अहिंसा का संदेश लेकर बस्तर पहुंचे जैनाचार्य महाश्रमण, 20 हजार किमी की कर चुके हैं पैदल यात्रा
आचार्य महाश्रमण का जन्म 13 मई 1962 को राजस्थान के सरदार शहर में हुआ। 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने दीक्षा ली। जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्य महाश्रमण ने कई पुस्तकें लिखी हैं जो समाज को नई दिशा देने का काम कर रही हैं।
जगदलपुर, राज्य ब्यूरो। जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्य महाश्रमण की अहिंसा यात्रा शुक्रवार सुबह जगदलपुर पहुंची तो समाज के लोगों ने उनकी अगवानी कर नगर की चाबी सौंपी और अभिनंदन किया। इसके बाद वे साधु-साध्वियों व समाजजनों के साथ निर्मल विद्यालय प्रांगण पहुंचे जहां विशाल जनसभा को संबोधित कर अहिंसा का संदेश दिया।
जैनाचार्य महाश्रमण ने कहा- अहिंसा से बड़ा कोई हथियार नहीं
उन्होंने कहा कि सभी समस्याओं का हल अहिंसा में है। इससे बड़ा कोई हथियार नहीं है। बता दें कि नौ नवंबर 2014 को जैन आचार्य महाश्रमण ने दिल्ली के लालकिले से अहिंसा यात्रा की शुरुआत की थी।
भारत, नेपाल व भूटान में 20 हजार किमी की कर चुके हैं पैदल यात्रा
आचार्य महाश्रमण भारत, नेपाल और भूटान के 23 राज्यों की 20 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा कर चुके हैं। इस दौरान वे एक करोड़ से अधिक लोगों को नशामुक्ति का संदेश दे चुके हैं। सभा में आचार्यश्री ने कहा कि जहां हिंसा है, वहां अशांति है। और जहां अहिंसा है, वहां शांति है। विकास शांति के माहौल में ही होगा।
जैनाचार्य ने कहा- सभी प्राणियों के प्रति मैत्री भाव रखना कई समस्याओं का हल
उन्होंने कहा कि सभी प्राणियों के प्रति मैत्री भाव रखना कई समस्याओं का हल है। कोई व्यक्ति हिंसा के रास्ते पर नहीं चलना चाहता है। उसको बहकाया जाता है। उन्होंने कहा कि हिंसा किसी भी मजबूरी के लिए की जाए, लेकिन वो स्वीकार्य नहीं है।
मर्यादा महोत्सव रायपुर में शामिल होंगे
बता दें कि आचार्य महाश्रमण 39 संत व 16 साध्वियों के साथ विहार कर रहे हैं। वे 14 फरवरी को मर्यादा महोत्सव रायपुर में शामिल होकर सप्ताह भर रुुकेंगे। वहां से विहार कर नागपुर होते हुए आगामी चातुर्मास के लिए भीलवाड़ा राजस्थान के लिए प्रस्थान करेंगे।
आचार्यश्री का परिचय: 12 वर्ष की उम्र में दीक्षा ली थी
आचार्य महाश्रमण का जन्म 13 मई 1962 को राजस्थान के सरदार शहर में हुआ। वे झुमरलाल दुग्गड़ व नेमादेवी की संतान हैं। उनके जन्म का नाम मोहन दुग्गड़ था। पांच मई 1974 को 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने दीक्षा ली और इसके बाद उन्हें मुनि मुदित के नाम से जाना गया। वे योगी, आध्यात्मिक नेता, दार्शनिक, लेखक, वक्ता और कवि हैं। जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्यारहवें आचार्य महाश्रमण ने कई पुस्तकें लिखी हैं, जो समाज को नई दिशा देने का काम कर रही हैं।