Move to Jagran APP

पाकिस्तान में लोकतंत्र एक अबूझ पहेली है, इतिहास अंधियारा, भविष्य भी अंधकारमय

आइए जानें कब-कब पाकिस्तान में लोकतंत्र अस्थिर हुआ और सेना को सत्ता पर कब्जा जमाने का मौका मिला।

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 28 Jul 2017 02:29 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jul 2017 06:17 PM (IST)
पाकिस्तान में लोकतंत्र एक अबूझ पहेली है, इतिहास अंधियारा, भविष्य भी अंधकारमय
पाकिस्तान में लोकतंत्र एक अबूझ पहेली है, इतिहास अंधियारा, भविष्य भी अंधकारमय

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। भारत और पाकिस्तान दोनों देश एक साथ आजाद हुए थे। दोनों देशों को आजाद हुए 70 साल का वक्त गुजर गया है। लेकिन एक तरफ भारत में लोकतंत्र की जड़ें लगातार मजबूत होती चली गईं और दूसरी तरफ पाकिस्तान में बार-बार लोकतंत्र का गला घोंटा गया। असल में पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र एक अबूझ पहेली ही रहा है। यहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारें कम और सैन्य तानाशाह ज्यादा रहे हैं। पाकिस्तान अपनी तरह का इकलौता ऐसा देश है, जहां जनता भी सेना से लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को बर्खास्त करने की मांग करती दिखती है। एक बार फिर पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पूर्व में किए गए अपने घोटालों के कारण कुर्सी गंवानी पड़ी है, लेकिन ऐसा पाकिस्तान में बार-बार होता रहा है। 

loksabha election banner


पहले पाकिस्तान का कुछ संक्षिप्त इतिहास

14 अगस्त 1947 को दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान के रूप में एक नए राष्ट्र का उदय हुआ। यह राष्ट्र पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में दो हिस्सों में बंटा था और इसी दौरान सांप्रदायिक दंगों में पश्चिमी पाकिस्तान में 5 लाख लोगों की हत्या हुई। साल 1951 में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई। उनके बाद प्रधानमंत्री बने ख्वाजा नजीमुद्दीन को गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद ने पद से हटा दिया था। 1956 में पाकिस्तान को इस्लामिक राष्ट्र घोषित किया गया। इसके बाद तो पाकिस्तान में बार-बार सेना ने सत्ता हासिल की और लोकतंत्र का गला घोंटा। नवाज शरीफ के दोषी ठहराए जाने के बाद पाकिस्तान का भविष्य एक बार फिर अंधकारमय नजर आ रहा है। डर इस बात का भी है कि कहीं सेना इसका फायदा उठाकर सत्ता अपने हाथ में न ले ले। आइए जानें कब-कब पाकिस्तान में लोकतंत्र अस्थिर हुआ और सेना को सत्ता पर कब्जा जमाने का मौका मिला।

यह भी पढ़ें: पनामागेट में दोषी ठहराए जाने के बाद पाक पीएम नवाज शरीफ ने दिया इस्तीफा

अयूब खान ने सत्ता कब्जायी

साल 1958 में पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख अयूब खान ने लोकतंत्र का गला घोंटते हुए सत्ता अपने कब्जे में ले ली थी और देश में मार्शल लॉ लगा दिया। इसके बाद 1960 में वे देश के राष्ट्रपति बन गए। 

याह्या खान ने भी लोकतंत्र का गला घोंटा

अयूब खान के इस्तीफे के बाद साल 1969 में जनरल याह्या खान सत्ता पर काबिज हुए। जनरल याह्या खान के नेतृत्व में ही पाकिस्तान को 1971 में भारत के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा और बांग्लादेश के रूप में एक नया राष्ट्र बना।

जिया उल हक ने भुट्टो सरकार को बर्खास्त किया

साल 1977 में जनरल जिया उल हक ने लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो की सरकार के खिलाफ बगावत की और उन्हें पद से हटा दिया। देश में एक बार फिर से मिलिट्री शासन लग गया। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री भुट्टो को 1979 में फांसी पर लटका दिया गया।

बेनजीर ने संभाली पिता की विरासत

साल 1986 में जुल्फीकार अली भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो ने निर्वासन से लौटकर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का नेतृत्व किया। 

