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...तो प्रचंड गर्मी से नहीं जबरदस्त ठंड से होगा धरती से जीवन का अंत, लौटेगा हिमयुग

ग्लोबल वॉर्मिंग से धरती को होने वाला संभावित खतरे को लेकर तमाम बातें कही जाती रही हैं। लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर चिंता को यह लेखक अतिश्योक्ति मानते हैं...

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 11 Jan 2018 08:33 AM (IST)Updated: Thu, 11 Jan 2018 05:58 PM (IST)
...तो प्रचंड गर्मी से नहीं जबरदस्त ठंड से होगा धरती से जीवन का अंत, लौटेगा हिमयुग
...तो प्रचंड गर्मी से नहीं जबरदस्त ठंड से होगा धरती से जीवन का अंत, लौटेगा हिमयुग

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। दिल्ली में चल रहे अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले की थीम इस बार पर्यावरण को रखा गया है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए विभिन्न पब्लिकेशन ने अपनी-अपनी किताबें यहां डिस्प्ले की हैं। आपने अक्सर सुना होगा, टीवी पर देखा होगा और अखबारों में पढ़ा भी होगा कि ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रही है। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हमारे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है और इंसानी जीवन पर खतरा मंडरा रहा है। खासतौर पर समुद्र किनारे के दुनियाभर के शहरों के डूबने की आशंका वाली खबरें आपने भी पढ़ी और सुनी होंगी। लेकिन अगर कोई आपसे कहे कि ऐसी सभी बातें सही नहीं हैं तो... इस बारे में आगे बात करेंगे। पहले जानते हैं पुस्तक मेले के थीम मंडप में क्या है?

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ऐसा है थीम मंडप

थीम मंडप इस बार के अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले की थीम को बखूबी बयां करता है। थीम मंडप के गेट पर पहुंचते ही आपको हर तरफ पर्यावरण थीम से जुड़ी चीजें दिखेंगी। फिर चाहे वह बांस के डंडों से बनाया गया खूबसूरत गेट हो या बेंत की महीन कारीगरी से बुने गए सोफा, कुर्सी और मेज हों। मंडप के अलग-अलग स्टॉल की छत भी फूस से बनाई गई है। यही नहीं, जिन खंबों पर यह छत टिकी है उनको भी मिटी से लीपा गया है, जो दिल्ली में पर्यावरण के प्रति लगाव के गंवई अंदाज को बयां करती हैं।

मंडप के बीच में एक बड़ा सा ग्लोब भी लगाया गया है जो हमारी पृथ्वी की तरह लगातार घूम रहा है। यह हमें हमारी पृथ्वी के प्रति जागरुक करने का संदेश देता है। इनके अलावा सोलर पैनल और विंड मिल को देखकर भी समझा जा सकता है कि यहां पर्यावरण संरक्षण का संदेश हर तरफ है। पर्यावरण के लिए चिंता के बीच यहां मिट्टी से सुर भी आपको मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी हैं। सुरीले गायक अपनी धुनों पर सवार करके आपको पर्यावरण के प्रति सजग कर जाते हैं। अगर आप अभी तक विश्व पुस्तक मेला देखने नहीं गए तो जरूर जाएं और थीम मंडप में जाना कतई न भूलें...

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क्या ग्लोबल वॉर्मिंग चिंता का विषय है?

इस प्रश्न का उत्तर हां है। लेकिन शायद उतना भी डरने की जरूरत नहीं है, जितना हमें बार-बार डराया जाता है। यह सच है कि धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। पर्यावरण असंतुलन के कारण मौसम में लगातार बदलाव आ रहा है। कभी प्रचंड गर्मी पड़ रही है तो कभी भीषण बाढ़ लोगों की जान ले रही है। कभी तूफान जानलेवा साबित हो रहे हैं तो कभी सूखे के चलते लोगों को जान गंवानी पड़ रही है। इन सब आपदाओं का कारण निश्चित तौर हम इंसान ही हैं। इसलिए ग्लोबल वॉर्मिंग आज चिंता का विषय हैं।

ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर डर कितना सही?

