जम्मू कश्मीर: अनुच्छेद 35 ए की वैधता पर उठे सवाल! जानिए क्या है फसाद की जड़
यदि जम्मू-कश्मीर की कोई महिला किसी अन्य राज्य के पुरुष से शादी करती है, तो ऐसी स्थिति में उसका संपत्ति का मौलिक अधिकार स्वत: खत्म हो जाता है।
नई दिल्ली [ रमेश मिश्र ]। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35 ए की प्रासंगिकता को लेकर बहस जारी है। कई सालों से इस अनुच्छेद की वैधता पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसे में कई सवाल हैं जो देश के लोगों के बीच से उठते रहे हैं। मसलन- अनुच्छेद 35 ए को हटाने की मांग क्यों हो रही है। अनुच्छेद 35 ए का इतिहास क्या है। इसे कब और क्यों लागू किया गया और इसे लागू करने के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या बदलाव आया। आपको बतातें है कि इन सब सवालों की पड़ताल करते हुए हमारी रिपोर्ट क्या कहती है। यहां इस बात की भी पड़ताल करेंगे कि इस बहस में असल मुद्दे कैसे पीछे छूट गए।
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 35 ए के तहत जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर विधानसभा को यह हक है कि वह राज्य के स्थायी निवासी की परिभाषा तय कर सके और बाहरी राज्यों के लोगों को चल-अचल संपति खरीदने से रोक सके। वर्ष 1954 में तत्तकालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने धारा 370 के साथ 35 ए को संविधान में जोड़ा था। यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। इस अनुच्छेद को राज्य में एक अपवाद के तौर पर घोषित किया गया है।
1- कश्मीरी महिला के हक में भेदभाव
यदि जम्मू-कश्मीर की कोई महिला किसी अन्य राज्य के पुरुष से शादी करती है, तो ऐसी स्थिति में उसका संपत्ति का मौलिक अधिकार स्वत: खत्म हो जाता है। 2002 में राज्य की हाईकोर्ट ने महिला के अधिकारों को सुरक्षित रखा। अदालत ने अपने फैसले में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया। उस वक्त पहली बार इस फैसले के खिलाफ जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। ऐसे में यह सवाल बड़ा हो जाता है कि जब देश दुनिया में जेंडर समानता की बात चल रही है तो राज्य में महिला को उसके हक से क्यों वंचित किया जाता है।
2- नहीं मिला वाल्मीकियों को इंसाफ
साल 1957 में वाल्मीकियों को पंजाब से लाया गया। तब उनको स्वाइल लिफ्टर के नाम से जाना जाता था। अपने हक को लेकर वह हड़ताल पर भी जा चुके हैं। तब राज्य सरकार ने उनको शर्तों के साथ स्थायी रिहायश दिया। इस बाबत उनको थोड़ी जमीन दी गई। लेकिन यह शर्त रखी गई आपकी आने वाली पीढ़ी केवल सफाई का ही काम करेगी। राज्य में वाल्मीकियों की पीढ़ी कोई दूसरा काम नहीं कर सकती हैं। इसके अलावा कोई चल- अचल संपत्ति भी नहीं खरीद सकती। इसे लेकर भी वाल्मीकी समाज में असंतोष रहा है।
3- दो लाख रिफ्यूजी हक से वंचित
तीसरा असल मुद्दा न्याय से जुड़ा है। 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से करीब दो लाख पंजाबी रिफ्यूजी जम्मू- कश्मीर आए। उनके पास भारत की तो नागरिकता है, लेकिन वे आज तक जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिक नहीं बन सके हैं। आज भी उनकी स्थिति दयनीय बनी हुई है। वे लोकसभा चुनाव में तो मतदान कर सकते हैं, लेकिन राज्य के विधानसभा या स्थानीय निकाय के चुनाव में न तो खड़े हो सकते हैं न ही उन्हें मतदान का हक है।
केवल यहां के स्थायी नागरिकों को ही विधानसभा चुनाव लड़ने या मतदान करने की हक है। बाहरी व्यक्ति ना तो इस राज्य में संपत्ति खरीद सकते हैं, न बस सकते हैं और न उन्हें राज्य में सरकारी नौकरी मिल सकती है। हालांकि, जिन लोगों के पास जम्मू-कश्मीर का नॉन-पर्मानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट है वह भी लोकसभा चुनाव में मतदान कर सकते हैं, लेकिन विधानसभा या स्थानीय निकाय के चुनाव में मतदान का अधिकार उन्हें भी प्राप्त नहीं है।