जिया उल हक की रहस्यमयी मौत

जनरल जिया उल हक की अगस्त 1988 में एक हवाई दुर्घटना में रहस्यमय ढंग से मौत हो गई। इसके बाद गुलाम इशाक खान देश के राष्ट्रपति बने और बेनजीर ने आम चुनाव में जीत दर्ज की।

नवाज शरीफ का उदय

साल 1990 में बेनजीर को भ्रष्टाचार और अक्षमता के आरोपों में बर्खास्त कर दिया गया और नवाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री बन गए।

नवाज शरीफ को देना पड़ा इस्तीफा

साल 1993 में राष्ट्रपति इशाक खान और नवाज शरीफ दोनों को ही सेना के दबाव में इस्तीफा देना पड़ा। आम चुनाव हुए तो बेनजीर एक बार फिर सत्ता में लौटीं। अब फारूख अहमद खान लेघारी राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहुंचे, जिन्होंने 1996 में बेनजीर की सरकार को बर्खास्त कर दिया।


शरीफ एक बार फिर बने प्रधानमंत्री

साल 1997 में नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग पार्टी ने चुनाव जीता और नवाज शरीफ एक बार फिर देश के राष्ट्रपति बने। साल 1999 में बेनजीर और उनके पति आसिफ अली जरदारी को जेल की सजा सुनाई गई, हालांकि वे देश से बाहर ही रहे।

परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को बर्खास्त किया

साल 1999 में कारगिल युद्ध में शिकस्त झेलने के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल करके पाकिस्तान की कमान अपने हाथ में ले ली। इसी के साथ नवाज शरीफ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

राष्ट्रपति बने परवेज मुशर्रफ

जनरल परवेज मुशर्रफ ने खुद को देश का राष्ट्रपति घोषित कर दिया, इसके बाद 2002 में जनरल परवेज मुशर्रफ हुए जनमत संग्रह में उन्हें 5 साल के लिए राष्ट्रपति चुना गया और वह सेना अध्यक्ष के पद पर भी बने रहे। 

बेनजीर पाकिस्तान लौटीं और उनकी हत्या

साल 2007 में बेनजीर भुट्टो निर्वासन से लौटीं। परवेज मुशर्रफ एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव जीत गए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके निर्वाचन को चुनौती दी। इससे तिलमिलाए मुशर्रफ ने देश में आपातकाल लागू कर दिया और मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी को बर्खास्त करके नए जज को नियुक्त किया। नए जज ने मुशर्रफ की जीत पर मुहर लगाई और इस बीच शरीफ भी निर्वासन से लौट आए, लेकिन बेनजीर की एक रैली के दौरान हत्या कर दी गई।

युसुफ रजा गिलानी बने प्रधानमंत्री

साल 2008 में पीपीपी और नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग के गठबंधन ने चुनाव जीता और इस गठबंधन की तरफ से पीपीपी के युसुफ रजा गिलानी देश के प्रधानमंत्री बने। गठबंधन सरकार में साल 1999 में देश में मार्शल लॉ लगाने की जांच शुरू करने पर सहमति बनी तो परवेज मुशर्रफ ने राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया। नवाज शरीफ ने सरकार से सरकार से अलग होने का फैसला और जरदारी देश के राष्ट्रपति बने।


सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी को अयोग्य ठहराया

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी को अयोग्य ठहरा दिया, जिसके बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। दरअसल उनकी सरकार ने जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दोबारा खोले जाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद रजा परवेज अशरफ देश के प्रधानमंत्री बने।


प्रधानमंत्री अशरफ की गिरफ्तारी के आदेश

साल 2013 में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामलों में प्रधानमंत्री रजा परवेज अशरफ की गिरफ्तारी के आदेश दिए। गिरफ्तारी के यह आदेश उनके उस समय के भ्रष्टाचार से जुड़े थे, जो उन्होंने साल 2010 में देश के जल एवं बिजली मंत्री रहते हुए किए थे। हालांकि अशरफ ने आरोपों को खारिज किया है। धार्मिक नेता ताहिर उल कादरी ने देशभर में अशरफ के इस्तीफे के खिलाफ जोरदार आंदोलन किया और इस्लामाबाद की ओर मार्च किया।

यह भी पढ़ें: एक बेटी की गलती बाप पर पड़ी भारी, पनामागेट में नवाज शरीफ दोषी करार


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.