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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, बार के नजरबंद नेता कयूम की हिरासत अवधि नहीं बढ़ेगी

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि हाई कोर्ट बार के नेता मियां अब्दुल कयूम की हिरासत अवधि सात अगस्त से आगे नहीं बढ़ाई जाएगी।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 11:56 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2020 10:07 AM (IST)
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, बार के नजरबंद नेता कयूम की हिरासत अवधि नहीं बढ़ेगी
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, बार के नजरबंद नेता कयूम की हिरासत अवधि नहीं बढ़ेगी

नई दिल्ली, पीटीआइ। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हाई कोर्ट बार के नेता मियां अब्दुल कयूम की हिरासत अवधि सात अगस्त से आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। शीर्ष अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से पूछा, वह 29 जुलाई तक बताए कि मियां अब्दुल कयूम को सात अगस्त तक जमानत पर क्यों नहीं रिहा किया जा सकता।

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जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह बुधवार तक आवश्यक निर्देश प्राप्त करके सूचित करें। पीठ ने कहा, हम अब्दुल कयूम को जम्मू-कश्मीर नहीं जाने और किसी भी प्रकार के बयान नहीं देने जैसी कुछ शर्तो के साथ जमानत पर रिहा कर सकते हैं।' कयूम को पिछले साल सात अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद हिरासत में लिया गया था।

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 23 जुलाई को शीर्ष अदालत में बताया था कि मियां अब्दुल कयूम की हिरासत का मामला इस समय विचाराधीन है और जल्द ही इस मामले में निर्णय लिया जाएगा। इससे पहले, 15 जुलाई को शीर्ष अदालत ने प्रशासन से पूछा था कि उसने मियां अब्दुल कयूम को किस आधार पर हिरासत में रखा है। शीर्ष अदालत ने प्रशासन से कहा था कि वह कयूम की आयु, हिरासत अवधि खत्म होने और कोविड-19 महामारी समेत कई पहलुओं पर ध्यान दे।

अपनी हिरासत को चुनौती देने वाली कयूम की याचिका पर शीर्ष अदालत ने 26 जून को जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी करके जवाब मांगा था। याचिका में कयूम ने चिकित्सकीय आधार पर तिहाड़ जेल से श्रीनगर की सेंट्रल जेल में भेजने का अनुरोध किया था। इस याचिका में कयूम ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के 28 मई के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें केंद्र शासित प्रदेश के बाहर की जेलों में पीएसए के तहत उन्हें लंबे समय तक गैरकानूनी हिरासत में रखने के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। 


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