विश्व पुस्तक मेले में साहित्य और पर्यावरण विषय पर लेखक अपनी राय भी रख रहे हैं। उपन्यास 'रेखना मेरी जान' के उपन्यासकार रत्नेश्वर से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, शायद इस बारे में कुछ ज्यादा ही डरा दिया गया है। बता दें कि 'रेखना मेरी जान' ग्लोबल वॉर्मिंग के दौर की एक लव स्टोरी है। रत्नेश्वर ने बताया कि कुछ साल पहले तक ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर कुछ ज्यादा ही डर फैलाया जा रहा था। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने तो कुछ ही सालों में हिमालय के पूरी तरह पिघल जाने की भी बात कही थी, हालांकि बाद में उन्होंने माना कि उनसे गलती हुई और अगले करीब 150 साल तक हिमालय को कुछ नहीं होने वाला।

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प्रकृति संतुलन बनाती है

मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि प्रकृति अपना संतुलन बना लेती है। पर्यावरण को लेकर हमें पिछले कुछ सालों में कुछ ज्यादा ही डराया गया है। ऐसा भी तो हो सकता है कि प्रकृति अपना संतुलन बना रही हो। इस पर रत्नेश्वर ने कहा, बिल्कुल ऐसा हो सकता है। प्रकृति हमेशा अपना संतुलन बनाकर चलती है और हर कुछ सालों बाद उसमें अंतर देखने को मिलता है। जैसे एक ही खेत में जब आप लगातार खेती करते रहते हैं, भले ही दो-तीन फसलों को बदल-बदल कर लगा रहे हों। 70-80 साल में उस खेल की फसल का पैटर्न भी पूरी तरह से बदल जाता है। वह बताते हैं कि पिछले लाखों सालों में कई बार धरती पर सूखा पड़ा है और कई बार हिम युग आया या वैसे ही हालात पैदा हुए हैं। अपनी बात को और स्पष्ट करने के लिए उन्होंने बांस पर फूल आने की घटना के बारे में बताया। आम तौर पर बांस पर फूल कम ही लोग देख पाते हैं, लेकिन बांस पर फूल आते हैं और 105 से 120 साल में एक बार ही ऐसा होता है।

वैज्ञानिकों में भी है मतभेद

ग्लोबल वॉर्मिंग और पर्यावरण असंतुलन को लेकर वैज्ञानिक भी एक राय नहीं हैं। कई बार कहा जाता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग बड़ा खतरा है तो कई बार रिसर्च सामने आती है कि धरती हिमयुग की तरफ बढ़ रही है। इस पर रत्नेश्वर बताते हैं कि रूसी वैज्ञानिकों की अलग थ्योरी है। वे बताते हैं कि रूसी वैज्ञानिकों के अनुसार धरती का तापमान बढ़ने से वाष्पीकरण बढ़ेगा, आसामान में बादल छा जाएंगे सूर्य की तेज किरणें धरती तक नहीं पहुंचेंगी, धरती पर अंधियारा छा जाएगा, मूसलाधार बारिश होगी और तापमान गिरने लगेगा। इस तरह से धीरे-धीरे धरती एक बार फिर हिम युग की तरफ बढ़ने लगेगी।

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रूसी वैज्ञानिकों की यह थ्योरी दुनियाभर के अन्य वैज्ञानिकों और जानकारों से अलग है। जबकि अमेरिकी वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती का तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे, समुद्रों का जलस्तर बढ़ेगा और इंसानी जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। धरती पर ज्यादा तापमान के कारण लू से लोगों की मौत हो जाएगी। दुनियाभर और भारतीय वैज्ञानिक भी अमेरिकी थ्योरी को ज्यादा तवज्जो देते हैं।

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