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EXCLUSIVE: पनडुब्बी के अंदर का वो सीक्रेट मिशन, जिससे खौफ खाता है दुश्मन

भारत के पास दो न्यूक्लियर पावर सबमरीन आईएनएस अरिहंत और आईएनएस चक्र हैं, जो कि चीन को कड़ी चुनौती देती हैं।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Wed, 13 Sep 2017 02:09 PM (IST)Updated: Wed, 13 Sep 2017 04:11 PM (IST)
EXCLUSIVE: पनडुब्बी के अंदर का वो सीक्रेट मिशन, जिससे खौफ खाता है दुश्मन
EXCLUSIVE: पनडुब्बी के अंदर का वो सीक्रेट मिशन, जिससे खौफ खाता है दुश्मन

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। किसी देश की रक्षा में नौसेना की अहम भूमिका होती है। भारत के लिए पनडुब्बी (सबमरीन) की जरूरत इसलिए है, क्योंकि चीन लगातार अपनी मौजूदगी हिंद महासागर में बढ़ा रहा है। पनडुब्बी का मिशन इतना गुप्त होता है कि कई बार नौसेना के जवानों को भी नहीं पता होता है कि उन्हें किस मिशन पर भेजा जा रहा है। ऐसे में नौसेना के जवान किस तरह पानी के अंदर पनडुब्बी में अपने मिशन को अंजाम देते हैं और कितना कठिन होता है पनडुब्बी के अंदर रहना? आइए आईएनएन सिंधूध्वज के अंदर मिशन पर काम करने के बारे में विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं।

सबमरीन में काम करना दुनिया का बेहद कठिन काम

सबमरीन में कार्य करना शायद दुनिया का सबसे कठिन कार्य होता है। सबमरीन एक कम स्पेस वाली विडोंलेस जगह होती है, जो कि 300 फीट समुद्र की गहराई में काम करती है और देश को भविष्य के खतरों से सचेत करती हैं। आईएनएस सिंधुध्वज एक 13 किलो क्लास सबमरीन है, जो कि भारतीय नौसेना में तैनात है। सबमरीन के अंदर सबसे पहले खुद की सुरक्षा जरूरी होती है। दरअसल, सबमरीन में कम स्पेस वाली एक जगह होती है, जो कि उपकरणों से भरी होती है, ऐसे में अपने सिर को बचाना जरूरी होता है। आमतौर पर जब कोई सबमरीन के अंदर जाता है, तो उसको सारी चीजें पता होती हैं।

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30 साल पहले सेना में शामिल की गई सबमरीन
रूस में बनी सबमरीन आईएनएस सिंधूध्वज को देश की सेवा करते हुए 30 साल हो चुके हैं। साल 1987 में इसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। इसे टॉप सीक्रेट मिशन के तहत हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के समुद्री क्षेत्र में भेजा जाता है। सबमरीन का वजह 3076 टन होता है और लंबाई 72 मीटर होती है। इसमें छह कप्मार्टमेंट होते हैं, जिसमें भारी युद्ध के समान मिसाइल लांचर, होमिंग टारपीडो, माइंस होती हैं। इसमें 54 आदमी 45 दिनों तक रह सकते हैं। सबमरीन का कार्य इतना सीक्रेट होता है कि मिशन पर जाने वाले नौसैनिकों को नहीं मालूम होता है कि वो आखिर किस मिशन पर कहां जा रहे हैं।

10 से 45 दिनों के सीक्रेट मिशन पर भेजी जाती है पनडुब्बी
सबमरीन के अंदर तापमान करीब 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है, साथ ही अंदर आक्सीजन की कमी को महसूस किया जा सकता है। एक बार सिंधुध्वज का गेट बंद हो जाता है तो उसके बाद सबमरीन के अंदर के लोगों का संपर्क बाहरी दुनिया से टूट जाता है। बिना सूर्य के रोशनी और बिना स्नान के मिशन के अंत होने तक रहना होता है। परिवार से किसी तरह का संपर्क नहीं रहता है। सबमरीन को 10 से 45 दिनों के सीक्रेट मिशन पर भेजा जाता है। एक बार सबमरीन के अंदर जाने पर आप वर्चुअल दुनिया में रहते हैं और सभी के लिए अदृश्य होते हैं।

