रूस व चीन के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक में जयशंकर बोले, अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करना जरुरी
जयशंकर का भाषण मुख्य तौर पर द्विपक्षीय व त्रिपक्षीय सिद्धांतों के बजाये समूचे वैश्विक माहौल और भारत से अंतरराष्ट्रीय वैश्विक मंच पर किया गया भेदभाव पर केंद्रित रहा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य तनाव के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी आज वर्चुअल तौर पर आमने सामने तो आये लेकिन इनके बीच द्विपक्षीय मुद्दे नहीं उठे। ये दोनो विदेश मंत्री रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ रूस-भारत-चीन (आरआइसी) संगठन के तहत मिले। बैठक रूस की तरफ से बुलाई गई थी और रूसी विदेशी मंत्री ने आधिकारिक तौर पर यही कहा है कि भारत व चीन के बीच के मुद्दे को सुलझाने के लिए किसी तीसरे देश की मदद नहीं चाहिए। भारत व चीन भी नहीं चाहते कि कोई तीसरा पक्ष मध्यस्थता करे।
वैसे बैठक में अपना संबोधन देते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने परोक्ष तौर पर भारत की चिंताओं को जता ही दिया। उन्होंने कहा कि, 'जो देश दुनिया में अपने आपको अग्रणी मानते हैं उन्हें हर क्षेत्र में मिसाल बनना चाहिए। साथ ही इन देशों को अपने साझेदारों के हितों का ध्यान रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी पालन करना चाहिए। यह तीन देशों की विशेष बैठक इस बात का उदाहरण है कि हम अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सिद्धांतों में भरोसा करते हैं लेकिन आज चुनौती सिद्धांतों व नियमों की नहीं बल्कि उनके पालन करने की है।' कहने की जरुरत नहीं कि भारतीय विदेश मंत्री का इशारा किस तरफ था। सनद रहे कि चीन की सेना ने हाल ही में एलएसी का अतिक्रमण किया है। इसको लेकर भारत व चीन की सेनाओं के बीच खूनी झड़प हुई है जिसमें 20 भारतीय सैनिकों व कुछ चीन के सैनिकों की मौत हुई है। विवाद को सुलझाने के लिए दोनो देशों के बीच सैन्य व कूटनीतिक वार्ता चल रही है।
संयुक्त राष्ट्र का उठाया मुद्दा
बैठक के शुरुआत में जयशंकर का भाषण मुख्य तौर पर द्विपक्षीय व त्रिपक्षीय सिद्धांतों के बजाये समूचे वैश्विक माहौल और भारत से अंतरराष्ट्रीय वैश्विक मंच पर किया गया भेदभाव पर केंद्रित रहा। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र का मुद्दा उठाया कि जब इसकी शुरुआत हुई थी तो इसमें 50 सदस्य थे लेकिन अब 193 सदस्य हैं लेकिन इसके फैसले में यह विस्तार को ध्यान में नहीं रखा जाता। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध का नाम लिये बगैर कहा कि जब विजेताओं ने नई वैश्विक ढांचे की नींव रखी तो भारत को उसका सही स्थान नहीं दिया गया। 75 वर्षो बाद भी उस ऐतिहासिक गलती में सुधार नहीं किया गया है। भारत ने जो विश्व को योगदान दिया है उसे मान्यता देने का अब समय आ गया है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के योगदान का भी उन्होंने उदाहरण दिया। सनद रहे कि बुधवार को मास्को में द्वितीय विश्व युद्ध में विजय के उपलक्ष्य में ही विक्टोरी डे पेरेड होना है।