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EXCLUSIVE: भारत की कूटनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक से डोकलाम पर झुका चीन

हाल के वर्षों में दुनिया के मानचित्र पर भारत एक शक्तिशाली देश के तौर पर उभरा है। डोकलाम मुद्दे पर चीन पर कूटनीतिक विजय भारत के लिए बड़ी सफलता है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Thu, 31 Aug 2017 12:34 PM (IST)Updated: Thu, 31 Aug 2017 08:04 PM (IST)
EXCLUSIVE: भारत की कूटनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक से डोकलाम पर झुका चीन
EXCLUSIVE: भारत की कूटनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक से डोकलाम पर झुका चीन

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । दक्षिण एशिया में भारत की ताकत की दुनिया का कोई भी देश अनदेखी नहीं कर सकता है। लगातार चुनौतियों का सामना करते हुए भारत विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाने में जुटा हुआ है। लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये है कि भारत के दो पड़ोसी पाकिस्तान और चीन, भारत की विकास की रफ्तार को रोकने की कोशिश करते रहते हैं। पाकिस्तान ने चार बार सीधे तौर पर और पिछले 27 सालों से लगातार भारत के खिलाफ छद्म लड़ाई लड़ रहा है।

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वहीं चीन ने पंचशील सिद्धांत की अनदेखी कर 1962 में भारत की पीठ में छूरा घोंप दिया। पिछले साल 2016 में सितंबर के महीने में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुसकर भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए ये बता दिया कि वो अपने दुश्मनों को किसी भी हालात में ढेर करने का माद्दा रखता है। उस सर्जिकल स्ट्राइक के करीब 11 महीने बाद 28 अगस्त को भारत को एक और कामयाबी हासिल हुई जब देश ने डिप्लोमेटिक सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए डोकलाम मुद्दे पर चीन को ये समझा दिया कि अब वो 1962 की तथाकथित मीठी यादों से निकलकर हकीकत में जीने की कोशिश करे।

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भारत ने दुनिया को खासतौर से चीन को इस बात के लिए मजबूर कर दिया कि सवाल और जवाब एकतरफा नहीं होंगे। अब वो बराबरी के स्तर पर रिश्तों को परिभाषित करेगा। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के नैतिक सिद्धांत के साथ आगे बढ़ेगा। लेकिन अगर कोई देश आंख दिखाएगा तो उसे उसी की भाषा में, उसके अंदाज में जवाब देने से पीछे भी नहीं हटेगा। 3-5 सितंबर को चीन में ब्रिक्स सम्मेलन से पहले भारत की कूटनीतिक जीत को पीएम मोदी की विदेश नीति की जबरदस्त कामयाबी मानी जा रही है।

जानकार की राय

Jagran.Com से खास बातचीत में रक्षा मामलों के जानकार राज कादयान ने कहा कि डोकलाम के मुद्दे पर भारत ने शब्दों में नरमी दिखाई, लेकिन चीन के खिलाफ रणनीति और कूटनीति में सख्ती दिखाई। भारत के इस कदम को परिपक्व फैसला कहा जाएगा। डोकलाम इलाके में यथास्थिति को बदलने की चीन सबसे बड़ी गलती कर रहा था। भूटान के साथ भारत का शाश्वत संबंध है। भूटान की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत सरकार की है, जिसे भारत को निभाना था। छोटे-छोटे देशों को चीन पहले ही अपने काबू में कर चुका है। भूटान की मदद करना भारत के लिए जरूरी था। डोकलाम से महज 130 किमी दक्षिण में चिकेन नेक कॉरिडोर है, जिसके जरिए पूर्वोत्तर राज्य समस्त देश से जुड़ते हैं। डोकलाम में चीन की मौजूदगी से भविष्य में भारत के लिए खतरा पैदा होता। डोकलाम के अगल-बगल के इलाकों में भारतीय फौज 12 महीने तैनात रहती है। उसमें कुछ नई बात नहीं थी, सड़क के नाम पर चीन की मौजूदगी एक बड़ी बात थी।

राज कादयान ने कहा कि सामरिक तौर पर डोकलाम में भारत को बढ़त हासिल है। अगर चीन लड़ने की हिमाकत करता तो उसकी जबरदस्त पराजय होती। दरअसल चीन ये जानने की कोशिश कर रहा था कि भारत किस हद तक प्रतिक्रिया दे सकता है। पिछले ढाई महीनों में भारत ने जिस तरह संयम के साथ चीन को जवाब दिया वो काबिल-ए-तारीफ है। घरेलू मोर्चे पर चीन को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, लिहाजा वो भी एक ऐसा रास्ता चाहते थे, जिसके जरिए उनका सम्मान बचा रहे। चीनी मीडिया में इस तरह की खबरें आती रहीं कि भारतीय फौज पहले डोकलाम से हटी। लेकिन सच ये है कि चीनी सेना और भारतीय फौज के जवान एक ही साथ डोकलाम से हट गए। 

डोभाल की कूटनीतिक बातचीत

चीन के सख्त रुख के चलते डोभाल की चीन से बातचीत कूटनीतिक मोर्चे पर दोनों देशों के तनाव को कम करने में असफल रही। ऐसा माना जा रहा है कि इस बातचीत में डोभाल ने जवाब दिया कि जिस जगह को लेकर विवाद है वो चीन का क्षेत्र नहीं है बल्कि उस पर भूटान की तरफ से दावा किया जाता रहा है। एक अखबार ने एनएसए के सूत्रों के हवाले से लिखा कि डोभाल ने जवाब दिया- “क्या हर विवादास्पद क्षेत्र अपने आप चीन का हो जाता है?’’

