डोकलाम विवाद सुलझा लेकिन चीन की अकड़ कायम, भारत कुछ यूं देगा जवाब
डोकलाम विवाद के बाद अब भारत सरकार ने चीन से लगी एलएसी पर आधारभूत सुविधाओं के निर्माण में तेजी लाने का फैसला किया है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। डोकलाम, एक ऐसा नाम जो अब हर किसी की जुबां पर है। डोकलाम का विवाद फिलहाल सुलझ चुका है। लेकिन ये मुद्दा रह-रह कर सुर्खियों में आ जाता है। करीब 73 दिनों तक चलने वाले इस विवाद का पटाक्षेप अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह में हो गया था। चीन सरकार की सरपरस्ती में छपने वाले अखबार जो भारत के खिलाफ खुलेआम जहर उगलते थे उनके सुर बदल गए और सितंबर के पहले हफ्ते में चीन में आयोजित होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन का रास्ता साफ हो गया। इसके साथ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी ये संदेश गया कि भारत किसी देश के दबाव में नहीं झुकेगा। लेकिन चीन की तरफ से कुछ इस तरह के मामले सामने आते हैं, जिससे भारत की चिंता स्वभाविक तौर पर बढ़ जाती है।
थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने सलामी स्लाइसिंग (इसके जरिए विरोधी देश छोटे छोटे सैन्य समूहों का गठन करते हैं जो परोक्ष रूप से किसी देश को अस्थिर करने की कोशिश करते हैं) का नाम दिया था। हालांकि चीन की तरफ से सेना प्रमुख बिपिन रावत के बयान पर आपत्ति दर्ज की गई। लेकिन भारत सरकार ने साफ कर दिया कि भारत की अपनी सीमाओं की हिफाजत करना सार्वभौमिक अधिकार है। पिछले शनिवार को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण मे सिक्किम-भूटान-तिब्बत ट्राइ जंक्शन का दौरा किया था। उन्होंने सिक्किम में कहा कि सेना की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार गंभीरता से काम कर रही है।
भारत को और करनी होगी तैयारी
भारत और चीन करीब 4643 किमी लंबी सीमा साझा करते हैं। लेकिन सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण 73 प्रस्तावित सड़कों में से पिछले 15 सालों में महज 27 सड़कें बनाई गई हैं, जिनकी लंबाई 963 किमी है। इसके अतिरिक्त सामरिक तौर पर महत्वपूर्ण 14 रेल लाइनों पर निर्माण कार्य आज तक शुरू नहीं हो पाया है, वहीं चीन ने अपनी मारक क्षमता को बढ़ाने के लिए 2.3 मिलियन क्षमता वाली पीएलए को पांच थिएटर कमांड के रूप में पुनर्संगठित की है। चीन की वेस्टर्न थिएयर कमांड को अब भारत-चीन एलएसी की देख-रेख की जिम्मेदारी दी गई है। इससे पहले पूर्वी क्षेत्र में चेंग्दू और उत्तरी क्षेत्र में लांझू मिलिट्री रीजन की देख-रेख की जिम्मेदारी थी। जानकारों का कहना है कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी मौजूदा समय में भारत-चीन वास्तविक सीमा नियंत्रण (एलएसी) की मध्य सीमा में तेजी से सेना की तैनाती कर सकती है। पीएलए की तरफ से पांच किमी के दायरे में सात से आठ दर्रों को एलएसी से लगे चार दर्रों को जोड़ रखा है।
तिब्बत में चीनी सेना का जमावड़ा
तिब्बत ऑटोनोमस रिजन (TAR) में पहले से ही चीन सभी मौसमों में काम करने वाली रोड, रेल और दूसरे आधारभूत सुविधाओं का निर्माण कर चुका है। दरअसल टीएआर में चीन ने 30 डिविजन की तैनाती की है। आप को बता दें कि प्रत्येक डिविजन में 15 हजार सैनिक होते हैं। इसके अलावा 6 रैपिड एक्शन फोर्स भी तैनात हैं।भारत और चीन के बीच करीब 4643 किमी लंबी सीमा को लेकर विवाद है। एलएसी के मध्यवर्ती सेक्टर में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश आते हैं जो करीब 545 किमी लंबी सीमा साझा करते हैं, हालांकि इन इलाकों में लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की तरह तीखी झड़प नहीं होती है। करीब 17 वर्ष पहले इन इलाकों से संबंधित नक्शों की अदला-बदली भी हुई थी। लेकिन पश्चिमी लद्दाख और पूर्वी अरुणाचल प्रदेश में अलग-अलग इलाकों में चीनी सैनिकों के साथ झड़प आम बात है।
भारत चीन को यूं देगा जवाब
चीन की किसी भी चाल का सामना करने के लिए एक बेहतर कमांड और कंट्रोल सिस्टम का प्रस्ताव है, जिसके जरिए काराकोरम से लेकर लिपुलेख तक सेना की बटालियन और दूसरी यूनिट में बेहतर सामंजस्य हो। इसके लिए तीन डिविजन की अलग कॉर्प का गठन किया जाएगा, जिसमें 45 हजार सैनिक होंगे। सेना की तरफ से सरकार से मांग की गई है कि सभी महत्वपूर्ण दर्रों को बारहमासी सड़कों से जोड़ने के साथ-साथ संपर्क मार्गों को भी दुरुस्त किया जाए। सेना की मांग है कि उत्तराखंड में 2020 तक नीति, लिपु थांग्ला-1 और सांग-चोकला को बारहमासी सड़कों से जोड़ा जाए, ताकि सेना का आवागमन आसानी से हो सके।
जानकार की राय
Jagran.Com से खास बातचीत में रक्षा मामलों के जानकार राज कादयान ने बताया कि ये बात सच है कि जितनी तेजी से चीन से लगी सीमा पर निर्माण कार्य होना चाहिए था वो नहीं हुआ। लेकिन डोकलाम विवाद के बाद सरकार ने सकारात्मक फैसले लिए हैं। भारतीय फौज अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता के साथ समझती है। फौज ने माउंटेन डिवीजन की तैनाती का जो फैसला किया है, उससे चीन परेशान है। चीन की हताशा को आप इस तरह से देख सकते हैं कि पीएलए को पुनर्गठित किया गया है।