिवारिक और आत्मीय होता है। उसके निस्वार्थ सेवाभाव से गांव में उसका मान बढ़ गया है। लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि एक डॉक्टर से कतई कम जानकारी नहीं है उसके पास। हालांकि वह झोलाछाप डॉक्टर की तरह किसी का इलाज नहीं करता। पर किस बीमारी में क्या परहेज करना है, यह जरूर बता देता है।
ताकि कोई और मां न मरे
मुरारी ने बताया, पिता कालेश्वर मिस्त्री की मौत 2001 में हो गई थी। तब मैं महज तीन साल का था। मां बीड़ी पत्ता जंगल से ला और बीड़ी बनाकर हमें पालपोस रही थी। 2011 में मां जब जंगल से आई तो उसे तेज बुखार आ गया। घर वाले झाड़फूंककराने लगे। इसी दौरान मां की मौत हो गई। मैंने तब ही संकल्प ले लिया था कि लोगों को स्वास्थ्य सेवा के प्रति जागरूक करूंगा। अपने इलाके से अंधविश्वास को दूर भगाऊंगा। स्नातक का छात्र मुरारी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च निकालता है। वार्ड सदस्य रेखा देवी ने कहा कि मुरारी का प्रयास रंग लाया है। इलाके में अंधविश्वास में कमी आई है। अब लोग नीम-हकीम की जाल में नहीं फंसते। बच्चों का टीकाकरण पूरा हो रहा है।
मुरारी का महत्व
ऐसे में बिहार के धुर देहात इलाके के मुरारी जैसे जागरूक युवा इंद्रधनुष कार्यक्रम को सफलता की उस स्थिति में पहुंचा सकते हैं, जहां तक पहुंचाने में गांव के मौजूदा स्वास्थ्य तंत्र को लंबा रास्ता तय करना पड़ सकता है। मुरारी का प्रयास रंग ला रहा है। बच्चों को समय पर टीके लगे रहे है। इससे उनका विभिन्न बीमारियों से बचाव हो रहा है।
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