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जानिए,क्या है सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के जस्टिस के हटाने की प्रक्रिया

जजों के विवाद मामले में अब सीपीएम भी कूद पड़ी है। सीताराम येचुरी का कहना है कि वो सीजेआइ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहे हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 24 Jan 2018 04:13 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jan 2018 05:28 PM (IST)
जानिए,क्या है सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के जस्टिस के हटाने की प्रक्रिया
जानिए,क्या है सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के जस्टिस के हटाने की प्रक्रिया

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । 12 जनवरी 2018 को भारत के न्यायिक इतिहास में जो कुछ हुआ वो अप्रत्याशित था। सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीश जे चेलमेश्वर, मदन बी लोकुर, कुरियन जोसफ रंजन गोगोई ने प्रेंस कॉन्फ्रेंस की और अदालत की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया। इन चारों जस्टिस ने कहा कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो इतिहास शायद माफ नहीं करेगा। भारतीय संसदीय व्यवस्था में न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के दायित्व सुनिश्चित किए गए हैं। भारतीय राजनीति में आम तौर पर न्यायपालिका के काम में कार्यपालिका द्वारा न्यूनतम हस्तक्षेप देखने को मिलते हैं। ये बात अलग है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस वी रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि उनकी पार्टी दूसरे विपक्षी दलों से विचार कर मौजूदा चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के बारे में सोच रही है। आइए आपको बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट या हाइकोर्ट के जस्टिस को उनके पद से हटाने का क्या तरीका है।

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ऐसे आता है महाभियोग प्रस्ताव

किसी भी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में से किसी भी एक सदन में लाया जा सकता है। लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव आने के लिए कम से कम 100 सदस्यों का प्रस्ताव के पक्ष में दस्तखत रूपी समर्थन जरूरी है, वहीं राज्यसभा में इस प्रस्ताव के लिए सदन के 50 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है। जब किसी भी सदन में यह प्रस्ताव आता है, तो उस प्रस्ताव पर सदन का सभापति या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार या खारिज कर सकता है।

अब हम आपको बताते हैं कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी जस्टिस को हटाने की संविधान में क्या प्रक्रिया है। जस्टिस को केवल महाभियोग के जरिए ही पद से हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 124 (4)-217(1) में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाई कोर्ट के जज को हटाए जाने का प्रावधान है। किसी जज को हटाने के लिए जरूरी महाभियोग की शुरुआत लोकसभा के 100 सदस्यों या राज्यसभा के 50 सदस्यों की सहमति वाले प्रस्ताव से की जा सकती है। ये सदस्य संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी को जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की अपनी मांग का नोटिस दे सकते हैं। प्रस्ताव पारित होने के बाद संबंधित सदन के अध्यक्ष तीन जजों की एक समिति का गठन करते हैं।

समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक मौजूदा जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक कानून विशेषज्ञ को शामिल किया जाता है। ये समिति संबंधित जज पर लगे आरोपों की जांच करती है। जांच पूरी करने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को सौंपती है। इसके बाद भी आरोपी जज, जिनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है, को भी अपने बचाव का मौका दिया जाता है। अध्यक्ष को सौंपी गई जांच रिपोर्ट में अगर आरोपी जज पर लगाए गए आरोप सिद्ध हो रहे हैं तो बहस के प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए सदन में वोट कराया जाता है। इसके बाद भी किसी जज को तभी हटाया जा सकता है जब संसद के दोनों सदनों में 2/3 मतों से यह प्रस्ताव पारित हो जाए।

न्यायाधीशों की नियुक्ति 

भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। इस अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से, जिनसे परामर्श करना वह आवश्यक समझे, परामर्श करने के पश्चात् उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा।इसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश से जरुर परामर्श किया जाएगा। संविधान में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के सम्बन्ध में अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है। लेकिन उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किये जाने की परम्परा रही है। हालाँकि संविधान इस पर खामोश है। पर इसके दो अपवाद भी हैं, तीन बार वरिष्ठता की परम्परा का पालन नहीं किया गया। एक बार स्वास्थ्य कारण व दो बार कुछ राजनीतिक घटनाक्रम के कारण ऐसा किया गया। 6 अक्टूबर 1993 को उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए एक निर्णय के अनुसार मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता के सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए।


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