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EXCLUSIVE: जब इंदिरा ने कहा था कि 1971 में पाक के साथ युद्ध समय की मांग थी

1971 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई के बारे में इंदिरा गांधी ने कहा था कि भारत चुपचाप बैठकर तमाशा नहीं देख सकता था।

By Lalit RaiEdited By: Published: Sun, 19 Nov 2017 12:19 PM (IST)Updated: Sun, 19 Nov 2017 10:08 PM (IST)
EXCLUSIVE: जब इंदिरा ने कहा था कि 1971 में पाक के साथ युद्ध समय की मांग थी
EXCLUSIVE: जब इंदिरा ने कहा था कि 1971 में पाक के साथ युद्ध समय की मांग थी

नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी का नाम आते ही जेहन में उनकी आयरन लेडी की छवि उतरने लगती है। दरअसल उन्हें आयरन लेडी यूं ही नहीं कहा जाता है। 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग और इंदिरा गांधी के साहसिक फैसले को दुनिया यूं ही नहीं याद रखती है। 1971 की लड़ाई के बाद दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश का उदय हुआ। ये बात अलग है कि कुछ लोग कहते हैं कि इंदिरा गांधी को किसी देश के आंतरिक मामलों में दखल देने से बचना चाहिए था। लेकिन एक सच ये भी है कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान के शासक अपना हिस्सा नहीं मानते थे, बल्कि उपनिवेश के तौर पर देखते थे। पाकिस्तान की सेना अपने ही नागरिकों पर जुल्म ढा रही थी। पूर्वी पाकिस्तान में महिलाएं अपनी ही सेना की हैवानियत का शिकार बन रही थीं।  इन सब हालात में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों और नेताओं ने भारत से मदद मांगी। इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने मदद देने का फैसला किया। इंदिरा गांधी के इस फैसले पर कई सवाल उठे। लेकिन उन्होंने तथ्यों का हवाला देकर बताया कि भारत सरकार का फैसला तर्कसंगत था। 

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1971 की लड़ाई के तुरंत बाद पश्चिमी मीडिया ने इंदिरा गांधी से तीखे सवाल पूछे। इंदिरा गांधी ने सभी सवालों का जबाव देते हुये एक बात कही कि उस समय चुप्पी का मतलब ही नहीं था। पूर्वी पाकिस्तान में सेना अत्याचार कर रही थी, पाकिस्तान की अपनी ही सेना अपने नागरिकों को निशाना बना रही थी। सेना के जवान पूर्वी पाकिस्तान की महिलाओं के साथ उनके बड़े बुजुर्गों के सामने ही दुष्कर्म कर रहे थे। अपने फैसले का बचाव करते हुए उन्होंने सवाल करने वाले से पूछा कि जब जर्मनी में हिटलर खुलेआम यहुदियों की हत्या कर रहा था तो उस वक्त पश्चिमी देश शांत तो नहीं बैठे। यूरोप के दूसरे देश हिटलर के खिलाफ उठ खड़े हुए। कुछ उसी तरह के हालात पूर्वी पाकिस्तान में बन चुके थे और उनके सामने दखल देने के अलावा और कोई चारा नहीं था। वो पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार होते हुए नहीं देख सकती थीं।


पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जब सवाल करने वाले पूछा कि भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में क्यों दाखिल हुई। उस सवाल के जवाब में कहा कि पाकिस्तान ने तीन बार भारत पर हमला किया था। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सैन्य हुकुमत इस तरह के हालात बना रही थी कि भारत के सामने कोई विकल्प नहीं था। जहां तक भारत के सैनिकों का दाखिल होने का सवाल है तो पूर्वी पाकिस्तान के नेताओं ने भारत सरकार से अपील की थी कि भारत उनकी मदद करे। भारत सरकार के किसी भी आधिकारिक बयान में आप ये नहीं पाएंगे कि हम किसी देश के आंतरिक मामले में दखल देना चाहते थे।

1971 में पाकिस्तान की करारी हार के बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता शिखर पर थी। करीब तीन साल बाद 1974 में भारत मे पोखरण परमाणु परीक्षण के जरिए ये साबित कर दिया कि भारत महज कृषि प्रधान देश नहीं है, बल्कि वो अपने दम पर विकसित देशों का मुकाबला कर सकता है। लेकिन एक सच ये भी था कि इंदिरा गांधी की लोकप्रियता में गिरावट भी आ रही थी। 1974 के बाद विरोधी दल के नेता उन पर जबरदस्त हमला कर रहे थे। इंदिरा गांधी को लगने लगा था कि उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। अपने सलाहकारों पर भरोसा कर उन्होंने 1975 में देश में आपातकाल की घोषणा की। हालांकि ये प्रयोग कामयाब नहीं रहा। आम चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी थी। जनता पार्टी की सरकार ने आपातकाल में इंदिरा की भूमिका के लिए शाह आयोग का ऐलान किया। शाह आयोग ने माना कि आपातकाल एक सनकभरा फैसला था। लेकिन 1978 में थेम्स टीवी को दिए साक्षात्कार में इंदिरा गांधी ने कहा कि उन्होंने जो भी फैसले लिए वो राजनीति से प्रेरित नहीं थे, बल्कि हालात ही ऐसे बन गए थे कि अप्रिय और कठिन फैसले लेने पड़े। 

इंदिरा का आखिरी भाषण
30 अक्‍टूबर को दिए उनके आखिरी भाषण में भी इस बात को साफतौर पर देखा जा सकता है। इसमें उन्‍होंने कहा था कि "मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूँगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।"

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