सबमरीन का कंट्रोल रूम है बेहद महत्वपूर्ण
सबमरीन का कंट्रोल रूम उसका दिल होता है, जो कि स्क्रीन, लीवर, स्विच, पैनल से भरा हुआ एक छोटा स्थान होता है। कंट्रोल रूम से सबमरीन के सारे ऑपरेशन कमांड होते हैं। यहीं से स्पीड ऑर्डर को मोटर रूम भेजा जाता है। यहीं से यह निर्देश दिए जाते हैं कि सबमरीन को कितनी गहरायी में भेजना है। इसके पास फायर कंट्रोल सिस्टम होता है जो कि दुश्मनों के टारगेट डेटा के इनपुट देता है, जहां से हम टारपिडो और मिसाइल की फायरिंग को कंट्रोल करते हैं।

मिस कैल्कुलेशन से ख़तरे में आ सकता है सबमरीन
सिंधुध्वज में सोनार सिस्टम ने एक दुश्मन देश के जहाज के बारे में इनपुट दिए। इसके बाद सिंधुध्वज में तैनात अधिकारी ने शूट एंड साइट के आर्डर दे दिए। हालांकि एक अकेला मिस कैल्कुलेशन पूरी सबमरीन को खतरे में डाल सकता है। ऐसे में दुश्मन के जहाज को लेकर कैल्कुलेशन का सटीक होना बहुत ही जरूरी है।

सबमरीन के सीक्रेट मिशन की नहीं दी जाती पहले जानकारी
सीक्रेट मिशन के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं दी जाती है। मिशन पर जाने से पहले एक सीलबंद लिफाफा दिया जाता है, जिसे सबमरीन में दाखिल होने के बाद खोलने की इजाजत होती है। उस वक्त पता लगता है कि आखिर हमें किस जगह और किस मिशन पर जाना है।



दुश्मनों को डराती है सबमरीन की मौजूदगी

किसी भी देश के लिए सिर्फ सबमरीन की मौजूदगी ही काफी डरावनी होती है। ऐसे में नौसेना के जवानों का कार्य सबमरीन को मुस्तैद करना होता है, जिससे कि दुश्मन देश को एहसास हो कि हिंद महासागर में भारतीय सबमरीन गस्त लगा रही होगी। इसी ख़तरे को बरकरार रखना सबसे बड़ा टास्क होता है।

सोनार सिस्टम होता है सबमरीन की आंखें
सबमरीन का सोनार सिस्टम इसकी आंखें होता है, जो हर एक ख़तरे को लेकर आगाह करती है। सबमरीन में लोग लगभग एक 2 बीएचके फ्लैट के स्पेस में 17 लोग रह रहे होते हैं। ऐसे में सबमरीन में रहने वाले लोग समय बदल-बदलकर अपनी नींद पूरी करते हैं। यहां दो टॉयलेट हैं। सबमरीन के अंदर पानी की काफी किल्लत होती है। ऐसे में मिशन की समाप्ति तक शेविंग और नहाने की इजाजत नहीं होती है। सबमरीन में एक गैली होती, जिसे किचन कहा जाता है, यहां प्याज काटने और किसी चीज के तलने की सख्त मनाही होती है।

भारत के पास हैं 13 डीजल संचालित सबमरीन
भारत के पास इस वक्त तेरह डीजल चालित सबमरीन हैं, सभी लगभग बीस साल पुरानी हैं। भारत के पास दो न्यूक्लियर पावर सबमरीन आईएनएस अरिहंत और आईएनएस चक्र हैं, जो कि चीन को कड़ी चुनौती देती हैं। चीन के पास 63 सबमरीन हैं, जो कि अगले तीन साल में इसे बढ़ाकर 98 करने की मुहिम पर है।
 


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