डोभाल ने जोरदार तरीके से रखा पक्ष

अजीत डोभाल ने बीजिंग में भारत का पक्ष जोरदार तरीके से रखते हुए कहा कि क्योंकि वो क्षेत्र भूटान का हिस्सा था लिहाजा जिस तरह इस हिमालयी देश के साथ भारत की पूर्व में संधि है उसके चलते भारत ने उसकी सुरक्षा में यह कदम उठाया है।

विदेश मामलों के जानकार विवेक काटजू ने Jagran.Com को बताया कि डोकलाम पर भारत सरकार ने परिपक्वता के साथ चीन के साथ ंमामले को सुलझाया। भारत ने साफ कर दिया कि अब वो किसी दबाव में नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात ये है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में चीन अलग-थलग पड़ चुका था। चीन के सामने भी अपने सम्मान को बचाए रखने की चुनौती थी। 

डोकलाम पर चीन ने भूटान को दिया था अदला-बदली का प्रस्ताव

एनएसए ने इस बात पर भी जोर देते हुए कहा कि भूटान के साथ सीमा विवाद को सुलह करने के लिए चीन से पहले के कई दौर की बातचीत में डोकलाम पर जोर दिया था। इसके साथ ही, बीजिंग ने अपने मध्यस्थकार के जरिए भूटान को 500 स्क्वायर किलोमीटर उत्तर में डोकलाम के बदले जमीन देने का भी प्रस्ताव किया था। डोभाल ने इस बात पर जिरह की थी कि डोकलाम पर चीन का दावा अभी सुलझा नहीं है, लिहाजा दोनों पक्षों को एक साथ अपने जवानों को वापस बुलाना चाहिए, ताकि वहां पर यथास्थित बहाल रहे।

दोनों देशों के बीच 75 बिलियन डॉलर का व्यापार

आधिकारिक डेटा के मुताबिक, दोनों देशों के बीच करीब 75 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है। हालांकि इसमें ट्रेड डेफिसिट है। मतलब, हमारा आयात चीन को किए जाने वाले निर्यात से ज्यादा है। मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स के मुताबिक वर्ष 2016-17 में भारत ने कुल 61.3 बिलियन का आयात किया है। उसी वर्ष के दौरान भारत ने चीन को 10.2 बिलियन का निर्यात किया गया। ऐसे में भारत को प्रतिवर्ष करीब 51.1 बिलियन का नुकसान उठाना पडा, जो कि चीन के लिए फायदेमंद है।

अर्थशास्त्री आकाश जिंदल ने Jagran.Com से बातचीत में बताया कि चीन अगर भारत पर हमला करता तो वह अपने सम्बन्ध बिगाड़कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारता। बीते दो सालों में चीन की अर्थव्यस्था में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है। 2015 में चीन की विकास वृद्धि की दर 11 प्रतिशत थी, जो अब गिरकर 7 प्रतिशत रह गयी है। ऐसे में युद्ध की स्थिति पैदा होने पर चीन भारत के रूप में एक बड़ा बाजार खो बैठता। वर्तमान में चीन की कम्पनियों पर बैंको का कर्ज बढ़ता जा रहा है। भारत पर इसका असर चीन के मुकाबले काफी कम होता।

भारत में निवेश का चीन के पास है बेहतर मौका

सीआईआई के मुताबिक चीन के पास भारत में पावर ट्रांसमिशन, रेलवे, टेलीकॉम इंडस्ट्रियल पार्क समेत कई क्षेत्रों में निवेश करने का मौका है। पिछले दो वर्षों में भारत में चीनी कंपनियों अलीबाबा और टेलीकॉम सेक्टर की शाओमी, जिओनी, हुवावेई, वीवो और ओप्पो ने भारी निवेश किया है। पिछले महीने एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) ने गुजरात के चार हजार गांवों में सड़क बनाने के लिए 329 मिलियन डॉलर के कर्ज को मंज़ूरी दी है।


कई सेक्टर में काम कर रही हैं चीनी कंपनियां

चीनी कंपनी भारत में सड़क निर्माण के क्षेत्र काम कर रही हैं और पॉवर सेक्टर में भी बड़ी चीनी कंपनी एंट्री करना चाहती हैं। इसके अलावा भारत और चीन फार्मासियूटिकल, आईटी, पर्यटन, फिल्म में कार्य करने का बड़ा स्कोप है। बता दें कि इस वर्ष 50 से 60 हजार चीनी पर्यटक भारत आए। आकड़ों के मुताबिक, प्रति वर्ष करीब 107 मिलियन चीनी दुनियाभर में पर्यटन करते हैं।
 

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